अब सम्मान नहीं बल्कि लोकप्रियता हासिल करना ही मुख्य लक्ष्य

  • 03-Jan-25 12:00 AM

श्रुति व्यासअब वह समय नहीं रहा जब आप झूठ न बोल कर सम्मान के पात्र बनते थे। आज राजनीति में झूठ बोलकर ही अपना नैरेटिव, सहानुभूति और जनसमर्थन चाहिए।हम बहुत भद्दे, गंदे समय में जी रहे हैं। एक बुरी तरह बंटे और कटे हुए समाज में जी रहे हैं। हर आदमी सही है और हर आदमी गलत है। जो हर एक मुद्दे पर हमसे सहमत नहीं हैं वो हमारे लिए बुरा बन जाता है। राजनीति ने हालात और खऱाब किए हैं। लोगों को बांट दिया है, धुव्रीकृत कर दिया है। नेता अब विचारधारा के आधार पर नहीं चुने जाते है। हम किसी पार्टी को इसलिए वोट नहीं देते है क्योंकि हमें उस पर भरोसा है। बल्कि हम उसे इसलिए वोट देते हैं क्योंकि हम उसकी विरोधी पार्टी से डरते हैं या नफरत करते हैं। हम किसी को पसंद नहीं करते, हम उसके प्रतिद्वंदी को नापसंद करते है।तभी बंटे हुए समाज में, इस ध्रुवीकरण से लोकलुभावन बातें बेइंतहा बढ़ गई है। सारी दुनिया में मुख्यधारा के अधिकांश राजनेता अब वोट हासिल करने और लोगों को भावनात्मक रूप से अपने से जोडऩे के लिए एक ही राग अपनाएं हुए है कि वे आम आदमी के पक्षधर हैं और कुलीनों, बड़े लोगों के विरोधी हैं।लोक लुभावन बातें सिर्फ दलगत राजनीति तक सीमित नहीं हैं। सार्वजनिक संवादों में लोकलुभावनवाद का प्रयोग मुख्यत: सत्ता-विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए किया जाता है, इस नजरिए को पेश करने के लिए किया जाता है कि कुलीन भ्रष्ट हैं। यह धारणा इस हद तक बढ़ चुकी है कि कुलीन वर्ग Ó - जिसमें पढे-लिखे, अध्येता और पत्रकार भी शामिल हैं - ने इसे स्वीकार लिया है। नियति मान लिया है कि अब ऐसे ही चलेगा। यह हमारी रोजमर्रा की चर्चाओं में शामिल हो चुका है। यह सब मान चुके हैं कि कुलीन, बौद्धिक वर्ग भ्रष्ट है और आम लोगों के कॉमनसेंस, सहज समझदारी की चिंता नहीं करता।पिछले तीन-चार दिनों में - पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देहावसान के बाद से - यह विभाजन साफ तौर पर दिखलाया दिया है। सोशल मीडिया विरोध और नफरत से भरा हुआ है। सब एक दूसरे की हर मुद्दे पर खिलाफत कर रहे हैं। इनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों शामिल हैं। पुराने, एक सेकंड लम्बे वीडियो खोद निकाल पोस्ट किए जा रहे हैं ताकि गुस्सा भड़के। पार्टियों के ट्रोल योद्धा जोरशोर से ऐसी चीज़ें पोस्ट कर रहे हैं जिससे नफरत और बढ़ रही है। विरोधी भावनाएंÓ उफान पर हैं। विरासतों को कलंकित किया रहा है। प्राण त्याग चुके व्यक्ति की आत्मा को बार-बार यातना दी जा रही है - एक के बाद एक ट्वीट करके, मौके पर चौका मारने के लिए और इतिहास पर पर्दा डाला जा रहा है।मैं यह नहीं समझ पा रही हूँ भाजपा द्वारा फैलाए जा रहे नैरेटिव - विशेषकर देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु से जुड़े हुए नैरेटिव - से भला किस तरह उसे आगे राजनैतिक, चुनावी लाभ हासिल होगा या पार्टी की इमेज चमकाई जा सकती है? लेकिन जब सत्ता पाना, उसके इस्तेमाल करने, से अधिक महत्वपूर्ण होता है तब कुछ भी सही या गलत नहीं रह जाता। आज की राजनीति इस हद तक नफरत भरी हो गई है कि झूठ बोलने में लोगों को मज़ा आता है। राजनीतिज्ञ अपने विरोधियों को दानव साबित करने में जुटे हुए हैं, फिर चाहे वे इस दुनिया में हों या न हों।वे दूसरे पक्ष को भ्रष्ट, अतिवादी और बेईमान साबित करने के लिए बिना किसी झिझक के झूठ का सहारा ले रहे हैं। आखिरकार सच्चाई का सामना करने के लिए दमदार लीडरशीप की जरूरत होती है और राजनीति करने से आपको सदैव सबका सम्मान हासिल नहीं होता। डॉ। मनमोहन सिंह को हमेशा कड़वी अपमानजनक बातें सुननी पड़ीं लेकिन वे चुप्पी साधे रखने के अपने संकल्प से नहीं डिगे। उन्हें उनके कामों के लिए याद रखा जाएगा, उनका काम बोलेगा, यही उनका नजरिया रहा। और जो सहज बुद्धिÓ के पक्षधर हैं, वे सदैव उन्हें इसके लिए ही याद रखेंगे। शायद यही वजह है कि लुटियन्स दिल्ली के बहुत से बड़े क्लबों ने नए साल के जश्न के कार्यक्रम एक ऐसे नेता के सम्मान में रद्द कर दिए हैं जिन्हें भारत की अर्थव्यवस्था को आज़ादी दिलाने वाले सेनानी के नाते याद किया जाता है।लेकिन दौर बहुत घिनौना है। अब वह समय नहीं रहा जब आप झूठ न बोल कर सम्मान के पात्र बनते थे। आज राजनीति में हालात यह हैं कि झूठ बोलकर ही सहानुभूति, करूणा और जनसमर्थन हासिल करने का जुनून किया है; इतिहास और समाज को बदलने की कोशिश है। क्योंकि अब सम्मान हासिल करना नहीं बल्कि लोकप्रियता हासिल करना ही मुख्य लक्ष्य है।




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