केजरीवाल और आप का राजनीति का नशा उतरा

  • 16-Feb-25 12:00 AM

अनिल चतुर्वेदीकहते हैं वक्त खऱाब हो तो ऊँट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। दिल्ली विधानसभा के इन चुनावों में लगता है अरविंद केजरीवाल केजरीवाल और उनकी पार्टी आप के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ दिखा।दिल्ली में लोगों और ख़ासकर महिलाओं को केजरीवाल ने जो सुविधाऐं मुहैया कराई उनसे ज़्यादा उन्होंने भविष्य में मिलने का वादा की गईं सुविधाओं पर भरोसा कर भाजपा को उम्मीद से ज़्यादा वोट दिए।या यूँ कहिए कि मोदी है तो मुमकिन हुआ पर साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आप पार्टी के पिछले तीन चुनावों से मोदी प्रधानमंत्री हैं पर तब क्यूं नहीं मोदी मुमकिन कहना सार्थक हो सका ।तभी इन चुनावों में केजरीवाल की हार के बाद यह कहावत भी सटीक है कि वक्त तो ऊँट पर बैठा नेता केजरीवाल चुनाव हार गए।दिल्ली में महिलाओं को मिल रहीं सुविधाएँ गर्भ में चलीं गई भविष्य में मिलने वाली सुविधाओं पर भरोसा हुआ और ऐसा कि एक दशक से सत्ता में बैठे केजरीवाल और उनकी पार्टी का राजनीति का नशा उतर गया।महिलाओं ने पुरुषों से कहीं अधिक वोट भाजपा डाल जता दिया कि केजरीवाल को देखलिया अब भाजपा को देखेंगे। महिलाओं ने जहां 61.92 फ़ीसद वोट डाले वहीं पुरूषों ने 60.21 ही वोट डाले। यही नहीं वोटिग में भी महिलाएँ आगे रहीं।तभी कहा जा रहा है कि भाजपा की इस जीत में महिला फ़ैक्टर ज़्यादा रहा। अब भले 2020 के चुनाव में आप पार्टी ने महिलाओं को बसों में मुफ़्त यात्रा सुविधा दी और यह आप की जीत का आधार बना था।और इस बार भी महिलाओं की लिए सुविधाओं का पिटारा खुलना था जिसमें फ्ऱी बस के अलावा महिला सम्मान योजना में 2100 रूपये हर महीने देने का वादा था।यही नहीं कांग्रेस की तरफ़ से भी 2500 रूपये हर महीने देने का वादा था और साथ ही गरीब महिलाओं को 500 में सिलेंडर के अलावा त्योहार पर पर फ्ऱी गैस सिलेंडर के अलावा 2100 रूपये भी देने का वादा था।लेकिन भाजपा की ओर से बुजुर्गों को पेंशन,2000 रूपये हर महीने से बढ़ाकर 2500 के अलावा पेंशन राशि बढ़ाने के साथ ही झुग्गी बस्ती में अटल कैंटीन और फिर मोदी की गारंटी पर पर ज्या भरोसा कर भाजपा के लिए वोट दिए। और भाजपा ने 70 में 48 सीटें जीतीं।भला हो दिल्ली के लोगों और ख़ासकर महिलाओं का कि भाजपा उनसे किए गए वादें को पूरा करें और अगले चुनावों के लिए अपनी ज़मीन पक्की पर अगर इन वादों और केजरीवाल की योजनाओं को जारी रखने का वादा पूरा करने की बजाए इन्हें पिछले चुनावी वादों की तरह चुनावी जुमला करार दे दिया गया तो क्या तो होगा वादों का और कैसे कहेंगे लोग कि मोदी है तो मुमकिन है ।विधानसभा चुनावों में 70 सीटों में से 48 सीटें जीतने वाली भाजपा के सामने अब दिल्ली का मुख्यमंत्री चुनने की चुनौती है।यूँ सीएम बनने की चाहत में दिल्ली भाजपा के पुराने और धुरंधर नेता चुनाव जीतने के बाद से गणेश पर्कि्रमा लगे हैं।माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के फ्ऱांस और अमेरिका के दौरे के बाद यानी 15 फऱवरी तक सीएम के नाम का एलान हो सकेगा। और जीते हुए विधायकों का शपथ ग्रहण समारोह भी इसी दौरान होगा।कहा जा रहा है कि सीएम बनाते समय बिहार और फिर यूपी में होने वाले चुनावों में पार्टी की चुनौतियों को भी ध्यान रखा जाना है।इस हिसाब से सांसद मनोज तिवारी भी इस क़तार में माने जा रहे हैं। जबकि दावा अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली से हराने वाले प्रवेश वर्मा के समर्थक भी दबाव बनाए हुए हैं।यह अलग बात है कि सीएम की लाईन में जनकपुरी से जीते वरिष्ठ नेता आशीष सूद ,मालवीय नगर से जीते पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय,रोहिणी से जीते और विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंदर गुप्ता,और संघ की पृष्ठभूमि से निकले पवन शर्मा भी शामिल हैं। पर दारोमदार आकाओं के हवाले है।दिल्ली में पूर्वांचल के लोगों को मनोज तिवारी को सीएम बनाए की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के सातों में से अकेले मनोज तिवारी को ही टिकट दिया गया था और जीते भी।शालीन और मृदुभाषी तिवारी विवादों में भी कम ही रहे है। चर्चा तो है कि राजस्थान,एमपी और दूसरे राज्यों की तरह सीएम के किए गए सिलेक्शन की तरह दिल्ली में कोई चौंकाने वाला नाम इस पद के लिए लाया जा सकता है।भला किसकी परिक्रमा सफल रहती है और सीएम कौन बनाया जाता है सीएम पर सीट पर बैठने के साथ ही चुनौतियाँ भी शुरू हो जानी हैं ख़ास यह भी कि विपक्ष केजरीवाल सरीखे खूंसट और उनके साथियों का रहना है।विधानसभा की हॉट सीटों में से एक कालकाजी सीट से जीतीं दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को अपनी जीत के लिये वोटरों के अलावा प्रतिद्वंद्वी भाजपा के रमेश विधूडी और कांग्रेस की अलका लांबा का भी शुक्रगुज़ार करना चाहिए।इनमें से भी रमेश बिधूडी का ख़ासतौर से। भाजपा के सांसद रहे बिधूडी अपने व्यवहार और बेबाक़ी के लिए पहचाने जाते रहे हैं भले संसद हो या फिर विधानसभा चुनाव सीट।जिस तरह उन्होंने पिछले दिनों संसद में अपने ही एक साथी को गरिआया उसी तरह उन्होंने इन चुनावों में दिल्ली की मुख्यमंत्री और इस चुनाव में कालकाजी से आप पार्टी की दावेदार और उनकी प्रतिद्वंद्वी आतिशी को भी उन्होंने खूब गरिआया ।संसद में उनकी बेबाक़ी को तो पार्टी ने अनदेखा कर दिया था पर शायद दक्षिण दिल्ली की इस सीट के वोटरों को उनका मिज़ाज भाया नहीं। और जबाव उन्हें अपने वोट से दिया।सच पूछो तो इस हार के बाद वे दिल्ली का सीएम बनने की इच्छा से चूक गए। वरना तो बिधूडी का चेहरा सीएम के बाक़ी चेहरों से कोई कम नहीं था।कमोवेश ऐसा ही कांग्रेस की अलका लांबा के साथ कांग्रेसी नेताओं के व्यवहार से भी आतिशी को राहत मिली। यह अलग बात है कि अलका को उनके विधानसभा क्षेत्र से बाहर लड़ाया गया ,वे हारीं और इसका लाभ आतिशी को सौ फ़ीसद मिला।पर कोई कहे कि अलका हारीं तो अलका जीत सकतीं थी बशर्ते कांग्रेसी साथ देते। पर कौन जानता था कि अलको को हराने और एक कांग्रेसी नेता की यह इच्छा पूरे करने के लिए कि अलका को 5000 से ज़्यादा वोट नहीं मिल सकें ने अलका की जीत की कोशिश पर विराम लगा दिया।यह अलग बात रही कि टिकट मिलने के साथ ही अलका को चिंता थी कि कांग्रेसी साथ नहीं देंगे ।इसी के चलते दिल्ली के एक जानेमाने वकील और कांग्रेस नेता ने इस विधानसभा में आकर बैठक की और नाराजग़ी छोड़ उम्मीदवार को जिताने की कोशिश का आग्रह भी कियापर क्षेत्र के नेता नाराजग़ी दूर नहीं हुई और अलका हारीं और फ़ायदा आतिशी को भी मिला। अब भला अपनी जीत के लिए आतिशी क्या मानती हैं पर यह ज़रूर है कि उनकी जीत में वोटरों और विरोधी नेताओं की हिस्सेदारी तो बनती ही है।




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