उत्तर भारत में पहाड़ों पर वारिस से तबाही और भूस्खलन से लोगों की परेशानियां बढ़ी

  • 01-Jul-25 12:00 AM

अजय दीक्षितउत्तर भारत में विशेषकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर में भारी बारिश से तबाही का मंजर देखने को मिलता है और यह प्रतिवर्ष होता है। उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश सड़क,भवन,रास्तों,को भारी नुक्सान होता है। जुलाई, अगस्त, सितंबर,में उत्तरकाशी, गढ़वाल,टिहरी, रानीखेत, अल्मोड़ा,मंडी, बिलासपुर, शिमला, नैनीताल, देहरादून आदि जिलों में भीषण तबाही होती है।यह सिलसिला विगत तीस साल से बढ़ा है क्योंकि इन क्षेत्रों में तीस लाख पेड़ विकास के नाम पर दस साल में काटे गए हैं। बेहतासा बढ़ते पर्यटन को देखते हुए इन क्षेत्रों में सरकारों ने सड़कों का निर्माण किया है और व्यवसायियों ने होटलों का निर्माण किया है।अकेले शिमला, नैनीताल में 2०० होटल है जिनसे पहाड़ों पर वजन बढ़ा है और वारिस के दिनों लैंड स्लाइड्स का खतरा भी हजारों प्रतिशत बड़ा है।भवनों ,बाजारों में अतिक्रमण हो गया है जो पूरे भारत की लाइलाज बीमारी है।पर्वतीय क्षेत्र शोध संस्थान देहरादून के जलवायू शोध कर्ता एस जयशंकर कहते हैं कि पहाड़ों पर हरित क्षेत्रों के चलते यहां नमी अधिक रहती है इसके अलावा तापक्रम भी कम रहता है इस कारण वारिस बहुत और तेज होती है । कुमायूं और गढ़वाल दोनों स्थानों पर औसत बारिश 2000 मिली मीटर के आसपास है।वारिस के दिनों पानी 3000 मीटर की ऊंचाई से आता है और उसकी ग्रैविटी अधिक होती है जो भूस्लखन का कारण बनती है।पहाड़ कच्चे है जियोलॉजी की भाषा में डिसेंट्रीग्रेटेड रॉक है ।भवनों, सुरंगों,सड़कों के निर्माण के कारण पहाड़ पोली या दरक गए हैं और पानी के तेज बहाव से गिर जाते हैं।कभी कभी पानी भारी सिल्ट लेकर बहते हैं जैसा पिछली बार ब्यास नदी ने मनाली में तबाही मचाई थी।सरकारों की पर्यटन को पर्यावरण से समन्वय बिठाना चाहिए पहाड़ों के दूर दराज के गांव में लैंड स्लाइड्स नहीं होते हैं क्योंकि वे सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर भवन पगडंडी, पुल बनाते हैं जिसमें अधिकतर लकड़ी के हल्के होते हैं। लेकिन पूरे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए हैं।पूरे जम्मू कश्मीर में हालत इतने खराब नहीं जितने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में हैं उसका कारण है कि घाटी में पचास साल से तो विकास नहीं हुआ क्योंकि वहां पर आतंकवाद था पर्यटकों का आना जाना नहीं था।तो विकास भी नहीं हुआ। कश्मीर घाटी में अगर श्री नगर को छोड़ दें तो वहां सभी मकान लकड़ी के है।पूरा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश भूकंप की जद में है।क्योंकि इन क्षेत्रों की टाइटेनिक प्लेट का खिसकने का खतरा बढ़ गया है।अगर कभी भूकंप 8 रैकेटियर स्केल पर आ गया तो तबाही मचा देगा। बांधो के निर्माण से भी खतरा बढ़ गया है।




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