
(रायपुर) मैनपाट में देश का पहला ग्रामीण गार्बेज कैफे
- 25-Sep-25 09:15 AM
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0-प्लास्टिक के बदले भोजन, स्वच्छता और आजीविका का अनूठा संगम

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रायपुर, 25 सितबंर (आरएनएस)।पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण महिलाओं की आजीविका सशक्तिकरण का दुर्लभ संगम छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। ग्राम पंचायत रोपाखार में देश का पहला ग्रामीण गार्बेज कैफे शुरू किया गया है, जहां ग्रामीण और पर्यटक प्लास्टिक कचरे के बदले पौष्टिक भोजन पा सकते हैं। यह पहल सिर्फ स्वच्छता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में कचरा प्रबंधन की नई सोच, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और ग्रामीण आजीविका को नई राह दे रही है।
सरगुजा के जिलाधिकारी श्री विलास भोसकर और जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विनय कुमार अग्रवाल ने मैनपाट क्षेत्र का दौरा कर गार्बेज कैफे का निरीक्षण किया। दोनों अधिकारियों ने इस पहल को ग्रामीण भारत के लिए प्रेरणादायी मॉडल बताते हुए विभागीय अधिकारियों और भागीदार संस्थाओं को इसे और सुदृढ़ बनाने के निर्देश दिए। जिलाधिकारी भोसकर ने कहा कि यह सिर्फ कचरा इक_ा करने की पहल नहीं है, बल्कि ग्रामीण युवाओं और महिलाओं को रोजगार दिलाने तथा पर्यावरण बचाने का मजबूत माध्यम है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह मॉडल दूसरे जिलों और पंचायतों में भी फैल सकता है।
इस कैफे का संचालन कार्ब हट किचन, रोपाखार में किया जा रहा है। यहां कोई भी ग्रामीण या पर्यटक एक किलो साफ प्लास्टिक अपशिष्ट जैसे सफेद प्लास्टिक, पानी की बोतल, एल्यूमिनियम कैन और कांच की बोतल लेकर आता है तो उसे नाश्ता मिलता है। वहीं दो किलो प्लास्टिक देने पर पूरा भोजन उपलब्ध कराया जाता है। यह व्यवस्था न केवल गांव में साफ-सफाई बनाए रखती है, बल्कि स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध कराती है। इक_ा किया गया प्लास्टिक आगे पुन: उपयोग और रिसाइक्लिंग के लिए भेजा जाता है, जिससे पर्यावरण को हानिकारक कचरे से राहत मिलती है।
यह पहल जिला प्रशासन सरगुजा, भारतीय जीवन बीमा निगम, एचएफएल ग्रीन टुमॉरो परियोजना और फिनिश सोसाइटी के सहयोग से संचालित की जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य गांव-गांव में प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन करना, पर्यावरणीय जागरूकता फैलाना और ग्रामीण महिलाओं को सम्मानजनक आजीविका प्रदान करना है। जिलाधिकारी भोसकर का कहना है कि इस पहल से न केवल गांवों में स्वच्छता बढ़ेगी बल्कि समुदाय में कचरा प्रबंधन के प्रति नई जागरूकता भी आएगी।
इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत हैं स्वच्छताग्राही दीदियां। ये महिलाएं घर-घर जाकर लोगों को स्वच्छता, प्लास्टिक प्रबंधन और पुन: उपयोग की जानकारी देती हैं। गांव की गलियों से लेकर बाजार तक ये दीदियां रोज सफाई करती हैं, कचरा इक_ा करती हैं और ग्रामीणों को समझाती हैं कि कचरे को अलग-अलग रखना क्यों जरूरी है। जिलाधिकारी ने दुकानदारों और स्थानीय नागरिकों से अपील की है कि वे नियमित रूप से उपयोगकर्ता शुल्क का भुगतान करें, ताकि दीदियों की मेहनत का उचित सम्मान हो और उनकी आजीविका स्थायी बनी रहे।
जिलाधिकारी ने मौके पर अधिकारियों और विभागों को निर्देश दिया कि वे इस पहल को व्यापक पैमाने पर लागू करें और इसे अन्य पंचायतों में भी विस्तार दें।
ग्रामीण गार्बेज कैफे जैसी पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं और युवाओं की आजीविका को सशक्त बनाने में भी सहायक हैं। मैनपाट का यह प्रयोग साबित करता है कि यदि सोच नई हो और जनता सक्रिय रूप से जुड़ जाए, तो स्वच्छता और रोजगार दोनों को साथ-साथ आगे बढ़ाया जा सकता है। यह मॉडल आने वाले समय में ग्रामीण भारत की नई पहचान बन सकता है।
आर. शर्मा
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