देश की न्यायिक व्यवस्था पर प्रश्न
- 24-Aug-24 12:00 AM
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अजय दीक्षितपिछले दिनों भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने एक समारोह में कहा था कि लोग कोर्ट कचहरी से परेशान हो गये हैं और वे मीडियेशन, .....मार्बिटटेशन या समझौते से परस्पर फैसला कर रहे हैं यद्यपि इसमें पीडि़त पक्ष को पूरा न्याय नहीं मिलता परन्तु न्यायालयों का खर्च, वकीलों की लम्बी फ़ीस और तारीख पर तारीख के कारण यदि देर सबेर न्याय मिलने भी है तो वह किस काम का? फिर अनेक केसों में सत्ता पक्ष पुलिस, जांच एजेन्सियों और अन्य कारणों से सच्चे आदमी को परेशान करती है ।ताजा उदाहरण विभव कुमार का है । उसे पर आरोप है कि उसने राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर बदसलूकी की । उसको मारा पीटा या छीना-झपटी की । जिला अदालत, हाई कोर्ट से जमानत याचिका खारिज हो जाने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां उसकी जमानत याचिका खारिज करते जज ने कहा कि विभव गुण्डा है । वह मुख्यमंत्री आवास पर क्या कर रहा था ! असल में अभी स्वाति मालीवाल के केस में फैसला होना है । अब सुप्रीम कोर्ट के जज की टिप्पणी के बाद जिला अदालत का कौन जज या मजिस्ट्रेट उसके पक्ष में फैसला दे सकता है ?स्वाति मालीवाल शायद सबसे कम उम्र की राज्यसभा सांसद होगी या राघव चड्ढा? स्वाति मालीवाल आप की सरकार बनते ही दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं । बाद में आप पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा । असल में मनु सिंघवी हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा के लिए प्रत्याशी थे परन्तु तीन कांग्रेसी विधायकों की दग़ाबाज़ी के कारण वे हार गये । शायद सोनिया गांधी को बगावत की भनक होगी । तभी वे राज्यसभा में राजस्थान से गईं । मनु सिंघवी ही अरविन्द केजरीवाल का केस लड़ रहे हैं । सूत्र बतलाते हैं कि अरविन्द केजरीवाल मनु सिंघवी को अपनी पार्टी की ओर से राज्यसभा में भेजना चाहते हैं । परन्तु अभी दिल्ली या पंजाब में कोई सीट खाली नहीं है । यदि स्वाति रिजाइन कर देती हैं तो उस सट पर मनु सिंघवी को भेजा जा सकता है ।स्वाति मालीवाल के प्रकरण में यह भी आरोप है कि दिल्ली पुलिस ने शायद इस मामले में न्याय न करते हुए स्वाति का पक्ष लिया । राष्ट्रीय महिला आयोग भी मालीवाल के पक्ष में हैं । दोनों ही जगह मालीवाल ने औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है, फिर भी पुलिस और राष्ट्रीय महिला आयोग मामले में दखल दे रहे हैं ।भारतीय राजनीति की यह विडम्बना है कि यहां के सांसदों को समाज में ऊंचा दर्जा दिया जाता है । वेतन भत्ते और टेलीफोन, मकान, यात्रा आदि की सुविधा अलग से है । यदि मनु सिंघवी भी जीत भी जाते हैं तो राज्यसभा में उनकी बात की क्या अहमियत है । वहां उपराष्ट्रपति के रूप में माननीय धनकड़ साहब सत्ता पक्ष के साथ हैं । पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में ममता बैनर्जी से उनका सतत् विवाद चलता रहा । अभी भी जो आठ दस राज्यपाल नियुक्त हुए हैं, वे सभी भाजपा के सक्रिय सदस्य हैं । यह कोई नई बात नहीं हैं । कांग्रेस के राज्य में भी ऐसा ही होता रहा है । मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक को केस को से ध्यान समझना चाहिए ।असल में भारतीय राजनीति, आज अपनी शिष्टता छोड़कर गाली गलौज पर आ गई है । मोदी को मौत का सौदागर कहा गया था । राहुल गांधी को पप्पू कहा जाता है या शहज़ादा ।देश हित में अब भारतीय राजनीति का स्वरूप बदलने की जरूरत है । इसके लिए देश के बुद्धिजीवियों को आगे आना होगा, तभी देश का कल्याण होगा ।
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