जनता निर्णय लेगी

  • 21-Apr-24 12:00 AM

अखिलेश आर्येन्दताजा सर्वेक्षण बताते हैं कि इस बार के आम चुनाव में बेरोजगारी, महंगाई और विकास प्रमुख मुद्दे के रूप में हावी रहने वाले हैं। ये मुद्दे मतदाताओं के लिए अपना सांसद चुनने में काम में आएंगे।पिछले पांच साल में देश की हालत में कितना सुधार हुआ और जनता के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने जनता की बेहतरी के लिए कितनी जिम्मेदारी से कार्य किए, यह भी मतदाताओं पर असर डालेगा। इसी तरह 2019 में एनडीए सरकार ने किन घोषणाओं या वादों को पूरा किया और कौन-सी घोषणाएं एनडीए की केंद्र और राज्यों में उसकी सरकारें पूरा करने में नाकाम रहीं, इस बार के आम चुनाव में जनता द्वारा उन सारे मुद्दों पर गौर करके मतदान करने की बात ताजा सर्वेक्षण में सामने आई है।ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नौकरी और बेरोजगारी का मुद्दा लोगों के लिए सबसे अहम रहने वाला है। तमाम ऐसे लोगों की राय है कि अर्थव्यवस्था पर राज्य और केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा गौर करने की जरूरत है क्योंकि गैर-बराबरी बढ़ी है। वहीं पर सर्वेक्षण में महिलाओं को रोजगार के अवसर कम होने की शिकायत भी है। बेरोजगारी के अलावा महंगाई का मुद्दा सबसे अहम है। रोजमर्रा की वस्तुओं में बढ़ोतरी से भी आम लोगों में खासी नाराजगी है खासकर गरीब, ग्रामीण और मजदूरी करके परिवार पालने वाले मजदूरों में। निम्न मध्यम और मध्यम वर्ग की भी महंगाई को लेकर सबसे ज्यादा शिकायत है।उज्ज्वला और मुफ्त राशन योजना से भारत का निम्न वर्ग राहत महसूस कर रहा है। गौरतलब है कि भाजपा के नये चुनाव घोषणापत्र में गरीबों को मुफ्त राशन की योजना को अगले पांच साल और बढ़ा दिया गया है। निश्चित ही इसका असर चुनाव परिणाम में दिखाई देगा क्योंकि 2019 में निम्न और माध्यम वर्ग ने केंद्र की मुफ्त राशन योजना को पसंद किया था। आयुष्मान योजना को विस्तार देते हुए गरीबों के अलावा सत्तर साल के बुजुगरे को भी इसका लाभ देने की बात जरूर नई है, इससे करोड़ों बुजुगरे को फायदा मिलेगा। इसी तरह पिछले पांच सालों में विकास की अहमियत को 48 प्रतिशत जनता ने स्वीकार किया।सबसे दिलचस्प राय भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में देखने को मिली। महज 8 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार को तवज्जो दी यानी 92 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार को कोई खास तवज्जो ही नहीं दी, जबकि दस साल पहले भ्रष्टाचार सबसे गंभीर मुद्दा हुआ करता था। उस समय देश में बेरोजगारी की दर 5 प्रतिशत के आसपास थी, लेकिन अब यह 6.8 प्रतिशत के आसपास है। पिछले चुनाव में बेरोजगारी को लेकर लोग इतने आक्रामक नहीं थे जितने आज हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी, महंगाई और लगातार कीमतों में बढ़ोतरी है। महंगाई में कुछ कमी आई है, लेकिन पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को भी व्यावहारिक बनाना होगा।इसी तरह करोड़ों गरीबों को शौचालय, सूर्य घर योजना से 300 यूनिट मुफ्त बिजली के अलावा स्टार्टअप के जरिए रोजगार देने की कवायद की गई। फिर भी नौकरी और बेरोजगारी का मुद्दा इस चुनाव में छा गया है, इसके पहले इस पर लोग इतने उग्र नहीं थे। इसलिए कोई भी गठबंधन सत्ता में आए उसके सामने करोड़ों युवाओं को रोजगार देने और महंगाई को कम और स्थिर बनाए रखने की चुनौती तो होगी ही।भाजपा का घोषणापत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जारी करते हुए कहा कि उन्हें यदि पांच साल और मिलते हैं तो वे भारत को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, लेकिन पिछले दस वर्षो में देश में कई स्तरों पर बदलाव आए हैं। करोड़ों नये युवा मतदाता इस बार के चुनाव में अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। इनका भरोसा जीतना चुनौती ही है। वे रोजगार चाहते हैं, और देश को आगे बढ़ता हुआ भी देखना चाहते हैं। केंद्र में सरकार बनाने वाले गठबंधन को इन युवा मतदाओं की चाहत को हर हाल में पूरा करना ही होगा। इसी तरह महिलाएं भी सुरक्षा के साथ नौकरी भी चाहती हैं। वे आगे बढऩा चाहती हैं और इसमें केंद्र सरकार से अपनी बेहतरी के लिए उम्मीद भी लगाए हुए हैं। इसलिए भाजपा नीत एनडीए गठबंधन और कांग्रेस का इंडियाÓ गठबंधन, दोनों ही महिलाओं के आर्थिक हालात मजबूत करने की बात अपनी चुनावी घोषणाओं में करते दिखते हैं।बेशक, देश की साख दुनिया में पहले से बेहतर हुई है। कश्मीर मुद्दा भी एक झटके में हल कर लिया गया है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसे जघन्य कानून को खत्म कर दिया गया। अंग्रेजी शासन की गुलामी के तमाम प्रतीकों को बनाए रखने वाले कानूनों को खत्म या बदल दिया गया। यह आजादी के बाद मोदी है तो मुमकिन हैÓ के तहत किया गया। इसी तरह से नई शिक्षा नीति 2019-20 में लागू की गई। इससे शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति के रूप में देखा गया।इसी तरह विदेश नीति का मूल्यांकन करने वालों का मानना है कि आजादी के बाद पहली बार है जब दुनिया के तमाम विकसित देश भी भारत के सामने नतमस्तक हुए। जी-20 की अध्यक्षता, हिन्दी, उर्दू और बंगला को संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रायोगिक भाषा के रूप में मान्यता मिलने, भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से ज्यादा महत्त्व दिलाने और चीन के आगे सीना तान के खड़े होने और रूस-यूक्रेन युद्ध में परोक्ष मध्यस्थता करने जैसी तमाम उपलब्धियां भारत की विदेश नीति का हिस्सा रही हैं। ये उपलब्धियां केंद्र सरकार की बेहतर और व्यावहारिक विदेश नीति का हिस्सा रही हैं। इसी तरह आतंकवाद से मुक्त भारत की छवि पहली बार पिछले दस वर्षो में दुनिया में चर्चा का विषय रही।पौराणिक और पर्यटक स्थलों को विकसित करने पर विशेष जोर दिया गया। नये एम्स और आईआईएम जैसे संस्थानों को खोलने पर जिस तरह केंद्र सरकार ने अहमियत दी, उसका ही परिणाम है कि आज सेहत और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति दिखाई देने लगी है। इस तरह चुनाव में महज बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को विपक्ष द्वारा हवा देना न्याय संगत नहीं कहा जा सकता। फिर भी चुनाव की हलचल में कौन मुद्दे असरदायक होंगे और कौन-सी उपलब्धियों को जनता अहमियत देती है, यह तो परिणाम आने पर पता चलेगा, लेकिन जनता इस समय निर्णायक की भूमिका में है, जो निर्णय लेगी अपना अच्छा-बुरा समझ कर ही लेगी।




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