चंदा सत्ता की पार्टी को ही!

  • 19-Mar-24 12:00 AM

हरिशंकर व्यासचुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिले चंदे का ब्योरा सार्वजनिक हो गया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने का जो कानूनी तरीका स्थापित किया गया था उसमें पारदर्शिता की कोई गुंजाइश नहीं थी। देश के नागरिकों से यह बात छिपाई गई कि किस पार्टी को कौन चंदा दे रहा है और कितना चंदा दे रहा है? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस गोपनीयता पर से परदा हटा दिया है।यह भी कह सकते हैं कि पहला परदा हट गया है। यह पता चल गया है कि किस कंपनी ने किस तारीख को कितने रुपए का बॉन्ड खरीदा। यह भी पता चला है कि किस पार्टी ने किस तारीख को कितने रुपए का बॉन्ड भुनाया। हालांकि अब भी बॉन्ड का यूनिक नंबर सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे यह पता चले कि किस कंपनी द्वारा खरीदा गया बॉन्ड किस राजनीतिक दल ने भुनाया है। फिर भी यह पता चल गया है कि किस कंपनी ने सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदा और किस पार्टी ने सबसे ज्यादा बॉन्ड को कैश कराया।अभी जितना खुलासा हुआ है उसका लब्बोलुआब है कि भले इसे राजनीतिक चंदे का नाम दिया जा रहा है लेकिन यह चंदा राजनीतिक दलों को कम और सरकारों को ज्यादा मिलता है। कहने का मतलब है कि जिस पार्टी की सरकार रहती है उसको चंदा मिलता है। विपक्षी पार्टियों को चिडिय़ा के चुग्गे के बराबर चंदा मिलता है। दूसरा निष्कर्ष यह भी है कि उत्तर भारत के हिंदी पट्टी की पार्टियों की हैसियत कुछ नहीं है। देश के बड़े कॉरपोरेट घराने उनको कुछ नहीं समझते हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि हिंदी पट्टी के राज्यों में बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए कोई अवसर नहीं होता है इसलिए वे इस इलाके की पार्टियों को नाममात्र का चंदा देते हैं या नहीं देते हैं।तभी बिहार में सत्ता में होने के बावजूद नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू को बहुत मामूली चंदा मिला है। उनके मुकाबले मुख्य विपक्षी राजद को थोड़ा ज्यादा चंदा मिला है। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी को भी चुनावी बॉन्ड के जरिए बहुत कम फंडिंग हुई है, जबकि बसपा को चुनावी बॉन्ड से कोई चंदा नहीं मिला है।सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि खनिज संपदा से संपन्न राज्य झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा चार साल से सरकार में है लेकिन उसका नाम टॉप पार्टियों में नहीं है। जबकि झारखंड में देश के बड़े कॉरपोरेट घरानों का बड़ा निवेश है और बड़ा काम है। ध्यान रहे चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों में देश की बड़ी और नामी कंपनियों के नाम नहीं हैं। चुनावी चंदे में पार्टियों का ब्यौरा यह है-ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस)बहरहाल, केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के बाद सबसे ज्यादा चंदा ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को मिला है। ध्यान रहे वे 2011 के बाद से लगातार पश्चिम बंगाल की सरकार में हैं। उनको कुल 1,609 करोड़ रुपए का चुनावी बॉन्ड मिला है। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के मुताबिक ममता बनर्जी की पार्टी जब मई 2021 में तीसरी बार जीती और तमाम माहौल बनाने के बावजूद भाजपा नहीं जीत पाई तो अचानक तृणमूल कांग्रेस को मिलने वाले चंदे में भारी इजाफा हुआ।आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर-नवंबर 2020 और जनवरी 2021 में तृणमूल कांग्रेस ने कुल 65 बॉन्ड कैश कराए, जिनसे उसे 43.4 करोड़ रुपए मिले। लेकिन चुनाव के दौरान यानी मार्च और अप्रैल 2021 में तृणमूल कांग्रेस ने 171 बॉन्ड कैश कराए, जिनसे उसे 55.44 करोड़ रुपए मिले। इसके बाद शुरू होती है असली कहानी। मई में तीसरी बार सरकार में आने के बाद ममता बनर्जी की पार्टी ने मई में 337 बॉन्ड कैश कराए, जिनसे उसे 107 करोड़ रुपए से ज्यादा मिले।उसी साल अक्टूबर में पार्टी ने करीब 142 करोड़ के बॉन्ड कैश कराए और फिर जनवरी 2022 में 224 करोड़ रुपए का बॉन्ड भुनाया। इसके बाद 2022 में ही तृणमूल कांग्रेस ने 203 करोड़ रुपए का बॉन्ड और भुनाया। देश की बड़ी कंपनियों ने तृणमूल को चंदा दिया होगा। गौरतलब है कि सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वाली 20 कंपनियों में तीन पश्चिम बंगाल में स्थित हैं। उनमें से हल्दिया एनर्जी ने 377 करोड़ का बॉन्ड खरीदा, कैवेंटर फूड पार्क ने 195 करोड़ और एमकेजे इंटरप्राइज ने 192 करोड़ रुपए का बॉन्ड खरीदा था। बंगाल स्थित कंपनियों से ममता बनर्जी की पार्टी को ज्यादा चंदा मिला हो सकता है।कांग्रेस पार्टी बनाम टीआरएस– को कुल 1,421 करोड़ रुपए के बॉन्ड मिले हैं। यानी उसे एक राज्य में सरकार वाली तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले दो सौ करोड़ रुपए कम मिले हैं। लेकिन इससे भी दिलचस्प यह है कि चौथे नंबर पर के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति है। 2023 के दिसंबर तक तेलंगाना में उसकी सरकार थी। उसे 1,214 करोड़ रुपए का बॉन्ड मिला है। यानी अखिल भारतीय स्तर की पार्टी, संसद की मुख्य विपक्षी पार्टी और दिसंबर 2023 तक चार राज्यों में सरकार चला रही कांग्रेस को जितना मिला था उससे सिर्फ दो सौ करोड़ कम एक राज्य तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल को चंदा मिला था।पांचवें नंबर पर ओडिशा में पिछले 24 साल से सत्तारूढ़ बीजू जनता दल है, जिसे 775 करोड़ रुपए से ज्यादा का चुनावी बॉन्ड मिला था। इसके बाद तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके को 639 करोड़ फिर आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएस कांग्रेस को 337 करोड़ रुपए मिले। महाराष्ट्र में 2022 के जून तक सत्ता में रही शिव सेना को 158 करोड़ रुपए मिले। चुनावी बॉन्ड जारी होने के बाद डेढ़ साल तक बिहार में सत्ता रही राष्ट्रीय जनता दल को 72 करोड़ रुपए का बॉन्ड मिला।भाजपा-कहने की जरुरत नहीं है कि चुनाव आयोग की ओर से सार्वजनिक किए गए ब्योरे के मुताबिक सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। उसने 6,060 करोड़ रुपए का बॉन्ड कैश कराया है। स्टट बैंक ने जो ब्योरा दिया है उसमें 2019 से 2024 का डाटा है। इस अवधि में कुल 12,156 करोड़ रुपए के बॉन्ड बिके थे। इसमें से लगभग आधा यानी 6,060 करोड़ अकेले भाजपा को मिला है। इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं हुआ है लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2019 में ज्यादा बड़े बहुमत के साथ भाजपा के केंद्र की सरकार में लौटने के बाद उसको मिलने वाले चुनावी बॉन्ड में बढ़ोतरी हुई होगी।अगले कुछ दिन में जो आंकड़े और डिकोड होंगे या चुनावी बॉन्ड के यूनिक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स जारी होंगे तब पता चलेगा कि भाजपा और दूसरी पार्टियों को किस कारोबारी घराने ने कितना रुपए चंदा दिया। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जो पार्टियां सरकार में थीं उन्हें दूसरी पार्टियों के मुकाबले ज्यादा चंदा मिला है।यह भी स्पष्ट है कि चंदा देने वाले कारोबारियों ने कांग्रेस की अनदेखी की। ऐसा लग रहा है कि उन्हें कांग्रेस को चंदा देने में खतरा लग रहा था। तभी उन्होंने सत्तारूढ़ प्रादेशिक पार्टियों को तो खुले हाथ से चंदा दिया है लेकिन कई राज्यों में सरकार चला रही कांग्रेस को उसकी तुलना में कम चंदा दिया है।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment