तो कांग्रेस 2025 बहुत उत्साह से शुरू करती लेकिन कहीं उत्साह नहीं

  • 04-Jan-25 12:00 AM

शकील अख़्तरअगर हरियाणा नहीं गंवाया होता तो महाराष्ट्र में भी सीन यह नहीं होता। और 2025 कांग्रेस बहुत उत्साह से शुरू करती। लेकिन उत्साह कहीं नहीं है।भाजपा जिसमें होना चाहिए वह अपनी नकारात्मकता से निकल ही नहीं पा रही। गुजर गए मनमोहन सिंह से घबरा गई। उनके खिलाफ व्हट्सएप मुहिम शुरू कर दी। गांधी नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह सब खराब हैं। और इनमें सबसे उपर राहुल।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल है। इस वर्ष वे बतौर प्रधानमंत्री 11 वर्ष पूररे करेंगे। वे तीसरी बार प्रधान मंत्री बने हैं। मीडिया ने बहुत उछाला कि नेहरू के रिकार्ड की बराबरी।मगर नेहरू जब तक प्रधनमंत्री रहे 1964 तक तब तक उनके काम ही चर्चा के केन्द्र में रहे। और 27 मई 1964 के बाद आज तक भी वे ही टाक आफ द टाउन ( जिसकी हर जगह चर्चा होती है, सिर्फ उसी की बातें होती हैं) हैं।नया साल शुरू हुआ है। बात तीन बार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काम की होनी चाहिए। मगर नेहरू को रिप्लेस करके अगर कोई उस जगह चर्चा के केन्द्र में आता है तो वह फिर राहुल होते हैं।11 साल से या साढ़े दस साल कहें विपक्ष में ही हैं। मगर चाहे मीडिया हो या सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और या मोदी सरकार सब 2024 के जाने से पहले और 2025 के आने के बाद भी राहुल को ही याद कर रहे हैं।वह तो हाथ में आया हरियाणा टपका दिया नहीं तो इस समय खाली याद ही नहीं कर रहे होते राहुल दिमाग में छाया होता। फोबिया हो जाता। लोकसभा चुनाव में शानदार ढंग से मोदी जी को 240 पर रोक लिया था।यह वैसा ही था जैसा 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में इसी राहुल ने भाजपा को 99 पर रोका था। मगर कन्सिस्टेन्सी ( निरंतरता) जिसे भारतीय क्रिकेट टीम भी बार बार भूल जाती है नहीं रख पाने के कारण फिर अपने विरोधियों को नया मौका दे देती है।हरियाणा में कांग्रेस ने यही कहा। राहुल ने बहुत लूज शाट खेला था। यह कहकर कि यह आपस में लड़ जाते हैं फिर इन्हें एक करने का काम मेरा है।गुटबाजी की बात इतनी हल्की नहीं थी कि राहुल इस तरह का केजुअल शाट खेल देते। मगर राजस्थान में भी इस तरह खेला और नतीजा वही हुआ। मैच गंवा दिया।अब बेलगावी कर्नाटक के सीडब्ल्यूसी में घोषणा की है कि यह साल 2025 संगठन का साल बनाएंगे। देखते हैं! संगठन को लेकर क्या सोच है इनकी।वैसे तो दो साल से ज्यादा हो गए हैं खरगे जी को अध्यक्ष बने। अब तक तो सब हो जाना चाहिए था। जिनके हेड रोल्स ( सख्त सज़ा) होना थे हो जाना चाहिए थे। और जिन नए लोगों को मौका मिलना था मिल जाना चाहिए था।बेलगावी की सीडब्ल्यूसी में एक बात बहुत खास कही गई है। अगर इन लोगों ने खरगे, राहुल, प्रियंका ने कर दी तो कांग्रेस का रूप चेंज हो जाएगा। वह बात कही गई है कि हम संगठन के लिए लोगों को ढुंढ कर निकालेंगे।यह काम इन्दिरा गांधी करती थीं। जनता में से पार्टी के सिम्पेथाइजर निकालना, उनमें से कार्यकर्ता बनाना और कार्यकर्ताओं को नेता बनाना। संगठन का तरीका ही यही है। आज की कांग्रेस को तो सिम्पेथाइजर शब्द मालूम ही नहीं होगा।कार्यकर्ता को तो भूल ही गए हैं। और नेता वही दिखते हैं जो इस गोदी मीडिया को खुश करके उसमें खुद को दिखाते रहते हैं।पता नहीं राहुल प्रियंका के दिमाग में यह सवाल आता है कि नहीं कि इनसे पूछें कि तुम्हें यह मीडिया इतना दिखा कैसे देता है?जो रात दिन हम लोगों को कोसता रहता हो। कांग्रेस के नाम में ही कीड़े निकालता रहता हो वह तुमसे किस बात पर खुश है?मीडिया कांग्रेस के नाम पर खरगे, राहुल, प्रियंका को दिखाए, कांग्रेस की बातें बताए तब तो पार्टी को कुछ फायदा है। वरना इन कुछ नेताओं के मीडिया में चमकने से कांग्रेस को क्या फायदा?खैर हरियाणा में कांग्रेस ने अपना बहुत बड़ा नुकसान किया। अगर यह आपस में इस गंदे तरीके से नहीं लड़ते तो ईवीएम की कोशिशें भी शायद असफल हो जातीं।ईवीएम एक पहलू है। मगर जब पार्टी खुद ही कमजोर हो जाए तो ईवीएम को तो दूगनी ताकत से अपना खेल करने का मौका मिल जाता है।और मान लीजिए ईवीएम ने हराया तो फिर क्या यह भी मान लें कि आपने कोई गलती नहीं की। कोई नहीं चिल्ला रहा था कि मुझे मुख्यमंत्री बना दो।क्या मैं बनुंगा मुख्यमंत्री, मैं बनुंगी के प्रलाप से कोई नुकसान नहीं हुआ? तो फिर पार्टी अध्यक्ष खरगे ने नवंबर में दिल्ली की सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में यह क्यों कहा कि पार्टी के नेता एक दूसरे के हराने में लगे हुए थे?तो अगर हरियाणा नहीं गंवाया होता तो महाराष्ट्र में भी सीन यह नहीं होता। और 2025 कांग्रेस बहुत उत्साह से शुरू करती। लेकिन उत्साह कहीं नहीं है।भाजपा जिसमें होना चाहिए वह अपनी नकारात्मकता से निकल ही नहीं पा रही। गुजर गए मनमोहन सिंह से घबरा गई। उनके खिलाफ व्हट्सएप मुहिम शुरू कर दी।गांधी नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह सब खराब हैं। और इनमें सबसे उपर राहुल। राहुल के पीछे ऐसे पड़े रहते हैं जैसे राहुल के बारे में अगर एक दिन भी खराब बोलना बंद कर देंगे तो राहुल छा जाएगा।उन्हें यह नहीं मालूम कि राहुल तो छाया हुआ है। बस अपने खुद स्वभाव के कारण फिनिशर नहीं बन पा रहा। पहले भारत की क्रिक्रेट टीम के साथ भी यह समस्या थी।मगर फिर उन्होंने मैच फिनिश करना सीखा। मतलब खेले तो अच्छा और जीते भी। देखते हैं 2025 जिसके बारे में कांग्रेस ने अपनी बेलगावी सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में बड़ी बड़ी घोषणाएं की हैं क्या होता है।संगठनका महत्व है अपना। मगर नेतृत्व का सबसे ज्यादा है। नेतृत्व अपने नेताओं को जवाबदेह बनाने वाला होना चाहिए। इन्दिरा गांधी का नेतृत्व तो डर पैदा करता था।डर इस बात का कि नेता गलत करेगा तो बचेगा नहीं। 1980 वापसी करते ही अर्जुन सिंह को बना दिया था मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री। सारे बड़े बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल प्रकाश चंद सेठी देखते रह गए। नया नेतृत्व पैदा कर दिया था।पता नहीं राहुल अपने मुख्यमंत्रियों से कामों का हिसाब किताब भी मांगते हैं या नहीं? ऐसे ही पार्टी के महासचिवों, प्रदेश अध्यक्षों, डिपार्टमेंट के चैयरमेनों से। यह काम नेतृत्व में किसी को करना पड़ेगा।खरगे खुद करें, प्रियंका करें। और राहुल जो वकाई कांग्रेस के सबसे बड़े जननेता हैं वे करें तो सबसे अच्छा।अभी राहुल का समय है। बीजेपी का कोई दांव कामयाब नहीं हो रहा। उनके विदेश जाने को मुद्दा बनाया जा रहा है। मगर नहीं बन रहा।लोग मानने लगे हैं कि राहुल उन जैसे हैं। हिप्पोक्रेट नहीं हैं। झूठे हार्ड वर्क 16- 18 घंटे काम करने की कहानी नहीं फैलाते हैं। छुट्टी जैसे हम सब मनाते हैं वह भी मनाते हैं। सबको मनाना भी चाहिए।मगर यह जो राहुल का समय है जिसे क्रिकेट में फार्म कहते हैं। हमेशा रहने वाला नहीं है। फार्म को हमेशा अस्थाई माना जाता है। टेंपरेरी। क्लास को परमानेंट। स्थाई। राजनीति में क्लास क्या है? उच्च स्थिति में।अपने निर्णयों को मनवाना। मेहनत तो राहुल बहुत करते हैं। जनता में भी बहुत जाते हैं। दो यात्राएं जबर्दस्त रहीं। समाज के अलग कामकाजी समूहों में जा रहे हैं।नेता प्रतिपक्ष के तौर पर लोकसभा में प्रभावी प्रदर्शन कर रहे हैं। हर काम में परफेक्ट। मगर नेता का काम होता है लोगों से काम लेना। सबसे बड़ा काम वही है। राजीव गांधी क्या कोई कम अच्छे प्रधानमंत्री थे? मगर टीम पर नियंत्रणनहीं रखा। परिणाम कुर्सी तो गई बदनाम अलग हुए। बाद में वीपी सिंह ने कहा कि बोफोर्स में कुछ नहीं था।मगर उसका क्या मतलब। ऐसा ही अब 2 जी में कहा गया। मगर अब क्या? राजीव गांधी भी चले गए मनमोहन सिंह भी चले गए।नेता को अपने सामने स्थितियों पर कंट्रोल रखना होता है। गलत को गलत सामने साबित करना और अपने नेताओं से करवाना होता है 1977 की हार को इन्दिरा गांधी 1980 में गलत साबित कर दिया।अगर इससे ज्यादा टाइम लगा देतीं तो आज कहीं कांग्रेस होती भी? बाकी अभी राहुल का समय है। मगर उसका उपयोग कितना हो पा रहा है यह कांग्रेस को और खुद उन्हें देखना और सोचना है।




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