(रतलाम)नागरी लिपि के द्वारा ही राष्ट्रीय एकता संभव है : डॉ अशोक भार्गव
- 19-Sep-25 12:00 AM
- 0
- 0
शासकीय कन्या महाविद्यालय में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजनरतलाम, आरएनएस, 19 सितंबर। किसी भी राष्ट्र के विकास की बुनियाद उसकी मातृभाषा की संपन्नता में निहित होती है। हमारी मातृभाषा में ही हमारी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, हर्ष, उल्लास और पीड़ा की वास्तविक अभिव्यक्ति संभव हो सकती है। मातृभाषा हमारी अस्मिता की पहचान होती है जिसमें हमारे राष्ट्र का सामूहिक स्वर मुखरित होता है। हिंदी हमारी सांस्कृतिक चेतना की संवाहिका और राष्ट्र की आत्मा है।उक्त उदगार पूर्व कमिश्नर रीवा एवं शहडोल संभाग अध्यक्ष, मध्य प्रदेश नागरी लिपि परिषद डॉ. अशोक कुमार भार्गव ने शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय रतलाम में हिंदी पखवाड़ा एवं नागरी लिपि परिषद के स्वर्ण जयंती अवसर पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में "राष्ट्रीय एकता में हिंदी और नागरी लिपि की उपादेयता विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।डॉ भार्गव ने कहा कि संवैधानिक कठिनाई के कारण हिंदी राष्ट्रभाषा के गौरव से वंचित है जबकि भारत के स्वाधीनता संग्राम में हिंदी का अवदान अद्वितीय है। हिंदी भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है। हिंदी ने संपर्क भाषा के रूप में उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम को जोडऩे में सेतु का काम किया है। आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित नागरी लिपि परिषद ने नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के कार्य को वैश्विक स्तर तक प्रतिष्ठित किया है। देश की सभी भाषाओं और बोलियां को उनकी अपनी लिपियों के साथ-साथ नागरी लिपि में तथा देश की सभी भाषाओं की उत्कृष्ट रचनाओं को, देश की लिपि रहित बोलियों के साहित्य को नागरी लिपि में मुद्रित और प्रकाशित करने का अभूतपूर्व कार्य किया है। नागरी लिपि विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है जो अपनी सहजता, सरलता, सुंदरता, नमनीयता, सुगमता और बोधगम्यता के कारण विश्व लिपि बनने की क्षमता रखती है क्योंकि देवनागरी लिपि में जैसा लिखा जाता है वैसा ही पढ़ा जाता है और जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है।डॉ भार्गव ने नागरी लिपि के राष्ट्रीय एकीकरण में योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि भारत की अन्य भाषाओं को देवनागरी लिपि में सीखने से परस्पर अविश्वास, अविचार और भ्रम की स्थिति दूर होगी । भाषाएं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनेंगी और भाषाओं को अखिल भारतीय स्तर पर व्यापार, पर्यटन ,रोजगार और बाजार की अनुकूल परिस्थितियां प्राप्त होंगी। 19वीं सदी फ्रेंच भाषा की सदी थी, 20वीं सदी अंग्रेजी भाषा की थी किंतु 21वीं सदी हिंदी की सदी है।कार्यशाला की शुरुआत मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप-प्रज्वलित कर की गई। तत्पश्चात मुख्य वक्ता श्री अशोक भार्गव एवं विशिष्ट अतिथि पीएम एक्सीलेंस महाविद्यालय रतलाम के प्राचार्य वाय के मिश्रा, अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. मनोहर जैन, राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्राध्यापक डॉ. अनिल जैन एवं आशा भार्गव का छात्राओं द्वारा भारतीय परंपरा अनुसार तिलक किया गया। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. मंगलेश्वरी जोशी, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कार्यशाला समन्वयक डॉ. सुनीता श्रीमाल, आईक्यूएसी प्रभारी डॉ. माणिक डांगे, डॉ .सरोज खरे,डॉ.सुरेश चौहान,डॉ.बी.वर्षा ,डॉ.बामनीया,प्रो.मधु गुप्ता डॉ.अनिल जैन डॉ .सौरभ गुर्जर एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने मुख्य वक्ता एवं अतिथियों का मोतियों की माला से स्वागत किया।छात्राओं की ओर से छात्रा दीपिका कसेरा ने स्वागत किया। मुख्य वक्ता भार्गव का महाविद्यालय की प्राचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष ने शॉल श्रीफल से सम्मान किया।हिंदी विभागाध्यक्ष सुनीता श्रीमाल ने अतिथि परिचय एवं विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा- डॉ.भार्गव बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान है । आप अपनी बैच के टॉपर रहे हैं तथा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी है। अपने इसी महाविद्यालय से शासकीय सेवा प्रारंभ की थी। नागरी लिपि परिषद की स्थापना 1975 में हुई थी और 2025 में स्वर्ण जयंती वर्ष है, इसलिए हमने नागरी लिपि विषय चुना। शासकीय सेवा में रहते हुए विभिन्न पदों एसडीएम, डिप्टी कलेक्टर, अध्यक्ष नर्मदा घाटी प्राधिकरण आदि पदों पर कार्य किया। विभिन्न उत्कृष्ट कार्यों के लिए आपको कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। आपको तीन नेशनल अवार्ड, नवाचार व निर्वाचन प्रक्रिया के लिए आपको राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया, लोकसभा निर्वाचन रीवा संभाग में दिव्यांग मतदाताओं के लिए सर्वाधिक 94 प्रतिशत तक मतदान करवाने पर नेशनल अवार्ड आदि कई अन्य अवार्ड प्रदान किए गए हैं। आपने विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है ।विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित पी.एम. एक्सीलेंस महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. वाय.के. मिश्रा ने कहा कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, यदि हमें हिंदी का ज्ञान नहीं है तो हम अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं कर रहे हैं। हमारी सोच, हमारे विचार, हमारी अभिव्यक्ति सब हिंदी में होते हैं, लेकिन बीच में अंग्रेजी का प्रयोग आ जाता है। हमें अपने जीवन में सदैव हिंदी का उपयोग करना चाहिए। अपनी अभिव्यक्ति हिंदी में करें जिससे अवश्य ही हिंदी राष्ट्रभाषा घोषित होगी।अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ मनोहर जैन ने कहा कि दुनिया में सभी जगह पर हिंदी बोली जाती है और हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए हम सभी को हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए। हमें अपने लिए संकल्प लेना है, हम दैनिक जीवन में हिंदी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें।महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. मंगलेश्वरी जोशी ने कहा कि डॉ. भार्गव का व्यक्तित्व और हिंदी तथा नागरी लिपि के प्रति सम्मान का भाव सराहनीय है। हमारी युवा पीढ़ी को इसे अंगीकार करना होगा।इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक गण एवं बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित रहीं। कार्यशाला का संचालन डॉ. अनामिका सारस्वत ने किया तथा आभार सह-समन्वयक डॉ. सरोज खरे ने माना।
Related Articles
Comments
- No Comments...