
डेंगू संकट और एंटीबायोटिक दुरुपयोग पर WHO के मानकों संग विशेषज्ञों की चेतावनी
- 30-Sep-25 12:24 PM
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मजबूत इम्युनिटी और जिम्मेदार स्वास्थ्य व्यवहार से ही मौसमी बुखारों से निपटा जा सकता है
नई दिल्ली, 30 सितम्बर 2025 (Rns) । भारत में डेंगू और मौसमी बुखारों की पुनरावृत्ति ने स्वास्थ्य व्यवस्था को बड़ी चुनौती के रूप में घेर लिया है। इसी पृष्ठभूमि में हील फाउंडेशन और पैसिफिक वनहेल्थ द्वारा आयोजित वनहेल्थ कनेक्ट सीरीज़ में देश के नामी चिकित्सकों और पोषण विशेषज्ञों ने मिलकर जनता को सचेत करते हुए कहा कि – “डेंगू, स्व-औषधि और एंटीबायोटिक के गलत प्रयोग के खिलाफ तत्काल जन-जागरूकता बेहद जरूरी है।”
डेंगू को ‘आपदा’ बताते हुए चेतावनी
पद्मश्री डॉ. मोहसिन वाली, सीनियर कंसल्टेंट, सर गंगा राम हॉस्पिटल, ने डेंगू को “आपदा” करार दिया। उन्होंने कहा –
“डेंगू पुनः उभरता संक्रमण है। पंजाब जैसे इलाकों में बाढ़ और ठहरे पानी से इसका प्रसार तेजी से बढ़ रहा है। वायरस शरीर में ‘साइटोकाइन स्टॉर्म’, प्लाज़्मा लीकेज और शॉक का कारण बनता है। समय रहते सही पहचान हो जाए तो यह जटिल रूप नहीं लेता।”
WHO की गाइडलाइन: एंटीबायोटिक का जिम्मेदाराना उपयोग
डॉ. नरेंद्र सैनी, पूर्व महासचिव IMA और चेयरमैन, IMA-AMR कमेटी ने WHO की एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा –
“90% बुखार वायरल होते हैं। ऐसे में एंटीबायोटिक लेना आत्म-क्षति है। ये दवाएं अच्छे बैक्टीरिया को नष्ट कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर करती हैं। WHO ने चेतावनी दी है कि 2050 तक अगर एंटीबायोटिक दुरुपयोग जारी रहा तो हर साल लाखों लोगों की मौत ‘ड्रग-रेसिस्टेंट इंफेक्शन’ से होगी।”
“20 साल बाद असरहीन हो जाएंगी सभी एंटीबायोटिक”
डॉ. एजाज इल्मी, कंसल्टेंट फिजिशियन, हेल्वेटिया डायग्नॉस्टिक्स ने कहा –
“यदि एंटीबायोटिक का दुरुपयोग ऐसे ही चलता रहा, तो 20 साल बाद कोई भी एंटीबायोटिक असरदार नहीं रहेगी। सह-रुग्णता जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि बुखार की गंभीरता को बढ़ाती हैं। वहीं, विटामिन और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर आहार शरीर को रोग से लड़ने का मजबूत हथियार प्रदान करता है।”
पोषण ही है इम्युनिटी की असली ढाल
डॉ. मंजरी चंद्रा, फंक्शनल न्यूट्रिशनिस्ट ने कहा –
“आपकी इम्युनिटी इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या खाते हैं। अच्छे आंतों के बैक्टीरिया और संतुलित आहार बीमारियों से बचाते हैं। खासकर डायबिटीज जैसी स्थितियों में सही पोषण ही मरीज की ढाल है।”
सामुदायिक जिम्मेदारी का संदेश
संवाद का संचालन करते हुए सुश्री मिशा डांगे, ट्रस्टी, हील फाउंडेशन ने कहा –
“मानसून में डेंगू और मौसमी बुखार का खतरा हमेशा चरम पर होता है। इसलिए जरूरी है कि चिकित्सा, पोषण, जीवनशैली और सामुदायिक जागरूकता एक साथ काम करें। तभी हम एक स्वस्थ समाज बना पाएंगे।”
WHO का दृष्टिकोण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) लगातार चेतावनी दे रहा है कि:
डेंगू विश्वभर में सबसे तेजी से फैलने वाला मच्छर जनित रोग है, हर साल लगभग 40 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं।
एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस (AMR) मानवता के सामने 21वीं सदी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती है।
WHO की गाइडलाइन के अनुसार, संक्रमण नियंत्रण (Infection Control), जिम्मेदार दवा प्रयोग, टीकाकरण और पोषण—ये चार स्तंभ ही भविष्य में महामारियों से बचाव का रास्ता हैं।
यह संवाद केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है कि डेंगू जैसी मौसमी बीमारियों से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा—समय पर पहचान, जिम्मेदार दवा उपयोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला आहार और सामुदायिक जिम्मेदारी ही असली समाधान हैं।
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