(रतलाम)जो विनय पूर्वक व्यवहार करता है, वह सुगति में जाता है - प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा.
- 24-Jul-25 12:00 AM
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रतलाम, आरएनएस, 24, जुलाई। आचार्य प्रवर पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. तथा मुनिमंडल एवं पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. व साध्वी मंडल के वर्षावास का पावन सानिध्य रत्नपुरी को प्राप्त हुआ है। इस अवसर पर डीपी परिसर लक्कड़पीठा पर प्रतिदिन धर्मसभा आयोजित हो रही है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन पधार रहे हैं। गुरुवार को हुए व्याख्यान में प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. ने मनुष्य में विनय किस प्रकार का होना चाहिए, उस पर प्रकाश डालते हुए फऱमाया कि विनय का प्रारंभ कहां से होता है। हृदय के भंवर से विनम्रता आती है। वह आत्मा क्या-क्या गुण प्राप्त करता है। सेवा करने से क्या लाभ होता है, विनय की प्राप्ति होती है, हृदय में पूज्यजनों के प्रति विनम्रता होती है तो आशातना से बच जाता है। गुणों की प्रशंसा करना है, बहुमान करना है। मनुष्य सुगति और देव सुगति में उत्पन्न होना है। विनय करना है, विनय से रहित क्रिया निष्फल हो जाती है। जो विनय पूर्वक व्यवहार करता है, वह सुगति में जाता है। श्रावक के प्रति आशातना करने से दुर्गति होती है। पुण्यवान आत्मा घर में रहती है, तो घर में सब अनुकूलता रहती है।श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने फऱमाया कि जिनवाणी सुनना है और अंदर उतारना है। आप अपने आपसे पूछे मन के भटकने का मूल कारण क्या है? विषयों का आकर्षण ही जीव के भटकने का मूल कारण है। विषय भोगते-भोगते जीव को कुछ पता लगता नहीं है। यह जहर एक भव बिगाड़ता है विषय रूप जहर अनेक भव खराब करता है। विषयों के सेवन कभी तृप्ति नहीं होती है। विषयों के प्रति आशक्ति से से जीव भवभ्रमण करता है। जीव को संसार में अधिक कमाने की इच्छा क्यों होती है? अधिक मात्रा में साधन घटाने की इच्छा होती है या बढ़ाने की? जितने विषयों के साधन बड़े, वैसे-वैसे बुद्धि मलिन हुई की शुद्ध हुई? विषयों से विरक्ति हो ऐसा प्रयास जीव ने किया ही नहीं। शब्द,रूप, गंध, रस या स्पर्श सभी विषयों में जीव मस्त है। संयमी संयम लेने के बाद में जो वस्तु संसारी को अच्छी लगती है, उनसे राग हटे तब जाकर वास्तविक संयम प्रकट होता है। भगवान ने फरमाया है कि संसार का मूल ही विषय है। या विषयों में रमणता ही संसार है । आज की पीढ़ी क्यों भटक रही है? चाहे जवान, चाहे शादीशुदा, चाहे बुजुर्ग ही क्यों न हो-सभी विषयों की पूर्ति के पीछे भटक रहे है। हमें संयम के मार्ग को अपनाना है। यही हमें मोक्ष तक पहुँचाएगा। धर्मसभा को श्री सुहासमुनिजी म.सा. ने भी संबोधित किया। गुरुवार को प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. तथा मुनिमंडल एवं पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. व साध्वी मंडल के सानिध्य में पक्खी पर्व जप, तप, त्याग, तपस्या और विविध आराधनाओं के साथ मनाया गया। इस अवसर पर श्रावक श्राविकाओं ने उपवास सहित विविध आराधना की। शाम को पक्खी प्रतिक्रमण हुआ। प्रतिदिन अनेक श्री संघ के श्रद्धालु यहां पर दर्शनार्थ पधार रहे हैं। यहां पर तपस्याओं का जबरदस्त दौर चल रहा है। बड़ी संख्या में आराधक तपस्या कर रहे हैं। शुक्रवार को श्री धर्मदास जैन श्री संघ द्वारा आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनंदऋषिजी म.सा. की जन्म जयंती जप, तप, त्याग, तपस्या के साथ मनाई जाएगी। इस अवसर पर डीपी परिसर पर गुणानुवाद सभा का आयोजन भी होगा। धर्मसभा का संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया।
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