(लखनऊ)युवा पीढ़ी को संस्कृति से जोडऩे की मुहिम: उत्तर प्रदेश में ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाओं का आयोजन

  • 30-May-25 12:00 AM

लखनऊ 30 मई (आरएनएस )। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं की समृद्ध विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाएं पूरे प्रदेश में जोरशोर से आयोजित की जा रही हैं। इन कार्यशालाओं का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को लोकनृत्य, लोकसंगीत, चित्रकला, कठपुतली, नाटक, पारंपरिक हस्तशिल्प और लोककथाओं जैसी विधाओं में प्रशिक्षण देकर न केवल उनकी प्रतिभा को निखारना है, बल्कि उन्हें अपनी जड़ों से भी जोड़े रखना है।प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि यह प्रयास केवल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि भावी पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत की आत्मा से जोडऩे का एक गहरा और सकारात्मक प्रयास है। द्दद्यशड्ढड्डद्यद्ब5ड्डह्लद्बशठ्ठ की मौजूदा लहर में जहां पारंपरिक मूल्यों पर संकट मंडरा रहा है, वहीं ऐसे सांस्कृतिक अभियान हमारी लोक परंपराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।मंत्री ने कहा कि भारतेंदु नाट्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, लोक एवं जनजातीय कला संस्थान, भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, बिरजू महाराज कथक संस्थान, और अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के माध्यम से इन कार्यशालाओं को प्रदेश भर में संचालित किया जा रहा है। इन कार्यशालाओं में स्थानीय कलाकारों, गुरुओं और विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे प्रतिभागियों को केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यवहारिक अनुभव भी मिल रहा है।इस वर्ष की कार्यशालाओं में एक नई पहल के तहत भारत की प्राचीन बौद्धिक परंपराओं को भी जोड़ा गया है। लखनऊ स्थित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान द्वारा आयोजित बुद्ध पथ प्रदीप कार्यशालाÓ में बच्चों को भगवान बुद्ध के जीवन, धम्म, करुणा और नैतिक शिक्षा के मूल्यों से अवगत कराया जा रहा है। ध्यान, सह-अस्तित्व और सत्य जैसे विषयों पर संवाद और अभिनय के माध्यम से उन्हें बौद्ध दर्शन की आत्मा को समझाया जा रहा है। इसी प्रकार जैन विद्या शोध संस्थान द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में जैन दर्शन के सिद्धांतों जैसे अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य को व्यवहार में उतारने पर बल दिया जा रहा है।सृजनÓ नामक इन ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं के अंतर्गत उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान, लखनऊ द्वारा अब तक प्रदेश के 55 जिलों में कुल 59 कार्यशालाएं संपन्न कराई जा चुकी हैं। ये कार्यशालाएं प्राथमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से आयोजित की गईं। इनमें कृ भगत, ढोला-मारु, नौटंकी, आल्हा, सोहर, बुंदेली गायन, चंदौल नृत्य, मयूर नृत्य, होली नृत्य, संस्कार गीत, कठपुतली कला, जनजातीय नृत्य-गायन, राई नृत्य और रसिया ब्रजलोक गायन जैसे पारंपरिक विधाओं पर विशेष बल दिया गया।हस्तशिल्प के क्षेत्र में थारू जनजाति की मूंज शिल्प कला, रंगोली, बुंदेली चितेरी कला के अंतर्गत मुखौटा निर्माण और पारंपरिक चौक पूरण चित्रकला की कार्यशालाएं आकर्षण का केंद्र रहीं। वहीं ढोलक वादन की कार्यशाला ने बच्चों को लय और ताल की परंपरागत ध्वनि से जोड़ा।पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि संस्कृति विभाग की इन पहलों के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में पिछले तीन वर्षों के भीतर सांस्कृतिक आयोजनों की संख्या तीन गुना बढ़ी है। ग्राम्य और शहरी दोनों क्षेत्रों में नवोदित कलाकारों, महिलाओं और युवाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। लोककलाओं को संरक्षित कर उन्हें पुनर्जीवित करने की दिशा में यह प्रयास मील का पत्थर बन चुका है।सरकार का स्पष्ट उद्देश्य है—उत्तर प्रदेश को भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित करना, और यह सांस्कृतिक जागरूकता अभियान उसी दिशा में एक दृढ़ और सार्थक कदम है।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment