
अंतरराष्ट्रीय पर्पल फेस्ट में श्रवण, पठन और लेखन की सुगमता को बढ़ाने के लिए तीन ऐतिहासिक पहलों का शुभारंभ
- 11-Oct-25 02:09 AM
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गोवा ,11 अक्टूबर (आरएनएस)। अंतरराष्ट्रीय पर्पल फेस्ट के दूसरे दिन श्रवण, पठन और लेखन के क्षेत्र में दिव्यांगजनों के लिए सुगमता को सशक्त बनाने वाली तीन परिवर्तनकारी पहलों का शुभारंभ किया गया। यह कदम समावेशी शिक्षा और कौशल विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन पहलों का शुभारंभ भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (ष्ठश्वक्क2ष्ठ) के सचिव श्री राजेश अग्रवाल द्वारा किया गया। इस अवसर पर श्री ताहा हाजि़क, सचिव, स्ष्टक्कष्ठ गोवा, श्रीमती ऋचा शंकर, श्री प्रवीण कुमार, ष्टरूष्ठ, ्ररुढ्ढरूष्टह्र, श्री कुमार राजू, निदेशक, भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट), श्री जसबीर सिंह, उप सचिव, श्री अनुपम शुक्ला, सुश्री देबाला भट्टाचार्य (अंडर सेक्रेटरी), तथा श्री एस. के. महतो, सेवानिवृत्त उप सचिव, ष्ठश्वक्क2ष्ठ भी उपस्थित रहे। ये लॉन्च सरकार की एक सुगम और बिना बाधा वाले शिक्षण तंत्र के निर्माण तथा दिव्यांगजनों को वैश्विक शिक्षा और पेशेवर अवसरों में पूर्ण भागीदारी के लिए सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
पहला प्रमुख लॉन्च 'आईईएलटीएस ट्रेनिंग हैंडबुक फॉर पर्सन्स विद डिसएबिलिटीजÓ का था, जिसे बिलीव इन द इनविजिबल (क्चढ्ढञ्जढ्ढ) ने ष्ठश्वक्क2ष्ठ, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सहयोग से विकसित किया है। ब्रिटिश काउंसिल प्रमाणित आईईएलटीएस ट्रेनर और क्चढ्ढञ्जढ्ढ की सह-संस्थापक अंजलि व्यास द्वारा लिखित यह हैंडबुक एक अनोखा और समावेशी संसाधन है, जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिए आईईएलटीएस की तैयारी को सुलभ, सुव्यवस्थित और सीखने योग्य बनाना है। यह प्रकाशन विद्यार्थियों के लिए स्व-अध्ययन मार्गदर्शिका तथा प्रशिक्षकों के लिए शिक्षण मैनुअल दोनों के रूप में कार्य करता है। इसमें दृष्टि, श्रवण, गतिशीलता (द्यशष्शद्वशह्लशह्म्) एवं अन्य दिव्यांगताओं से जुड़ी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए विशेष सुविधाओं, अनुकूलित रणनीतियों और व्यवहारिक उपकरणों को शामिल किया गया है।
इसमें आईईएलटीएस के चारों मॉड्यूल — लिसनिंग, रीडिंग, राइटिंग और स्पीकिंग — के लिए क्रमबद्ध निर्देश, कौशल-विकास गतिविधियाँ, विभिन्न स्तरों के लिए सुलभ अभ्यास सामग्री, दिव्यांग शिक्षार्थियों के लिए उपयुक्त शिक्षण रणनीतियाँ, लेसन प्लान, परीक्षा तैयारी तकनीक, समय प्रबंधन के सुझाव, व्याकरण एवं शब्दावली निर्माण सहायता, भारतीय सांकेतिक भाषा (ढ्ढस्रु) के वीडियो लिंक और सुलभ अध्ययन संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। यह प्रकाशन समावेशी शिक्षा और वैश्विक भाषा दक्षता प्रशिक्षण में समान अवसर प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
दूसरी महत्वपूर्ण घोषणा भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट), नई दिल्ली द्वारा की गई, जो ढ्ढस्रु के विकास, अनुसंधान और प्रशिक्षण का शीर्ष संस्थान है। ष्ठश्वक्क2ष्ठ की कौशल प्रशिक्षण पहल के तहत ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट ने 11 अगस्त से 29 अगस्त 2025 तक ऑफलाइन मोड में 'रिसग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (क्रक्करु) – सर्टिफिकेशन इन ढ्ढस्रु इंटरप्रिटेशन (ष्टढ्ढस्रुढ्ढ)Ó / स्ह्रष्ठ्र (स्द्बड्ढद्यद्बठ्ठद्दह्य शद्घ ष्ठद्गड्डद्घ ्रस्रह्वद्यह्लह्य) और ष्टह्रष्ठ्र (ष्टद्धद्बद्यस्रह्म्द्गठ्ठ शद्घ ष्ठद्गड्डद्घ ्रस्रह्वद्यह्लह्य) के लिए स्किल कोर्स सफलतापूर्वक आयोजित किया। भारत के विभिन्न हिस्सों से 17 प्रतिभागियों ने परीक्षा दी और सभी ने कोर्स सफलतापूर्वक पूर्ण किया। उनके प्रदर्शन के आधार पर ग्रेड प्रदान किए गए। इस प्रथम बैच को प्रमाण पत्र वितरण समारोह 3 दिसंबर 2025 को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस पर आयोजित किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय सांकेतिक भाषा पेशेवरों को द्ग&श्चशह्यह्वह्म्द्ग प्रदान करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट ने अमेरिकन सांकेतिक भाषा (्रस्रु) और ब्रिटिश सांकेतिक भाषा (क्चस्रु) पर एक विशेष बेसिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की भी घोषणा की। यह एक महीने (4 सप्ताह) का ऑफलाइन कार्यक्रम ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट, नई दिल्ली में 3 दिसंबर 2025 से आरंभ होगा। इसका उद्देश्य ढ्ढस्रु पेशेवरों को ्रस्रु और क्चस्रु की मूलभूत जानकारी, व्याकरण, वाक्य रचना और शब्दावली से परिचित कराना तथा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय दुभाषियों के पेशेवर अवसरों को सुदृढ़ बनाना है। यह पहल ढ्ढस्रुक्रञ्जष्ट की भूमिका को सशक्त बनाएगी और अंतरराष्ट्रीय बधिर आगंतुकों को भारतीय संस्कृति और विरासत से अवगत कराने का अवसर भी प्रदान करेगी।
ये तीनों पहलें मिलकर एक साझा दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती हैं — एक ऐसा सुलभ, समावेशी और सशक्त मार्ग बनाना, जिससे दिव्यांगजन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सीख सकें, संवाद कर सकें और उन्नति कर सकें।
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