(सुलतानपुर)पदोन्नति मामले में गजब खेल

  • 24-Sep-25 12:00 AM

जिला विद्यालय निरीक्षक की कार्यशैली पर उठे सवालसुल्तानपुर 24 सितंबर (आरएनएस )। जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) की कार्यप्रणाली पर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं। कारण यह है कि महज़ चार महीनों के भीतर एक ही मामले में दो अध्यापकों की दो बार पदोन्नति हुई और दो बार उसे निरस्त भी कर दिया गया।मामला श्री सुभाष इंटर कॉलेज, पलिया से जुड़ा है। यहाँ कार्यरत सहायक अध्यापक राज बहादुर पाठक (अर्थशास्त्र विषय) और ओंकार नाथ (अंग्रेज़ी विषय) को पहले जिला विद्यालय निरीक्षक रविशंकर ने पदोन्नत किया था। लेकिन अनियमितताओं की शिकायत आने पर दोनों की पदोन्नति निरस्त कर दी गई। पदोन्नति निरस्त होने से क्षुब्ध होकर दोनों शिक्षक उच्च न्यायालय, लखनऊ पहुँचे। न्यायालय ने जिला विद्यालय निरीक्षक को सुनवाई करने का आदेश दिया। सुनवाई के बाद डीआईओएस ने दोनों की पदोन्नति फिर से बहाल कर दी। हालाँकि, इसके बाद एक बार फिर शिकायतकर्ता ने मामले को शिक्षा निदेशक तक पहुँचाया। शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) प्रयागराज से आए आदेश (पत्रांक सामान्य (1) तृतीय/10127/2025-26 दिनांक 17.09.2025) के आधार पर वर्तमान डीआईओएस सूर्य प्रताप सिंह ने दोनों अध्यापकों की प्रवक्ता पदोन्नति को पुन: निरस्त कर दिया।शिक्षा जगत में चर्चाचार महीने में एक ही मामले पर दो बार पदोन्नति और दो बार निरस्तीकरण ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या जिला विद्यालय निरीक्षक को माध्यमिक शिक्षा अधिनियम और नियमों का पर्याप्त ज्ञान नहीं है, या फिर विभागीय दबाव और अनियमितताओं का असर फैसलों पर पड़ रहा है.लचर कार्यशैली और भ्रष्टाचार पर सवालों में घिरे डीआईओएसविदित हो कि यही वही अधिकारी हैं, जिनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार की परतें खुलकर सामने आई थीं। उनके आते ही अजय यादव को एंटी करप्शन की टीम ने कार्यालय से ही रंगे हाथों पकड़ा था। वहीं लगभग 90 लाख रुपये के संदिग्ध भुगतान मामले में तत्कालीन अधिकारी राम शरण गुप्ता निलंबित हुए थे। यही नहीं, शासन स्तर पर भी इन क्प्व्ै की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठे हैं। उनकी लापरवाह और गैरजिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के चलते शासन ने उन्हें कारण बताओ नोटिस थमाकर कठोर चेतावनी दी थी।सूत्रों की मानें तो विभागीय माहौल बिगाडऩे, वित्तीय अनियमितताओं पर आंख मूंदने और अधीनस्थों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति के कारण इन क्प्व्ै के खिलाफ लगातार नकारात्मक फीडबैक शासन तक पहुंचता रहा है। शिक्षा जगत में चर्चा है कि ऐसे अफसरों के रहते पारदर्शिता और ईमानदारी की उम्मीद करना बेमानी है।.




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