
इण्डियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा पर साप्ताहिक कार्यशाला
- 27-Aug-25 02:27 AM
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अमरकंटक,27 अगस्त (आरएनएस)। इण्डियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के द्वारा 'भारतीय ज्ञान प्रणाली: राष्ट्रीय पहचान और वैश्विक सद्भावÓ विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 15 सितंबर से 22 सितंबर के बीच होने जा रहा है। इस कार्यशाला में सम्पूर्ण भारत के विद्वानों को आमंत्रित किया गया है जो भारतीय ज्ञान प्रणाली: राष्ट्रीय पहचान और वैश्विक सद्भावÓ विषय के विभिन्न आयामों में युवा शोधार्थियों का मार्गदर्शन करेंगे। इस कार्यशाला के समन्वयक विकाश कुमार (अध्यक्ष इण्डियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन) नें बताया कि यह बहुत महत्वपूर्ण कार्यशाला है जिसमें देश के विभिन्न भागों से विद्वानों को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया है। इसके उदघाटन सत्र में मुख्य वक्ता प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री बी.आर.शंकरानंद जी होंगे जिनके द्वारा इस विषय के विभिन्न पक्षों, प्रासंगिकता और आवश्यकता पर युवा शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया जाएगा। उदघाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. जगबीर सिंह, माननीय कुलाधिपति, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय होंगे। उदघाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्रो. बलदेव भाई शर्मा होंगे जबकि इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. कपिल कपूर, पूर्व अंग्रेजी के प्रोफेसर, भाषा विज्ञान एवं अंग्रेजी केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के द्वारा की जाएगी। इस कार्यशाला के समापन सत्र में भी भारतीय ज्ञान परम्परा के विद्वानों के द्वारा मार्गदर्शन दिया जाएगा। समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. पीवी कृष्ण भट्ट, माननीय कुलाधिपति, केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा, विशिष्ट अतिथि प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी, माननीय कुलाधिपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय,एवं समापन व्याख्यान प्रो. सरोज शर्मा, पूर्व प्रमुख,राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के द्वारा दिया जाएगा जबकि समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. शशि प्रभा कुमार अध्यक्ष, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के द्वारा की जाएगी। इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न संस्थानों से 15 प्राध्यापक, सह-प्राध्यापक, एवं सहायक प्राध्यापक कुल 15 अकादमिक सत्रों में इस विषय के विभिन्न आयामों की चर्चा करेंगे। जिनमें प्रो. गौरी माहुलिकर अकादमिक निदेशक, चिन्मय अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन, एवं पूर्व कुलपति, चिन्मय विश्वविद्यालयपीठ, केरल, प्रो. पी. अरुणाचलम, फेलो, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, प्रो. वीनू पंत, प्राध्यापक इतिहास, सिक्किम विश्वविद्यालय, प्रो. निधि चतुवेर्दी दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, प्रो. विजय फकीरा नागनन्नवर वरिष्ठ प्रोफेसर एवं डीन, कला संकाय, अंग्रेजी विभाग, रानी चन्नम्मा विश्वविद्यालय, कर्नाटक, प्रोफेसर मुक्तिकांत मोहंती फेलो, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, शिमला, प्रो. निधि शर्मा प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, प्रो.बृजेन्द्र पांडे प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, प्रो. देबिका साहा पूर्व प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र विभाग, उत्तरी बंगाल विश्वविद्यालय, प्रोफेसर रविंदर सिंह दयाल सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो. सुनीता ग्रांधी चिन्मय विश्वविद्यालय, डॉ. रवि रमेशचंद्र शुक्ल तुलनात्मक राजनीति एवं राजनीतिक सिद्धांत केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संकाय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय डॉ. नंद किशोर एम.एस. राजनीति एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग, पांडिचेरी विश्वविद्यालय डॉ. हर्ष सिम्हा एसोसिएट प्रोफेसर, भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, वलियामाला, पी.ओ., तिरुवनंतपुरम, एवं डॉ. प्रशांत धर्माधिकारी अंग्रेजी अध्ययन विभाग, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, वडोदरा के द्वारा विभिन्न अकादमिक सत्रों में व्याख्यान दिया जाएगा। इन विद्वानों के द्वारा दिए गए सभी व्याख्यान युवा पीढ़ी के लिए अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण होंगे । भारतीय ज्ञान प्रणाली केवल ज्ञान की परंपरा नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक चेतना की पहचान है। यह प्रणाली हजारों वर्षों से भारत के सामाजिक जीवन, विचारधारा, जीवनशैली और वैश्विक दृष्टिकोण को दिशा देती आई है। भारतीय ज्ञान प्रणाली केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला, प्रकृति के साथ समरसता, आध्यात्मिक चिंतन, विज्ञान, गणित, चिकित्सा, भाषा, दर्शन, संगीत, नृत्य, योग और नीति जैसे क्षेत्रों में फैली हुई है। वैदिक ज्ञान, उपनिषद, रामायण, महाभारत, योगसूत्र, आयुर्वेद, नाट्यशास्त्र — ये सभी भारतीय ज्ञान परंपरा के स्तंभ हैं। इस परंपरा में सर्वे भवन्तु सुखिन: और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे विचार केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि व्यवहार के आदर्श हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा है। इस कार्यशाला का उद्देश्य शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और छात्रों को भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) की गहनता और विविधता का अन्वेषण करने हेतु एक दृष्टिकोण प्रदान करना है। भारत अपनी संस्कृति, मूल्यों, बौद्धिक परंपरा और प्राचीन ज्ञान प्रणाली में समृद्ध है, जो नालंदा और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और वैदिक गणित जैसे योगदानों में परिलक्षित होती है। भारतीय संस्कृति और मूल्य सारी दुनिया एक परिवार है, वसुधैव कुटुम्बकम (संस्कृत: वसुधैव कुटुम्बकम्) की भावना रखते हैं, जैसा कि इसके महाउपनिषद में उल्लेखित है। भारतीय ज्ञान प्रणाली ज्ञान की एक विशाल विरासत प्रस्तुत करती है जो युगों से विकसित हुई है, जिसमें कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र, साहित्य, स्वास्थ्य, शासन, दर्शन आदि शामिल हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। इस वैश्वीकृत युग में, तीव्र तकनीकी परिवर्तन, सांस्कृतिक बदलाव और नई चुनौतियाँ मौजूद हैं; समावेशी विकास और सांस्कृतिक गौरव के साथ सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए आईकेएस की समीक्षा और पुनर्व्याख्या आवश्यक है।
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