
ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता, निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने पर सुप्रीम कोर्ट से बोली केंद्र सरकार
- 14-Jul-25 03:29 AM
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नई दिल्ली,14 जुलाई (आरएनएस)। यमन में हत्या के मामले में दोषी ठहराई गई केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की सजा मामले में सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, निमिषा प्रिया की यमन में फांसी रोकने के लिए वह कुछ खास नहीं कर सकती है. नर्स को 16 जुलाई को फांसी दी जानी है.
मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने की. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण ने बेंच के समक्ष दलील दी कि सरकार कुछ खास नहीं कर सकती. उन्होंने आगे कहा, यमन की संवेदनशीलता को देखते हुए...इसे कूटनीतिक रूप से मान्यता नहीं मिली है...यह एक निजी समझौता है.
केंद्र के वकील ने बेंच को बताया कि एक सीमा होती है जहां तक सरकार जा सकती है, और सरकार उस सीमा तक पहुंच चुकी है. अटॉर्नी जनरल ने दलील दी कि यमन दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से जैसा नहीं है, और सरकार सार्वजनिक रूप से बयान देकर स्थिति को और जटिल नहीं बनाना चाहती. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निजी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि चिंता का असली कारण यह है कि घटना किस तरह से हुई और अगर वह अपनी जान गंवा देती है तो यह बहुत दुखद होगा. बेंच ने सरकार के वकील को बताया कि याचिकाकर्ता केवल बातचीत का अनुरोध कर रहा है.
याचिकाकर्ता के वकील ने बेंत के समक्ष दलील दी कि नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा न दी जाए. बेंच ने पूछा, वह यह आदेश कैसे पारित कर सकती है और इस आदेश का पालन कौन करेगा. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि बातचीत में पैसा बाधा नहीं बनना चाहिए. बेंच ने कहा कि यह अनौपचारिक संवाद हो सकता है. दलीलें सुनने के बाद, बेंच ने मामले की सुनवाई शुक्रवार के लिए फिर से सूचीबद्ध कर दी.
सुप्रीम कोर्ट ने सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. निमिषा प्रिया को साल 2017 में यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी. आरोप है कि उसने मृतक के पास मौजूद उसका पासपोर्ट वापस पाने के लिए उसे बेहोशी का इंजेक्शन दिया था.
याचिका में केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह पीडि़ता के जीवन को बचाने के लिए प्रभावी राजनयिक हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करे, ताकि याचिकाकर्ता को देश के कानून के अनुसार पीडि़ता के परिवार को शीघ्रता से ब्लड मनी (दियाह) का भुगतान करने में सुविधा हो.
याचिका में कहा गया है, यहां केवल प्रतिवादी ही प्रभावी कूटनीतिक वार्ता के साथ-साथ पीडि़ता के परिवार, जो यमन गणराज्य के नागरिक और निवासी हैं, से क्षमादान प्राप्त करने के लिए बातचीत को सुगम बना सकते हैं. याचिका में आगे कहा गया है कि, नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की संभावित तिथि पहले ही (16 जुलाई 2025) तय हो चुकी है. ऐसे में यमन की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए नर्स की जान बचाने के लिए प्रतिवादी भारतीय अधिकारियों का सशक्त और शीघ्र हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है.
याचिका में तर्क दिया गया है कि अब निमिषा के लिए फांसी से बचने का एकमात्र रास्ता देश के कानून (शरिया कानून) के मुताबिक, पीडि़ता के परिवार को बल्ड मनी (दियाह) देकर मृतक के परिवार से क्षमादान प्राप्त करना है.
याचिका में कहा गया है कि, प्रतिवादियों की निष्क्रियता, इस हद तक कि उन्होंने निमिषा प्रिया की ओर से पीडि़त परिवार के साथ राजनयिक हस्तक्षेप और बातचीत शुरू नहीं की, ताकि देश के कानून के अनुसार बल्ड मनी के बदले उसकी जान बचाई जा सके. यह न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकारों का हनन और अतिक्रमण भी है.
याचिका में कहा गया है कि, याचिकाकर्ता पीडि़त परिवार द्वारा बल्ड मनी की राशि तय होने पर उसे बढ़ाने के लिए तैयार है. साथ ही वह प्रतिवादियों से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता की मांग नहीं कर रहा है, बल्कि केवल पीडि़त परिवार के साथ बातचीत को सुगम बनाने के लिए गंभीर राजनयिक हस्तक्षेप की प्रार्थना कर रहा है.
बता दें कि, नर्स निमिषा प्रिया की फांसी से जुड़े मामले को लेकर केंद्र और विपक्ष आमने-सामने है. 12 जुलाई को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दावा किया था कि केंद्र सरकार यमन में हत्या के मामले में दोषी ठहराई गई केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की सजा मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. वेणुगोपाल ने कहा कि यह दुखद है कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय के ध्यान में यह मुद्दा लाए जाने के बावजूद केंद्र इस मामले में कोई तत्परता नहीं दिखा रहा है.
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