(सुलतानपुर)गंगा जमुनी तहजीब का संगम है दाता करीम शाह का मेला
- 06-Feb-25 12:00 AM
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बंसत पंचमी के दिन से होती है मेले की शुरुआतसुलतानपुर 6 फरवरी (आरएनएस )। जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित तहसील बल्दीराय मुख्यालय से सात कि0मी0 की दूरी पर स्थित इसौली के गोमती नदी के तट पर एक माह तक लगने वाला दाता करीम शाह का मेला जिसे धूनी का मेला भी कहा जाता है, क्षेत्र की गंगा जमुनी तहजीब का संगम है मेले में हिन्दू मुस्लिम दोनो आपसी सदभाव रखते हुए आस्था रखते है।हमारे संवाददाता ने दाता करीमशाह के पौराणिक मेले के इतिहास पर खोज की तो बडे बुजुर्गो के अनुसार बता दे कि तब का यह ईश गढ एक वीरान भयावह जंगल था यहां लोग आने से डरते थे सैकड़ो वर्ष पूर्व इस जंगल में तीन मित्र साधू का भेष धारण किए जंगल में प्रवेश किए कई दिनो तक घुम घूम कर आस पास के गांवो का भ्रमण किया इन तीन मित्रो ने इस घने जंगल में लगभग कई माह व्यतीत किए तीन मित्र साधू में एक मित्र का नाम करीम था करीम ने जंगल में ही घास फूस की एक कुटिया का निर्माण किया अन्य दो मित्र जब करीम का मन परख लिया कि यह अब यही रहने का प्रयत्न कर रहा है तो ये दोनो मित्र साधू करीम को वही जंगल में छोड़कर एक मित्र तो उत्तर दिशा की ओर तथा दूसरा मित्र पूरव दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया करीम के समझाने के बावजूद भी ये दोनो मित्र नही माने लेकिन करीम को यह वीरान जंगल रमणीक लगा और आजीवन यही रहने का प्रण कर लिया।इन्सेटकरीम की धूनी की राख से लोगों के दु:ख दूर होते थेइस भयावह जंगल में करीम ने कुटिया तो बना ली लेकिन दूर दूर तक कोई जंगल में प्रवेश नही करता था परन्तु करीम अकेले ही अपनी धूनी जला कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो गए धीरे धीरे करीम की धूनी दूर दूर तक चर्चित हो गई बताते है कोई भी दुखियारा अपना दुख करीम को सुनाता तो वह धूनी की राख को उसके ऊपर डाल देते और थोड़ी राख दे देते करीम को सिद्धी प्राप्त थी जिससे लोगों का दु:ख दर्द धूनी की राख से मिट जाता था।इन्सेटकरीम के पूर्व भी जंगल में बनी थी अलाली की मजारइस वीरान जंगल में जब करीम की धूनी रम गई तो लोगों में तरह तरह की चर्चाए होने लगी जिस जंगल में अलील की मजार व करीम की धूनी थी वह जंगल एक हिन्दू परिवार का था करीम कई वर्षो तक धूनी में रमे रहे अन्त में अपनी आयु पूरी कर शरीर का परित्याग कर दिया आस पास के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसी जंगल में करीम की एक मजार बनवा दी बताते है इस जंगल की जमीन जोशी परिवार की थी जिस पर मजार बनवाना लोगों को नागवार लगा इस मामले का एक वाद भी न्यायालय में दायर हुआ लेकिन उस समय न्यायाधीश की सूझ बूझ से दो पक्षो के मामले का पटाक्षेप हो गया क्योकि न्यायाधीश ने दोनो समुदायो की आस्था को देखते हुए करीम की मजार को दाता करीम शाह तथा अलील की मजार को अलील शाह का नाम देकर दोनो पक्षो को डिग्री दे दी आज दोनो समुदाय के लोग दाता करीम शाह में अपनी अपनी आस्था रखते है।इन्सेटएक माह तक लगने वाले दाता करीम शाह के मेले में बंगाल का जादूगर मौत का कुंआ बड़ा झूला श्रृंगार मिठाई की दुकान आसपास जनपदो की कपड़ो की दुकान लोहे की दुकान लकड़ी की दुकान समेत सैकड़ो दुकाने मेलार्थियो के लिए आकर्षक बनी हुई है क्षेत्र के लोग मेले से अपनी जरूरत मंद सामानो की खरीददारी मेले में करते है।
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