(रीवा) संघर्ष से उपजे गिरीश गौतम, दिल से कामरेड और तन से भगवाधारी

  • 27-Oct-23 12:00 AM

रीवा,27 अक्टूबर (आरएनएस)। कामरेडों को कथानक बनाकर बहुत कुछ लिखा गया, लेकिन यहां जिस कामरेड का जिक्र किया जा रहा है उसका नाम है गिरीश गौतम। दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से लगातार चार बार के विधायक एवं मप्र विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम का राजनीतिक सफर भले ही अब सपाट दिखाई देता हो, लेकिन किसी जमाने में वह उतना सरल नहीं था, जितना दिखाई दे रहा है। गिरीश गौतम का जन्म 28 मार्च 1953 को तत्कालीन विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा जिले की मनगवां तहसील अंतर्गत करौंदी में हुआ था। 1970 के आसपास वह छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय हो गए। 50 वर्ष के राजनीतिक सफर में उनका झुकाव वामपंथ की तरफ रहा। उनकी सानिध्य मिला कामरेड घनश्याम सिंह, गंगा सिंह एवं रविंद्र शुक्ल का। 10-20 रुपये इक_ा कर किसी नुक्कड़ चौराहे पर मोर्चा बनाकर चोंगे पर उनके भाषण की स्मृति बघेलखंड में बहुतों की स्मृति में आज भी जीवित है। इमरजेंसी में महोश्वरी, त्रिपाठी बंदी बने तो युवा गिरीश से कूच किया और दादा कामरेड होमी दाजी को लेकर पहुंच गए तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सेठी के पास।उनकी जानने वाले बताते हैं कि 80 के दशक में वह राजनीति के मेहंद्र कर्मा व कपूर चंद भुआरा के साथ उन्होंने वाम राजनीति की सुर्खियां बटोरी। बाद में मनीष कुंजाम और विशंभर पांडेय से उन्हें विस्तार मिला। पहली बार 1980 के दशक में वह चुनाव में उतरे, लेकिन उन्हें चुनाव दर चुनाव पराजय का सामना करना पड़ा। समय का पहिया घूमा और 1993में वह कम्युनिस्ट पार्टी से मनगवंा विधानसभा से चुनाव मैदान में आए, पर कांग्रेस प्रत्याशीरहे सफेद शेर के नाम से मशहूर पंडित स्व. श्रीनिवास तिवारी से हार गए। हालांकि, इस बार का अंतराल कम हुआ। वर्ष 1998 में पुन: श्रीनिवास तिवारी के सामने वह कम्युनिस्ट पार्टी से प्रत्याशी बने। इस बार उन्हें मात्र 274 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा फिसलकर चौथे पायदान पर पहुंच गई थी। 1998 के चुनाव के बाद भाजपा समझ गई थी कि अगर मनगवां की राजनीतिक पृष्ठभूमि में कमल खिलाना है तो गिरीश को अपनाना पड़ेगा। सूबे की धु्रवीकरण राजनीति को भगवा कैम्प पलक-पांवड़े बिछाए था। कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा एवंउनसे भी आगे निलकर भगवत शरण माथुर चाहते थे िक लाल ध्वज वाहक गिरीश गौतम भगवा पहन लें। मिशन कठिन था, लेकिन लगातार बातचीत से बात बन गई। बीएससी व एलएलबी की पढ़ाई कर चुके गिरीश भी समझ चुके थे कि अब दल बदलने का समय आ गया है। अनिल पुरोहित




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