पथरीली और बंजर जमीन हरी-भरी
- 18-Feb-25 12:00 AM
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भारत डोगराकिसी भी किसान के लिए बहुत उत्साहवर्धक स्थिति है कि पथरीली और बंजर पड़ी भूमि हरी-भरी फसलों से मुस्कराने लगे और यह उत्साह आज राजस्थान के करौली जिले के अनेक किसानों में दिखाई दे रहा है।मकनपुरस्वामी गांव (मंडरयाल ब्लॉक) के कृषक बल्लभ और विमला ने बताया कि उनके गांव में पत्थर का खनन होता रहा है और बहुत सी जमीन पथरीली होने के साथ खनन के पत्थर भी इधर-उधर बिखरे रहते हैं। गांव में पानी की बहुत कमी थी। अत: उनकी जमीन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बंजर पड़ा था।इस स्थिति में आसपास के अनेक गांवों ने चंदा एकत्र किया और फिर श्रमदान करते हुए वष्रा के बहते पानी को एक स्थान पर रोक कर जल संकट को कुछ हद तक कम किया। आगे वे बताते हैं कि इससे भी बड़ा बदलाव तब आया जब सृजनÓ नामक संस्था ने जल-स्रेतों से मिट्टी हटवा कर खेतों में डलवाई। इससे जल-स्रेत में गहराई आई, अधिक जल एकत्र होने लगा और खेतों का उपजाऊपन बढ़ा। खेतों की मेढ़बंदी की तो उनमें भी पानी रुकने लगा। कृषि भूमि का समतलीकरण किया गया। इस सब का मिला-जुला असर यह हुआ कि बहुत सी पथरीली बंजर भूमि पर अब खेती होने लगी। बल्लभ और विमला अपने हरे-भरे सब्जी के खेत दिखाते हुए बताते हैं कि सृजनÓ ने बीज, पौधों और प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण द्वारा सहायता दी। आरंभ में प्राकृतिक खेती में कुछ कठिनाई आई पर अब प्राकृतिक खेती से उत्पादित गेहूं की कीमत डेढ़ गुनी मिल रही है। विविध सब्जियों का फसल-चक्र वर्ष भर चलता रहता है, जिससे आय भी होती है और पोषण भी सुधरता है। पशुओं के गोबर और मूत्र की खाद बनाने के लिए बायो-रिसोर्स सेंटर भी उन्होंने स्थापित किया है। इसी गांव के किसान मान सिंह बताते हैं कि सृजनÓ ने उनके जैसे कुछ किसानों को सोलर पंप सेट लगाने में सहायता दी और कुछ अन्य को सरकारी विभागों से यह सब्सिडी सहित प्राप्त करने में सहयोग भी दिया। इनके सोलर पंप बहुत कामयाब हैं और डीजल के खर्च में भी बहुत कमी आई है, जबकि प्राकृतिक खेती के प्रसार से अन्य खचरे में बहुत कमी आई है।इसी प्रखंड में जगदड़पुरा की महिला किसान संगठित हुई हैं, और नियमित मीटिंग कर विकास कार्य को आगे बढ़ाती हैं। यह गांव राजस्थान की सीमा पर है और थोड़ा सा आगे जाकर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले या चम्बल क्षेत्र के बीहड़ आरंभ हो जाते हैं। अत: यहां भूमि बंजर होने का खतरा बीहड़ों के प्रसार से भी है और मिट्टी के अधिक कटाव से बीहड़ फैलते और बढ़ते हैं। गांव के किसान अपनी मेहनत से जमीन को समतल कर इस कठिन स्थिति को संभालते हैं। यहां सृजनÓ के प्रयासों ने किसानों की हिम्मत को बहुत बढ़ा दिया है। गांव की महिलाओं ने सामूहिक चर्चा में बताया कि पहाड़ी क्षेत्र में जल-संरक्षण कार्य सृजनÓ की सहायता से हुए हैं जिससे जल-स्तर में सुधार हो रहा है। भूमि का समतलीकरण और मेढ़बंदी को भी बढ़ाया गया है और प्राकृतिक खेती का प्रसार किया गया है।ऐसे विभिन्न प्रयासों से इस गांव में लगभग 25 हैक्टेयर बंजर भूमि पर खेती होने लगी है और इससे लगभग दो गुनी भूमि पर फसल की सघनता और उत्पादकता बढ़ी है। जिस भूमि पर पहले केवल बाजरा होता था, उस पर अब गेहूं, चना, सरसों और सब्जियां सब हो रहे हैं। सृजनÓ के माध्यम से सरकारी कृषि विज्ञान केंद्र से भी मजबूती का संबंध बना है और सिलाई की मशीन, सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर आदि का लाभ मिला है। खारा पानी गांव की बड़ी समस्या है और जब जल जीवन मिशन में लगे नल से बेहतर गुणवत्ता का पानी आने लगा तो लोग बहुत प्रसन्न हुए पर किसी अन्य गांव में पानी फसल के लिए लेने हेतु पाइपलाइन तोड़ दी गई तो यहां नल में पानी आना रुक गया और लोग फिर खारा पानी पीने को मजबूर हो गए। इसी ब्लॉक में स्थित तीन पोखर गांव पथरीली भूमि और पानी की कमी के अतिरिक्त जंगली जानवरों के प्रकोप से त्रस्त रहा है।यहां की बहुत कठिन स्थितियों को देखते हुए अनेक संस्थाओं ने जल-संरक्षण का कार्य किया। हाल के समय में सृजनÓ ने 8 पोखर बनवाए, 18 पोखरों को गहरा किया, मेढ़ पक्की की और अन्य सुधार किए। प्राकृतिक खेती का प्रसार किया और सरकारी सहायता प्राप्त करने में सहयोग किया। इसका असर यह हुआ है कि विकट परिस्थितियों और विशेषकर जंगली पशुओं संबंधी बढ़ती कठिनाइयों के बावजूद कुछ किसान बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने में जुटे हैं और खेत से पत्थर हटाने, समतलीकरण, उपजाऊ मिट्टी डलवाने के कार्य सृजनÓ जैसी संस्थाओं के सहयोग से कर रहे हैं। सपोटरा ब्लॉक में कैला देवी धार्मिक स्थल से आगे पहाड़ी वनीय क्षेत्र इस जिले में अधिक हैं। यहां के मार्ग बहुत कठिन हैं और गांव दूर-दूर तक बिखरे हुए हैं। ऐसे बड़े क्षेत्र प्राय: नजर आते हैं जहां सिंचाई मिलने से खेती हो सकती है पर पानी के अभाव में भूमि बंजर पड़ी है।अपने सीमित संसाधनों के आधार पर सृजनÓ ने ऐसे अनेक गांवों को चुना है और बड़ी संख्या में पोखर बनवाए हैं या पहले से बने पोखरों का सुधार किया है और उनकी सफाई के दौरान प्राप्त मिट्टी से खेतों को अधिक उपजाऊ बनाया। रावतपुरा एक ऐसा ही गांव है जहां सृजनÓ ने वर्ष में लगभग 13 नये जल स्रेत या पोखर बनवाए और लगभग इतने ही पहले से बने पोखरों का सुधार भी किया। इस कार्य के फलस्वरूप लगभग 200 एकड़ बंजर भूमि पर खेती होने लगी और लगभग इतनी ही भूमि पर एक के स्थान पर दो फसल होने लगीं और उत्पादकता भी बढ़ गई। जहां पहले वष्रा आधारित धान होता था, वहां रबी की फसल में भी गेहूं, चने, सरसों का उत्पादन होने लगा। पहले अपना पेट भरने लायक अनाज भी किसान प्राप्त नहीं कर रहे थे, वहां अब व्यापारी गांव में आकर ही गेहूं, सरसों आदि खरीदने लगे। एक किसान देवी सिंह की लगभग आधी भूमि बंजर पड़ी थी पर अब इस भूमि पर भी खेती हो रही है, फसल लहलहा रही है। किसान इन विभिन्न विकास कार्य में लगभग एक तिहाई आर्थिक सहयोग स्वयं देने को तैयार रहते हैं जबकि लगभग दो तिहाई सहयोग सृजनÓ की ओर से किया जाता है। जिन किसानों के लिए अपना सहयोग देना कठिन हो उनके लिए आपसी बातचीत से कोई समाधान निकाल लिया जाता है।इस तरह समुदायों के साथ नजदीकी भागेदारी से कार्य करते हुए और इस आधार पर जल-स्रेतों के निर्माण, पुराने जल-स्रेतों के सुधार, मेढ़बंदी, भूमि समतलीकरण आदि के कार्य से बंजर भूमि को हरा-भरा करने की बड़ी संभावनाएं उत्पन्न होती हैं। सृजनÓ के टीम लीडर भवानी सिंह के अनुसार पांच वर्षो के प्रयास में प्रखंडों में 1250 एकड़ बंजर भूमि पर खेती की प्रगति संभव हुई और 286 पोखरों का सुधार हुआ जबकि 96 नये पोखर बनाए गए। ग्रामीण समुदायों की उत्साहवर्धक भागेदारी प्राप्त हो जाने से यह कार्य बहुत कम बजट पर हो सका और इस तरह बंजर भूमि को हरा-भरा करने के इस प्रयास से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
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