(रतलाम)भारतीय संस्कृति में अगर माँ की महिमा प्रसिद्ध है तो पिता की महिमा भी उतनी प्रसिद्ध है : डॉ अमितप्रज्ञाजी म.सा.

  • 14-Jul-25 12:00 AM

नीमचौक जैन स्थानक पर बच्चों के लिए संस्कार शिविर सम्पन्नरतलाम, आरएनएस, 14 जुलाई। भारतीय संस्कृति में अगर माँ की महिमा प्रसिद्ध है तो पिता की महिमा भी उतनी प्रसिद्ध है । एक पिता अपने बच्चों को आकाश में उछालकर उसका शारीरिक विकास करता है, खिलौना देकर हँसाकर उसका मानसिक विकास करता है, पैसा देकर आर्थिक विकास करता है, पढ़ा लिखा कर बौद्धिक विकास करता है, अपना अनुभव बात कर दुनियादारी सीखना है । इसलिए पिता परमेश्वर है, गुरु है, माली है। पहाड़ की शक्ति सूर्य की गर्मी जल की शीतलता इन सबको मिलाओ तो पिता बनता है । उक्त विचार महासती डॉ अमितप्रज्ञा जी ने नीमचौक जैन स्थानक पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। साध्वी श्री ने फरमाया की पिता रोटी कपड़ा मकान है, पिता छोटे बच्चे का आसमान है । पिता है तो सर पर हाथ है पिता नहीं है तो जीवन अनाथ है । पिता जीवन का आधार है प्राण का संबंध होता है पिता, रक्त का अनुबंध होता है पिता विश्व के इस चक्रवात में शक्ति का भुजबंद होता है पिता। पिता की मार से अनुशासन आता है, पिता की आवाज से सजगता, पिता की पाबंदिया जीना सिखाती है सही राह पर चलना सिखाती है । मां धरती है तो पिता आसमान है, मां दो समय का भोजन बनाकर देती है पिता जिंदगी भर के भोजन की व्यवस्था करता है । छोटी मोटी चोट लगे तब माँ याद आती है बड़ी चोट लगने पर बाप रे बाप मुँह से निकलता है। मां ममता की मूरत है तो पिता समता की सूरत है मां वात्सल्य है तो पिता दया है, मां पुष्प की सुगंध है पिता शहद की मिठास है, माँ दीप का प्रकाश है पिता व्यक्तित्व का विकास है, पुस्तक का पहला पाठ है मां प्रगति की प्रथम सीढ़ी है पिता, माँ आंख देती है पिता दृष्टि देता है, मां घर देती है पिता संपूर्ण सृष्टि देता है।पिता बेटे बेटी की तरक्की के लिए अपनी संपूर्ण संपत्ति खर्च कर देता है, पिता कभी अपनी परवाह नहीं करता अपना इलाज नहीं करवाता है । जीते जी माता-पिता को भोजन कराया नहीं मरने के बाद उनकी याद में भोजनशाला बनवा रहे हो, जीते जी माता-पिता को पानी पिलाया नहीं मरने के बाद प्याऊ खुलवा रहे हो, जीते जी उनको दवाई दिलाई नहीं मरने के बाद उनकी याद में अस्पताल बनवा रहे हो। पूज्याश्री डॉ. संयमलताजी म.सा. फरमाया की सुख के दो प्रकार होते है, भौतिक सुख एवं आध्यात्मिक सुख। भौतिक सुख सबको चाहिये उपवास एक व्यक्ति करता है, लेकिन पारणा घर के सभी सदस्य करते हैं। दुनिया में सभी सुख के साथी हैं सुख आएगा तो सब साथ जाएंगे। घर में लड्डू बनाएंगे सब खाएंगे, चिरायता बनेगा तो केवल वो ही पियेगा जिसके लिए बना है। सुख की तीन जातियां हैं सुख, महासुख और परमसुख । संसार का सुख,भौतिक सुख जिसमें क्षणभर सुख होता है और बहुकाल दुख होते हैं । महासुख देवलोक में है, देवता एक घंटा नाटक देखते हैं तो उनके 10000 वर्ष पूरे हो जाते हैं।और परम सुख मोक्ष में है जहां जन्म नहीं मरण नहीं, रोग नही शोक नही, जरा नही, बीमारी नही, दुख नही पीड़ा नही। सच्चा सुख आत्मा में होता है जो दिखाई नहीं देता है जैसे दही में मक्खन नहीं दिखाई देता है प्रत्येक आत्मा में परमात्मा है लेकिन वह दिखाई नहीं देती है ।पूज्य गुरुदेव वादीमानमर्दक परम पूज्य गुरुदेव श्री नंदलाल जी महाराज साहब की पुण्यस्मृति दिवस के अवसर पूज्य महासतिया जी ने कहा की गुरुदेव की माता का नाम राजी बाई और पिता रत्नचंद जी थे । मात्र 08 वर्ष की आयु में आचार्य श्री उदय सागर जी महाराज साहब के चरणों में आपको समर्पित कर दिया और इस प्रकार 08 वर्ष की आयु में आपने संयम ग्रहण किया। आपने 32 आगम का गहन अध्ययन किया। हिंदी उर्दू गुजराती प्राकृत संस्कृत कई भाषा में आप प्रकांड विद्वान थे । एक बहुत बड़े आचार्य को आपने शास्त्रार्थ वाद विवाद में पराजित किया इसी कारण आपको वादीमानमर्दक की उपाधि प्रदान की गई। धर्मसभा के बाद जैन स्थानक मे दिन मे बच्चों के लिए धार्मिक ज्ञानवर्धक संस्कार शिविर का आयोजन महासति दक्षिण चन्द्रिका डॉ संयमलता जी, महासती डॉ अमितप्रज्ञा जी, डॉ कमालप्रज्ञा जी, साध्वी सौरभप्रज्ञा जी के सानिध्य मे संपन्न हुआ, शिविर का सुन्दर आयोजन जैन दिवाकर नवयुवक मंडल, बालिका मंडल, बालक मंडल के संचालन में हुआ।




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