चाइना से रिश्ते सुधारने के लिए राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता

  • 10-Sep-25 12:00 AM

अजय दीक्षितअमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ बार के कारण दुनियां के कई देश अपनी विदेश व्यापार नीति का पुनरीक्षण कर रहे हैं। भारत भी कुछ ऐसा ही कर रहा है। भारत ने अमेरिका के विकल्प के तौर पर रूस और चीन को चुना है। भारत के रणनीतिकार जानते हैं कि रूस तो भारत पुराना भागीदार है और भारत उससे सूत कर व्यापार कर रहा है। इतना ही नहीं अमेरिका से रिश्ते खराब होने के कारकों में से एक कारण रूस से सस्ती दरों पर क्रूड ऑयल खरीद ना वह भी विश्व में सबसे अधिक और अपनी जरूरतों का चालीस फीसदी। लेकिन चीन मामले ऐसा नहीं मान सकते हैं। बल्कि चीन से रिश्ते सुधारने से पहले भारत में राष्ट्रीय स्तर पर बहस होना चाहिए। इसके लिए संसद सत्र भी बुलाए जाने की जरूरत है। सरकार फिक्की, और अन्य संस्थाओं में विशेष सेमिनार आयोजित करे क्योंकि 1962 के बाद चीन से रिश्ते सुधारने का पहला मौका है।यह कोई छोटी मोटी बात नहीं है चीन से हमारे कई मुद्दों जैसे गलवान,ढोकलम, अरुणाचल प्रदेश, अंतराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत,तियावन,पर और दलाई लामा को लेकर गंभीर विवाद है । विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि चीन हमेशा पाकिस्तान की मदद करता है। अभी हमारा चीन के साथ लगभग 2 लाख करोड़ का द्विपक्षीय व्यापार है जिसमें हमें 5०० करोड़ का द्विपक्षीय व्यापार घाटा है। हालांकि चीन दुनियां का सबसे बड़ा निर्यातक है। चीन प्रति वर्ष 477 लाख करोड़ रुपए का विश्व व्यापार करता है। चाइना रक्षा उपकरण हेलीकॉप्टर मिसाइल ड्रोन राइफल फाइटर जेट,बड़े पैमाने पर तीसरी दुनियां के देशों को बेचता है।भारत को विशेष कर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की आवश्यकता इसलिए भी है कि संबंधों की रूपरेखा दीर्घ कालीन होती है और भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है।यहां पर सरकारों का परिवर्तन होता है और नए लोग जिम्मेदारी लेते हैं।चीन हमेशा से जटिल विषय रहा है क्योंकि एशिया में चीन इकलौता देश है जो साम्राज्य वादी है वह अभी भी मध्यकालीन युग के विचारों से जुड़ा होकर उन्नतशील भी है और आधुनिक भी । लेकिन वह विश्वसनीय कभी नहीं रहा है। यदिप अमेरिका का व्यवहार सभी देशों के साथ कुछ कम जायदा लोकतांत्रिक ही रहता है जिसमें डॉनल्ड ट्रंप के बचकाने निर्णयों छोड़ दें तो वह विश्वसनीय रहा है।1990 से पहले जब भारत तत्कालीन स्स्क्र के नजदीक था तब भी अमेरिकन राष्ट्रपति, रोनाल्ड रेगन, जॉर्ज बुश, निक्सन, रूजवेल्ट,ने भारत को एक आद को छोड़ कर धमकाने की कोशिश नहीं की।यहां तक कि अमेरिका कभी बेटो पावर का भी भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया।भारत सरकार को चीन के विषय में राजनीतिक दलों को विश्वास में लेना चाहिए विशेषकर कांग्रेस पार्टी को।राष्ट्रीय बहस इन संदर्भों में होनी चाहिए कि भारत चीन से क्या चाहता है और भारत किस हद तक पाकिस्तान के मसले पर पीछे हट सकता है क्योंकि आज नहीं कल पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को चीन की आड में घुसेडेगा।जबकि भारत कश्मीर के मुद्दे पर अब तो कतई बात नहीं करेगा । बहुत से मुद्दे हैं होशकता है कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी विचार भिन्न हो अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा कितना सही है यह परिणाम आना बाकी है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि चीन लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है।




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