नेहरू को छोटा करने की नहीं, उनके काम से होड़ करने की जरूरत

  • 29-Dec-24 12:00 AM

भूपेन्द्र गुप्तादेश में आज विकास को लेकर नए-नए नरेटिव गढऩे के अलावा इतिहास के पन्नों को कलंकित करने का चलन चल पड़ा है ।संगठित रूप से आजादी के बाद की सरकारों के कामकाज और योगदान को नीचा दिखाने की आक्रामक कोशिशें हो रही़ हैं। नई पीढ़ी में शोध के अभाव को देखकर उसे बरगलाने की चेष्टा की जा रही है।देश को उसके सही स्वरूप में पहचान कर देश के विकास की यात्रा की समझ और विकास की कल्पना को चोट पहुंचाई जा रही है ।जिससे वास्तविक इतिहास को जानने से ही रोका जा सके । देश के नेताओं को सुविधानुसार मिस कोट किया जा रहा है।मध्य प्रदेश में केन -बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के दौरान ऐसी ही बातें रखी गई जिससे महसूस हो कि जवाहरलाल नेहरू के समय से ही विकास की योजनाओं की उपेक्षा की गई । यहां तक कहा गया कि देश में बड़े-बड़े बांध बनाने और जल संरक्षण को समझने का काम देश में अन्य लोगों ने किया है।जल संसाधनों के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने घुमाकर यह भी बताया कि जलशक्ति को मजबूत करने के दूसरे नेताओं के प्रयासों को जवाहरलाल नेहरू के नाम पर चिपका दिया गया ।क्या इस तरह का नेरेटिव बनाया जाना उचित है ।क्या यह सत्य है या महज नेहरू जी को नीचा दिखाने और संसद में बाबासाहब का उपहास करने से पैदा हुए संकट से निकलने के लिये भाजपा की रणनीति है।इसे समझने के लिए बेहतर होगा कि हम देश में जल संरचनाओं के इतिहास को जानें और समझें। सभी जानते हैं कि डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की मृत्यु 1956 में हो गई थी और वह नेहरू जी के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री थे उनकी पूरी शक्ति संविधान की ड्राफ्टिंग, संविधान सभा के सभी सदस्यों के योगदान का संकलन कर संविधान को उसका स्वरूप देना था। न कि बांध बनवाना। तब भाजपा 2024 में बनने वाले दुहान बांध के बहाने युग पुरुषों को लड़वाने का नया काम क्यों शुरू कर रही है।भारत में नदियों को बांधने का इतिहास बहुत पुराना है।देश का सबसे पुराना बांध तमिलनाडु की कावेरी नदी पर बनाया गया था ।जिसे कल्लणै बांध कहते हैं।इसे 150 ईश्वी से 100 ईश्वी के बीच में चोल राजा करिकल ने बनवाया था। इसका अर्थ है कि नदियों को बांधने और जल संरचनाओं को बचाने तथा संरक्षित करने के लिए भारत में बांध बनाने की तकनीकी और संकल्प शक्ति हजारों साल पहले ही आ चुकी थी ।आजादी के पहले भी मैसूर के राजा कृष्णा वाडियार ने कृष्ण राजा सागर बांध का 1911 में निर्माण शुरू किया था जिसे 1932 में मैसूर की जनता को समर्पित किया गया। इसके बाद ही आजादी के बाद बने बांधों का सिलसिला शुरू होता है ।आजादी के प्रथम वर्ष में भारत का कुल बजट मात्र 184 करोड़ रुपए था और पूरे देश में भुखमरी की स्थिति थी ।1943 में ही बंगाल के दुर्भिक्ष में 30 लाख लोग भूख से अपनी जान गँवा चुके थे। भुखमरी के इन हालातों में देश को आजादी मिली थी ।यह स्पष्ट था कि खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाये बिना हम अपने लोगों का पेट नहीं भर सकते। उसके लिए सिंचाई चाहिए, नदियों पर बांध चाहिए किंतु हमारे पास धन भी नहीं था। ऐसे हालातों में भी 1947 में ही जवाहरलाल नेहरू ने उड़ीसा की महानदी पर हीराकुंड बांध की शुरुआत की, जिसे 1957 में देश को समर्पित किया गया ।इस बांध से 47 लाख एकड़ फीट जल संग्रहण और 347 मेगावाट बिजली का उत्पादन हुआ ।इसके तत्काल बाद 1948 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु में भवानी सागर बांध का शिलान्यास किया जो 1955 में पूरा हुआ। यह एक अर्दन डेम था जिसके माध्यम से 16 मेगावाट बिजली भी पैदा की जानी थी ।इसी तरह पंजाब में सतलज नदी पर 1948 में ही भाखड़ा नंगल बांध की नींव डाली गई ।यह उस समय तक का सबसे बड़ा बांध था जिसमें 75 लाख एकड़ फीट जल संग्रहण होना था और 1325 मेगावाट बिजली का उत्पादन होना था ।जब 1963 में यह बांध देश को समर्पित किया गया तो इसके माध्यम से हरित क्रांति का आगाज हुआ।मैक्सिकन लाल गेहूं पर निर्भर भारत की जनता देशी खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ी।कर्नाटक की तुंगभद्र नदी पर 1949 में कंपोजिट स्पिल वे डेम का शिलान्यास जवाहरलाल नेहरू ने किया जो 1953 में पूर्ण हुआ ।इससे 127 मेगावाट बिजली का निर्माण होता था ।उत्तरप्रदेश में 1953 में रिहंद बांध की शुरुआत की गई जो 1962 में देश को समर्पित किया गया इससे 300 मेगावाट बिजली का निर्माण शुरू हुआ ।तेलंगाना में 1955 में कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर बांध की शुरुआत हुई जिसे 1967 में देश को समर्पित किया गया इस बांध से न केवल 93.72 लाख एकड़ फुट पानी सिंचाई के लिए मिला बल्कि 816 मेगावाट बिजली का भी उत्पादन हुआ ।इसी तरह महाराष्ट्र की कोयना नदी पर 1956 में जवाहरलाल नेहरू ने कोयना बांध की शुरुआत की जिसे 1964 में देश को समर्पित किया गया। इस बांध से 24 लाख एकड़ फीट जल संग्रहण और 1960 मेगावाट बिजली का उत्पादन हुआ। आज के झारखंड में 1957 में मैथोन बांध की शुरुआत की गई यह बांध 60 हजार किलोवाट बिजली का उत्पादन भी करता है ।मध्य प्रदेश की नर्मदा नदी पर 1956 में ही तवा बांध जो एक स्पिलवे बांध है, का निर्माण शुरू हुआ जो 1974 में देश को समर्पित किया गया ।आज देश में जिस सरदार सरोवर बांध की बार-बार चर्चा होती है उस सरदार सरोवर बांध की आधारशिला भी जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर रख दी थी जिसके माध्यम से आज मध्य प्रदेश महाराष्ट्र को बिजली और गुजरात को पानी मिल रहा है। तीनों प्रदेश इससे बनने वाली बिजली से रोशन हो रहे हैं।प्रथम प्रधानमंत्री मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दो-दो युद्धों का सामना करने के बावजूद अपने 17 साल के कार्यकाल में उड़ीसा की महानदी,तमिलनाडु की भवानी,कर्नाटक की तुंगभद्रा,उत्तरप्रदेश की रिहन्द,पंजाब की सतलज,मध्यप्रदेश की नर्मदा,महाराष्ट्र की कोयना,झारखंड की बारकार,तेलंगाना की कृष्णा नदियों को बांध दिया था।वे एक मिशनरी की तरह जुनूनी की तरह इस काम में लगे क्या यह आसान काम था?नौ राज्यों की नौ नदियों को बांधकर 17 साल में देश को समर्पित करना भगीरथी कल्प था।नेहरू ने यह काम तब कर दिखाया जब न पोकलेन थी न जेसीबी थी न इतनी उन्नत तकनीकि थी नेहरू के पुरुषार्थ को छोटा करने का कोई भी प्रयत्न देश के पुरुषार्थ को छोटा करने का प्रयत्न है।आज नेहरू को छोटा करने की नहीं उनके काम से होड़ करने की जरूरत है।(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)




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