(सिरसा)कथा के चौथे दिन भक्त प्रहलाद के संघर्ष पूर्ण जीवन का मार्मिकता से किया व्याख्यान
- 11-Sep-25 12:00 AM
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सिरसा 11 सितंबर (आरएनएस)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित की जा रही श्री मद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस सर्व आशुतोष महाराज की शिष्या भागवत भास्कर महामनस्विनी साध्वी कांलिदी भारती ने भक्त प्रहलाद के संघर्ष पूर्ण जीवन का बड़ा ही मार्मिकता से व्याख्यान किया। प्रह्लाद के जीवन की घटनाएं बताती हैं कि भक्ति मार्ग पर कोई सूरमा ही चल सकता है। उन्हें पहाड़ की ऊंची चोटी से गिराया गया, समुद्र में फिंकवाया गया, विष का प्याला दिया गया, कालकोठरी में बंद किया गया। यह संघर्ष भी उनको विचलित न कर पाया। उनकी इस दृढ़ता को देखकर भगवान को नृसिंह अवतार लेना पड़ा। जब देवर्षि नारद उनकी माता को ज्ञान दिया तो प्रह्लाद को भी माता के गर्भ में यह ज्ञान प्राप्त हुआ। कहते हैं जब स्त्री गर्भवती होती है तो माता की समस्त शारीरिक कर्म का व मानसिक विचारों का उसके भ्रूण पर प्रभाव पड़ता है। माता के गर्भ से ही संस्कार लेकर उत्पन्न होता है। जैसे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का भेदन करना माता के गर्भ से ही सीखा, छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन के पृष्ठों का भी अवलोकन करें तो पाएंगे कि उनकी माता जीजाबाई समर्थ गुरु रामदास जी से आध्यात्मिक मार्ग दर्शन पाकर ही शिवाजी को निडर व सशक्त राजा बना पाई और यह बात विज्ञान सम्मत भी है, माता के विचार से ही शिशु का पोषण भी होता है। यदि आज की माता ध्रुव प्रहलाद, शिवाजी मराठा जैसे भक्त एवं शूरवीरों को जन्म देना चाहती है तो उसे भी पहले रानी मदालसा, जीजाबाई की भांति ही ईश्वर को जानना पड़ेगा। तभी बालकों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक हर स्तर से विकास होगा। फिर यही बालक दिग्भ्रमित समाज की नौका की पतवार संभालने वाले कर्णधर बन सकते हैं, देश का सशक्त निर्माता बन सकते हैं। आज के परिवेश मे बालकों को मात्रा बाहरी शिक्षा दी जा रही है। जो भौतिक सुख सुविधओं को ही प्रदान करवा सकती है। बौद्धिक विकास करने तक ही सीमित हैं, परंतु भीतर की जड़ता को समाप्त करने में असमर्थ है। यह शिक्षा डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अध्यापक व नेता बना सकती है लेकिन एक मानव को मानव नहीं बना सकती है, मानव की हैवानियत को समाप्त नहीं कर सकती है। आज हमारे समाज को ईमानदार मानवों की आवश्यकता है और ऐसे मानव का गठन एक पूर्ण संत के कृपा हस्त तले ही हो सकता है। कथा प्रसंग के दौरान होली का आध्यात्मिक अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा को समर्पित हो जाना ही होली है, लेकिन यह तभी सम्भव है जब जीवन में गुरु का पदार्पण होता है। परमात्मा के प्रकाश रुप को देख लेने के पश्चात ही प्रेम पैदा होता है और भक्ति का प्रारम्भ होता है। भक्ति प्रगाढ़ होने पर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है। पूर्णतया उसके रंग में रंग जाती है यही होली की सच्ची परिभाषा है। साध्वी जी ने बताया कि आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रत्येक इकाई, प्रत्येक इंसान का पका होना अर्थात् पूर्ण रूप से विकसित होना अति आवश्यक है। व्यक्ति निर्माण ही समाज निर्माण और फिर समाज निर्माण ही विश्व हित का मुख्य हेतु है। भारतवर्ष युगों से समाज निर्माण विषयक प्रश्नों का समाधन सम्पूर्ण विश्व को देता आ रहा है और देता रहेगा। यह समाधन है अध्यात्म जो भारतीय संस्कृति का आधार है, क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति है। अध्यात्म ही सम्पूर्ण विकास की प्रक्रिया है। यही समस्त वेदों का सार है। इस विशाल कथा ज्ञान यज्ञ में प्रतिदिन शहर के गणमान्य व्यक्ति पधर रहे हैं। कथा का संपन्न प्रतिरोज की भांति प्रभु की पावन आरती से हो रहा है। कथा का आरंभ पूजन से किया गया पूजन में सुनील बंसल राजन बावा पुरुषोत्तम गोयल कराया गया । अतिथि में सुनीता दुग्गल, कमल बंसल, बृज मोहन शर्मा, राधेश्याम राम नारायण, संजय गोयल, गुरदेव सिंह, संजीव मोंगा, नरेश मलिक, संजय गर्ग, निर्मल कुमार उपस्थित रहे।
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