(लखनऊ)आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर संजय सिंह का हमला, दलित-पिछड़ों-आदिवासियों और महिलाओं की उपेक्षा का लगाया आरोप
- 01-Oct-25 12:00 AM
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लखनऊ 1 अक्टूबर (आरएनएस ): आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश के प्रभारी व राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर संगठन को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयÓ शब्द से जुड़े होने के बावजूद यह संगठन देश की 85 प्रतिशत आबादी यानी दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। सांसद ने सवाल उठाया कि एक सदी के लंबे इतिहास में आरएसएस का कोई प्रमुख दलित, पिछड़ा, आदिवासी या महिला क्यों नहीं हुआ। उन्होंने इस आधार पर संगठन को दकियानूसी और संकुचित सोच वाला बताते हुए कहा कि आरएसएस संविधान, आरक्षण और समानता की भावना के खिलाफ है तथा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की विचारधारा का विरोध करता है।संजय सिंह ने आजादी के आंदोलन में आरएसएस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब संघ अंग्रेजों का साथ दे रहा था। उन्होंने आरोप लगाया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संघ के लोग हिंदुस्तानियों को अंग्रेजी सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे। शोधों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आरएसएस ने स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों की मुखबिरी की और भारत छोड़ो आंदोलनÓ का विरोध तक किया। इतना ही नहीं, यह वही संगठन था जिसने भारत की आन-बान-शान तिरंगे झंडे तक का विरोध किया था। संजय सिंह ने इसे इतिहास का ऐसा काला अध्याय करार दिया, जिसका आरएसएस कभी खंडन नहीं कर सकता।आप सांसद ने आरएसएस को महिमामंडित करने की कोशिशों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर टिकट जारी करने और पाठ्यक्रमों में संघ का इतिहास शामिल किए जाने की चर्चा हो रही है। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इस दौरान संगठन की तारीफ और कसीदे तो पढ़े जाएंगे, लेकिन यह नहीं बताया जाएगा कि आरएसएस ने स्वतंत्रता आंदोलन में देश के साथ गद्दारी की थी। उन्होंने तीखा सवाल किया कि आखिर देश को यह क्यों नहीं बताया जाता कि संघ ने अपने मुख्यालय पर पूरे 52 साल तक तिरंगा झंडा क्यों नहीं फहराया।अपने बयान के अंत में संजय सिंह ने दोहराया कि संघ भेदभाव की मानसिकता रखने वाला संगठन है और इसी वजह से आज तक उसके शीर्ष पर कोई दलित, पिछड़ा, आदिवासी या महिला नहीं पहुंच सका। उन्होंने जनता से अपील की कि ऐसे संगठनों की सच्चाई को पहचानें और इनके प्रचार से सावधान रहें।
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