(रतलाम)माता-पिता बनना आसान, लेकिन गुरूजन बनना बहुत मुश्किल- मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.

  • 03-Oct-23 12:00 AM

रतलाम, आरएनएस, 03, अक्टूबर। माता-पिता भी अपने बच्चों के लिए गुरूजन बन सकते है, लेकिन माता-पिता बनना आसान है, लेकिन गुरूजन बनना बहुत मुश्किल है। गुरूजन वे माता-पिता ही बन सकते है, जिनमें पांच गुण होते है- पहला त्याग करने की तैयारी, दूसरा दुख सहने की तैयारी, तीसरा अपराधों को भूलने की तैयारी, चौथा धर्म से प्रभावित हो और पांचवा उसका जीवन आचार से भावित होना चाहिए।यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने कही। उन्होने कहा कि जिस व्यक्ति में त्याग की भावना नहीं है, वह कभी गुरूजन या शिक्षक नहीं बन सकता है। बड़े को उदारता दिखाना चाहिए, जैसे श्रीराम ने भरत के लिए दिखाई थी और राज्य छोड़ दिया था। सुखों का मल्टीप्लेक्शन बड़ा बना देगा लेकिन डिवाइडेशन महान बनाएगा।मुनिराज ने कहा कि शिक्षक बनने के लिए हमे अपने ऊपर आने वाले दुखों के लिए तैयारी करना चाहिए। प्रभु को 56 भोग लगाने से कल्याण बाद में होगा लेकिन यदि किसी जरूरतमंद को एक भोग भी लगा दिया तो कल्याण जरूर होगा। भगवान हमारे लिए सुख और दुख दोनों लिखते है लेकिन माता-पिता बच्चों के लिए सिर्फ सुख लिखते है। उनकी सादगी हमारे लिए गौरव की बात है।मुनिराज ने कहा कि हमे अपनों के द्वारा किए गए अपराधों को भूलने की तैयारी भी रखना चाहिए। घर का सदस्य यदि कोई गलती कर दे तो उसे भूलना होगा। हमारे भीतर दिल जीतने का हेतु होना चाहिए, दुनिया जीतने का नहीं। इसके साथ ही धर्म से प्रभावित होना भी बहुत आवश्यक है। हमे धर्म को बढ़ाने की चिंता करना चाहिए, धन को बढ़ाने की नहीं। हमारा जीवन आचार से भावित होना आवश्यक है। प्रवचन में कई श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।




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