(रांची)2024 चतरा लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए मां से ज्यादा मौसी सक्रिय
- 07-Nov-23 12:00 AM
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जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण चतरा में पर्याप्त उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थान नहीं खुलेरांची 7 नवंबर (आरएनएस)। राजनीति में मौसम की तरह प्रतियाशी भी बदलते रहे हैं। चतरा लोकसभा और विधानसभा इसका मिसाल है।जिसमें नागमणि कुशवाहा, धीरेंद्र अग्रवाल, सत्यानंद भोगता और जनार्दन पासवान का नाम शामिल है. भारतीय कांग्रेस पार्टी चतरा लोकसभा चुनाव बहुत बार लड़ी और जीती भी है. लेकिन वर्ष 1984 के बाद एक भी चतरा लोकसभा चुनाव नहीं जीत हासिल की।कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार धीरज प्रसाद साहू 2009 और 2014 में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन असफल रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज यादव भी चुनाव हार गये थे. 2009 के आम लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार इंदर सिंह नामधारी के खिलाफ जीत हासिल करने में असफल रहने के बावजूद धीरज प्रसाद साहू फिर से सक्रिय हैं। हालांकि, साल 2014 में भी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार धीरज प्रसाद साहू बीजेपी के सुनील कुमार सिंह से भारी वोटों के अंतर से हार चुके हैं. साल 2019 में भी कांग्रेस और राजद को बीजेपी उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह ने बुरी तरह हराया है. चतरा लोकसभा क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक दलों में भाजपा के अतिरिक्त राजद और कांग्रेस है। भाजपा से मोक़बाल के लिए राजद या कांग्रेस को मजबूत जातीय समीकरण वाला स्थानीय उम्मीदवार ही परिणाम प्रभावित कर सकता है। इस बार मतदाताओं का मूड बाहरी उम्मीदवार के अपेक्षा स्थानीय प्रतियाशी के प्रति अधिक रूझान है। धीरज प्रसाद साहू के संबंध में जानकारों का कहना है कि उन्होंने कभी भी चतरा में रात्रिविश्राम तक करना गवारा नहीं किया. वह भी चतरा की जनता की सेवा करने को बेकऱार हैं. चतरा लोकसभा चुनाव में एक समय ऐसा भी आया था जब राजद सांसद नागमणि कुशवाहा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. बीजेपी के तत्कालीन नि:वर्तमान सांसद धीरेंद्र अग्रवाल राजद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. नहले पर दहला की कहानी चतरा विधानसभा में भी दोहरायी गयी. दो बार भाजपा विधायक और मंत्री रहे सत्यानंद भोगता ने पहले झाविमो और फिर राजद के टिकट पर चतरा विधानसभा चुनाव लड़ा। राजद से चुनाव जीतने के बाद वर्तमान राज्य सरकार में फिलहाल मंत्री हैं।राजद के दो बार के विधायक जनार्दन पासवान बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े. लेकिन प्राजित हुए. ज्ञात हो कि चतरा लोकसभा अनारक्षित है. खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। बेरोजगारी और अशिक्षा सर्वाधिक अधिक है। उच्च शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। गरीब अभिभावक निजी स्कूलों में पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। जन प्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण चतरा में बेहतर शिक्षण संस्थान नहीं खुल पाये हैं. यहां के युवाओं को बेहतर शिक्षा के लिए राज्य और राज्य के बाहर बेहतर शिक्षा के लिए जाना पड़ता है. लेकिन गरीब परिवार बाहर जाने से वंचित रह जाते हैं.चतरा में शिक्षा शायद विकास का पैमाना नहीं है. यही कारण है कि आज विकास के पैमाने नल्ली गली, सड़क, तालाब, आहर पोखर पुल, पुलिया, पर्यटन स्थल, स्टेडियम सहित अन्य कार्यों को शिलान्यास उदघाटन समारोह को तरजीह दिया जा रहा है। जबकि विकास के लिए शिक्षा का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। चतरा की गिनती सबसे पिछड़े जिलों में होती है. यदि यहां उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते तो चतरा भी विकसित जिलों में गिना जाता।
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