नगरी सिहावा के सीतानदी वनांचल में बिखरा है अलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य

  • 08-Jan-25 12:00 AM

0-इंदूशंकर मनु ने सोंढूर डायरी में अनबूझ रहस्यों को समेटाविमल शंकर झाभारत का ह्दयस्थल छत्तीसगढ़ धान का कटोरा ही नहीं बल्कि सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं और हरितिमा से आच्छादित प्राकृतिक संपदाओं और रहस्यमयी पुरा सौंदर्य को अपने आप में समेटे हुए हंै। पुण्यसलिला चित्रोत्पला महानदी के उद्गम सिहावा नगरी से लगे प्रकृति की गोद में बसे सोंढूर और आसपास के वनांचल में झरते खूबसूरत झरने, कंदराएं, दुर्लभ वनौषधियो, पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों और अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध है। लोगों को यह जानकर गर्व होगा कि सप्तऋषियों में छग में भांजे के रुप में श्रद्धेय भगवान राम के जन्म से जुड़े पुत्रेष्टि यज्ञ के पुरोहित ऋंगि ऋषि सहित 4 ऋषियों के पावन आश्रम और विश्वप्रसिद्ध पायलीखंड का हीरा खदान भी इसी प्रसिद्ध वनांचल में हंै।प्राकृतिक छटा और पुरातात्विक महत्ता से लबरेज सीता नदी वन क्षेत्र से सोंढूर तक फैले ऐसे तमाम ऐतिहासिक, सामाजिक, लोक सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र से जुड़े नामचीन और गुमनाम स्थलों और रहस्यों को भिलाई के वरिष्ठ साहित्यकार और सेवानिवृत्त व्याख्यात इन्दुशंकर मनु ने अपने यायावरी अनुभव से नई दृष्टि दी है। सर्वप्रिय प्रकाशन से प्रकाशित उनकी सद्य प्रकाशित शोधपरक संस्मरणात्मक किताब सोंढूर डायरी में इस वनांचल के मांदागिरी पर्वत से लेकर रक्साहाड़ा जीवाश्म तक कई ओझल प्रसंगों व स्थलों को तथ्यपरक ढंग से रोचक शैली में सामने लाने की कोशिश की गई है। यह साहित्यप्रेमियों के साथ शोध छात्रों के लिए भी एक उपहार हैं। सोंढूर के निकट सीता नदी अभयारण्य की पहाडिय़ों पर सप्तऋषियों में चार ऋषियों ऋंगी ऋषि(सिहावा पर्वत), अंगिरा (घटुला गिरी), मुचकुंद (धवल गिरी) और गौतम ऋषि (मादागिरी) के आश्रम हैं। बाकी 3 ऋषि की तपोभूमि अमरकंटक पर्वत पर हैं। छग की जीवनरेखा मानू जाने वाली महानदी और पौराणिक चित्रोत्पला का उद्गम ऋंगीऋषि पर्वत ही है। नगरी के समीप अगस्त्य का आश्रम है,जिन्होंने बढ़ते हुुए विंध्याचल पर्वत को रोकने अपने दक्षिण भारत की यात्रा से वापस आने तक यथा स्थिति रहने का आदेश दिया था। आश्रम में उनसे शापित पत्नी अहिल्या की अवसादग्रस्त पाषाण प्रतिमा निर्जन गुफा में उपेक्षित पड़ी है । सीतानदी की पहाडिय़ों पर वर्षों पूर्व आदिमानवों का निवास माना जाता है। कालांतर में राजाओं ने राजधानी के किले बनाए, जिनके भगनावशेष अभी भी बिखरे पड़े हैं। किताब के लेखक इंदुशंकर मनु बताते हैं कि सिहावा से निकलने वाली महानदी (चित्रोत्पला, नीलोत्पला, महानंदा) और घटुला पहाड़ी से निकली सीतानदी के किनारे मानव सभ्यता का विकास हुआ। सीतानदी वन क्षेत्र नीलांचल नाम से जाना जाता है और लिलांज नदी व ग्राम भी नीलांचल शब्द को उद्घाटित करता है। घटुला ऋषि गुफा के निकट गढड़ोंगरी में बिखरे द्रविण मूर्तियों के अवशेष पुरामहत्व के हैं। सर्प शिल्पकला से बना पवित्र जलकुंड वाला प्रसिद्ध कर्णेश्वर मंदिर प्रसिद्ध है। वहीं सघन मादागिरी चट्टान परछोटे, छोटे कुंड अभी भी दिखाई देते हैं,जिनमें कभी आदि मानव कंदमूल व अनाज कूटा करते थे। यहां के पत्थरों का उपयोग मूर्तियां व स्ंतभ बनाने किया जाता था । किताब में बतौर जनश्रुति श्री मनु ने रहस्योदघाटन किया है कि मनोरम मादागिरी शिखर पर आश्चर्यजनक रुप से विशालकाय बेलनाकार पर्वत एक छोटे से पत्थर पर टिका है। पांडवों के वनवासकाल में किसी राक्षस के विनाश के लिए महाबली भीम ने इसे फंदे के रुप में उपयोग किया था । जलप्रपात के किनारे मारे गए राक्षस की हड्डियां (जीवाश्म) को शिकारियों और तस्करों के मटियामेट करने के बाद भी भगनावशेष हैं, जिसे पुराशोध के लिए रविशंकर विवि रायपुर के भी ध्यानाकर्षण में लाया गया था। दानव की हडिडयों के ढेर के कारण ही इस बस्ती का नाम रक्शापथरा व रक्साहाड़ा रखा गया है। निकट ही सालवनों के बीच से रामवन गमन पथ गुजरता है ।प्रकृति की गोद में बसा पुराग्राम सोंढूर इतिहास और लोक जीवन के कई रहस्यों को समाहित किए हुए हैं। महानदी में पैरी और सोंढूर नदी के संगम स्थल पर स्वर्णकणों तथा कालनेमी के स्वर्ण मृग के मिथक से गांव का नाम सोंढूर पड़ा। अंचल का जीवनदायी रमणीक सोंढूर बांध यहीं बना हुआ है । पहले मुचकुंद ऋषि के नाम पर गांव का नाम मेचका था,जो कालांतर में अपभ्रंस होकर सोंढूर हो गया। श्री मनु बताते हैं कि देवासुर संग्राम में संपत्ति वितरण के समय राजा से ऋषि बने मुचकुंद के युद्ध की हिंसा के अपराध से मुक्त होने तपस्या के लिए निर्जन स्थल के आग्रह पर देवों ने सोंढूर (धवलगिरी पर्वत गुफा) में तप करने की सलाह दी। रणछोड़ कृष्ण व कालयवन के युद्ध के दौरान कृष्ण का पीछा करता कालयवन जब धवलगिरी गुफा में जा पहुंचा तो उन्होंने चालाकी से तपस्यारत मुचकुंद को अपनी पीतांबरी ओढ़ा दी। राक्षस के इसे कृष्ण समझ फेकने पर तपस्या भंग होने से क्रोधित ऋषि ने उसे अगनिदृष्टि से भस्म कर दिया था। अभी भी गुफा में कालमेघ नामक झाडिय़ां पाई जाती हैं,जिसे आयुर्वेद औषधी के रुप में आदिवासी उपयोग करते हैं। पहाड़ी पर बने परकोटे को हाथीसार के नाम से जाना जाता है। यहां का एक रोचक मिथ यह भी है कि कांकेर के राजा कर्णदेव की रानी कर्णावती के रुप पर सम्मोहित बस्तर के नरेश के कई बार आक्रमण से डरकर कर्णदेव ने सोंढूर को अपनी राजधानी बना पहाड़ी के शिखर पर अपना किलानुमा आवास बना लिया । चार दिशाओं में सुरक्षा के लिए मेचका में मांझी, अरसीकन्हार-मरकाम, खालगढ़-मुरिया व बरपदर गांव में धुर्वा नामक नियुक्त 4 सावंतों में से धुर्वा को राजा बनाने का लालच देकर बस्तर नरेश ने कर्णदेव की हत्या का षडयंत्र रजा। बरपदर के नरभक्षी शेर के शिकार के बहाने जंगल में कर्णदेव की हत्या से दुखी रानी कर्णावती पहाड़ी में राजा की लाश रख अपने पुत्र को मारने के बाद चिता में जलकर खुद सती हो गई । आज भी रानी के विलाप और आदेश पर बरपदर का सामंत घराना बतौर प्रायश्चित उपवास बाद हथियार खालगढ़ लाकर पूजा करता है। और दोनों के स्मारक भगवान्वेश के रुप में यहां हैं। सत्ती चट्टान को रानीचौरा के नाम से जाना जाता है और राजा के संदेशसूचक व जंगरहित लौह नगाड़ों में से एक नगाड़ा पेड़ों की जड़ों से लिपटा हुआ है। सीता नदी अभयारण्य क्षेत्र के सोंढूर में 7 सुंदर पहाडिय़ों के समूह वाला कोरिया के सफेद फूलों से लदा और आकर्षक जलप्रपात से सजे सूर्यपाट के साथ चमकने वाला अनूठा महुआ पेड़ को भी यहां गुरुजी के रुप में जाने जाने वाले इंदुशंकर मनु ने नई रोशनी दी। सूर्यपाट की विशेष 7 पहाडिय़ों में कोई बाघगुफा, सर्फ गुफा तो कोई ऋषियों की माता रिसाई झरना व कोई उच्च समभूमि गुफा है। यहां दलदली में प्राचीन विलुप्तप्राय प्रजाति की धान उगाई जाती है। तंबाई चट्टानों के झरने के चहुंओर कोरिया के सघन फूलों से स्वर्गिक नजारा होता है। सोंढूर से 6 किमी दूर देवभोग मार्ग पर सीझी डालियों वाला रहस्यमयी महुए का पेड़ है,जो बारिश थमने पर चमकता है। चमत्कारिक पेड़ पर स्फूरदीप्ति नामक बोर्ड टंगा है। चमक की वजह पेड़ के नीचे फास्फोरस या किसी प्रदीप्त खनिज भंडार की संभावना भी लोग व्यक्त करते हैं। यहां की नैसर्गिग छटा से प्रेरित होकर कथाकार लोकबाबू ने दिगंबर कहानी, मनोज रुपड़ा ने काला अध्याय उपन्यास, चित्रकार हरिसेन ने कलाकृति व सियाराम शर्मा, विजय वर्तमान तथा ऋषि गजपाल ने भी रचनाएं रचीं। सोंढूर की रमणीयता सेें प्रभावित होकर 90 के दशक से इसे दूसरा घर मानने वाले भिलाई के रिटायर व्याख्याता व साहित्यकार प्रकृतिप्रेमी 80 वर्षीय इंदुशंकर मनु गहरे से जुड़े हुए हैं। वे गांव के कचरु बाबा, दाई, माई व उनकी गोद ली बेटी राम्हीन की 5 बेटियों केएक आदिवासी परिवार को बतौर गोद लेकर उनकी वर्षों से मदद करने के कारण गांव में लोकप्रिय हैं। श्री मनु बताते हैं कि 35 साल से जिस मनोरम सोंढूर के सीता नदी व उदंती क्षेत्र के प्राकृतिक वैभव का साक्षात्कार कर रहे थे,उसे एक शोधपरक पुस्तकाकार में देखकर दिली सुकून मिल रहा है। इस वनांचल रोमांचकारी अनुभव अद्भुत और प्रेरक है।




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