इरडाई स्वयं लचर
- 08-Jun-24 12:00 AM
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नवल किशोर कुमारआज के दौर में स्वास्थ्य एक बड़ा सवाल है और इसके लिए आंकड़ों की कोई कमी नहीं है। फिर चाहे वह कैंसर रोगियों की संख्या का मामला हो या फिर हृदय संबंधी रोग से ग्रस्त लोगों की संख्या का।यह संख्या कितनी अधिक हो सकती है, उसका अनुमान सिर्फ इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में रोजाना 10 से 15 हजार नए मरीज इमरजेंसी से लेकर जनरल ओपीडी में आते हैं।यह हाल बेशक देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का है, लेकिन इसके आधार पर पूरे देश के स्तर पर यदि हम संख्या का अनुमान लगाएं तो हम इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि आज स्वास्थ्य के मामले में हम कहां खड़े हैं। हालांकि देश में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार के स्तर पर आधारभूत संरचना मौजूद है। मसलन, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस (सीबीएचआई) द्वारा 2019 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 23,581 सरकारी अस्पताल और 22 सेंट्रल गवर्नमेंट के अस्पताल हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आज के दौर में यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान है और बड़ी संख्या में लोगों को निजी अस्पतालों की शरण में जाना पड़ता है।इसके अलावा इलाज के खर्चे में हुई गुणात्मक बढ़ोतरी के कारण निम्न आय वर्गीय लोगों को गुणवत्तायुक्त इलाज से वंचित कर दिया है। वहीं मध्यम आय वर्गीय परिवारों के लिए भी यह कम मुश्किलों वाला नहीं रह गया है। ऐसे में स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमा कंपनियों से उसे राहत जरूर मिलती है। मसलन, इलाज का खर्चा बीमा कंपनियां उठाती हैं और इसके बदले इस सुविधा के उपभोगकर्ता को बीमा योजना के तहत एक तय राशि प्रीमियम के रूप में चुकानी होती है, लेकिन बीमा कंपनियों से बीमा का दावा करना अमूमन आसान नहीं होता। दस्तावेज संबंधी कागजातों के निष्पादन के नाम पर अनावश्यक देरी बहुत साधारण सी बात है।लिहाजा होता यह है कि बीमा कराने के बाद भी मरीज को अपने इलाज के लिए प्रारंभ में अपने पैसे से इलाज कराना होता है। इसके कारण उन्हें आर्थिक संकट का सामना तो करना ही पड़ता है, सबसे अधिक संकट समय पर इलाज नहीं शुरू होने के कारण होता है। खैर, मध्यम आय वर्गीय लोगों के लिए यह राहत भरी खबर है कि भारतीय बीमा नियामक व विकास प्राधिकरण (इरडाई) ने बीमा कंपनियों की मनमानी पर नकेल कसने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। हालांकि उसने यह कदम तब उठाए हैं जब लोकल सर्किल्सÓ के एक सर्वे का परिणाम सामने आया है, जिसमें 43 प्रतिशत बीमाधारकों ने यह कहा है कि बीमा कंपनियां संकट के समय साथ तो नहीं ही देती हैं, संकट के बाद भी बीमा की राशि देने में आनाकानी करती हैं। इरडाई ने कहा है कि आपात मामलों में बीमा कंपनी को आवेदन प्राप्त होने के एक घंटे के अंदर कैशलेस प्राधिकरण के अनुरोध पर निर्णय लेना चाहिए। बीमाकर्ता कंपनियां इसके लिए आगामी 31 जुलाई तक तैयारी कर लें। इसके अलावा वे चाहें तो कैशलेस ऑथराइजेशन को सुगम बनाने के लिए अस्पताल में डेस्क बना सकती हैं।ठीक वैसे ही जैसे एयरपोर्ट पर विभिन्न विमानन कंपनियां अपना डेस्क उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए बनाती हैं। इरडाई ने यह भी कहा है कि वे डिजिटल माध्यम से ऑथराइजेशन देने की प्रक्रिया शुरू करें। इसके अलावा उसने बीमा कंपनियों को यह भी कहा है कि अब कोई भी दावा वे प्रोडक्ट मैनेजमेंट कमिटी की मंजूरी के बिना खारिज नहीं की जा सकेगी। यदि कोई दावा आंशिक रूप से या पूरी तरह से खारिज किया जाता है तो पॉलिसी के दस्तावेज के नियमों और शतरे सहित पूरा विवरण उपभोक्ता को उपलब्ध कराना होगा।इन सबके अलावा इरडाई ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि इलाज के दौरान मरीज की मौत होने पर बीमा कंपनियों को एक घंटे के अंदर बीमे की राशि का भुगतान करना होगा और यह भी कि संबंधित अस्पतालों से दस्तावेज संग्रह करने का काम बीमा कंपनियां स्वयं करेंगीं, मृतक के परिजन नहीं। जाहिर तौर पर ये कुछ ऐसे पहल हैं, जिनसे मध्यम आय वर्गीय परिवारों को राहत मिल सकती है और वे उम्मीद कर सकते हैं कि अपनी गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा जो वे बीमा कंपनियों को दे रहे हैं, वह जाया नहीं होगा। समय पडऩे पर वह काम आएगा, लेकिन इसमें बड़ी अड़चन यह है कि इरडाई स्वयं इस मामले में लचर रहा है।ऐसे मामले बहुत कम ही आए हैं, जिनमें बीमाधारकों की शिकायत पर इरडाई ने आगे बढ़कर बीमाकर्ता कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की हो। आज स्वास्थ्य संबंधी बीमा के क्षेत्र में भारतीय जीवन बीमा निगम जैसी देशी कंपनियां तो हैं ही, विदेशी कंपनियां भी हैं। अब यह पूरी तरह से बाजार का रूप ले चुका है। आंकड़ों के रूप में कहें तो आज का भारत वैश्विक स्तर पर 10वां सबसे बड़ा बाजार है और सभी उभरते बाजारों में दूसरा सबसे बड़ा है, जिसका अनुमानित बाजार हिस्सा 1.9 प्रतिशत है। उम्मीद है कि भारत आने वाले दशक में सबसे तेजी से बढ़ते बीमा बाजारों में से एक के रूप में उभरने के लिए तैयार है। वर्तमान में देश में 67 बीमाकर्ता कंपनियां हैं, जिनमें से 24 जीवन बीमाकर्ता, 26 सामान्य बीमाकर्ता हैं, 5 एकल स्वास्थ्य बीमाकर्ता कंपनियां और 12 पुनर्बीमाकर्ता हैं।हम चाहें तो इस निष्कर्ष पर भी पहुंच सकते हैं कि भारत में बीमा उद्योग ने पिछले दो दशकों में प्रभावशाली वृद्धि दर देखी है, जो निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी और वितरण क्षमताओं में सुधार के साथ-साथ परिचालन दक्षता में पर्याप्त सुधार के कारण संभव हो पाई है, लेकिन मूल समस्या उन लोगों की है जो अब भी बीमाधारक नहीं हैं। ये वे लोग हैं जो दिहाड़ी मजदूर हैं, खेतिहर मजदूर हैं। या फिर हम चाहें तो इनमें असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों को शामिल कर सकते हैं। इन लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और इनके वास्ते सरकारी अस्पताल हैं, जिनकी गुणवत्ता पर हमेशा प्रश्नचिह्न लगा रहता है। देश और राज्यों की राजधानियों के मुख्य अस्पतालों को छोड़ दें तो जिला स्तर पर जो सरकारी अस्पताल मौजूद हैं, वे रेफरल अस्पताल बनकर रह गए है। जाहिर तौर पर यह काम इरडाई का नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों का है, जिन्हें जन-स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकता सूची में ऊपर रखना होगा और स्वास्थ्य क्षेत्र पर बाजार को पूर्ण रूप से हावी होने से रोकना होगा। वजह यह कि यह देश जितना उच्च आर्य वर्ग और मध्यम आय वर्ग के लोगों का है, उतना ही निम्न आय वर्ग के लोगों का भी।
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