पशु पक्षी, वनस्पति,जल,जीव, मानव साम्यता के लिए बनो का संरक्षण आवश्यक

  • 08-Jun-25 12:00 AM

अजय दीक्षितहैदराबाद की एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में बड़े जंगलों से संरक्षित भूमि का व्यावसायिक हितों पेड़ो का काटना शुरू हुआ तो केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने स्वविवेक से आंदोलन शुरू कर दिया। मामला सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर पहुंचा तो सर्वोच्च न्यायालय ने पहले रोक लगाई फिर स्थाई रूप से पेड़ों की कटाई को अवैध ठहरा दिया। ब्राजील में पूरे देश में पेड़ो की कटाई पर नियमित रोक है ।इसी प्रकार यूरोपीय देशों ने भी प्रतिबंध लगा रखे हैं लेकिन भारत में बनो के संरक्षण अधिनियम लचीला है क्योंकि हम बढ़ती जनसंख्या के दबाव में सड़क परियोजना, बांध निर्माण, संस्थाओं की इमारतों, बढ़ते कंक्रीट के जंगलों , निजी आवासीय योजनाओं को बनने से रोक नहीं पा रहे हैं। हालांकि भारत में तीव्र विकास को अभी 35 साल ही हुए हैं। फिर भी भारत में 835000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर बन आच्छादित हैं।यह अकड़ा कुल भारत भूमि 3287235 वर्ग किलोमीटर का 25 फीसदी से अधिक है।विश्व में रूस में सर्वाधिक 800 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि में बन है जो उसकी कुल भूमि का 52 फीसदी है।भारत में दो तरह के बन है आरक्षित और संरक्षित। संरक्षित बनो में निर्माण के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण से स्वीकृति लेनी पड़ती है। आरक्षित बनो के मामले में राज्य सरकार सक्षम है। बताया जाता है कि भारत सरकार के आंकड़े कहते हैं कि बन 0.70 प्रतिशत की गति से बढ़ रहे हैं। सरकार और एनजीओ ने मिलकर सामाजिक बानगी, डीप फोरेस्टेशन आदि कार्यक्रम बन बढ़ाने के लिए चला रखे हैं लेकिन अवैध बन माफिया कटाई भी खूब कर रहा है।आज अंतरास्ट्रीय पर्यावरण दिवस है । पर्यावरण संगठन ने विभिन्न स्तरों पर पेड़ लगाने का काम सरकार से मिलकर किया है। पर्यावरण विशेषज्ञ का मत है कि अगर मानव साम्यता ने बनो की अनदेखी की तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी का जल स्तर कम होता जायेगा और नदियों में पानी नहीं रहेगा ।भारत में कुछ नदियों को छोड़कर अधिकतर नदियों में बरसात को छोड़कर जल सूख जाता है।गंगा, जमुना,महानदी, गोमती, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा, सिंध, रावी, व्यास, सतलुज,आदि नदियों के किनारे ही मानव साम्यता का जन्म हुआ था।इन नदियों के डेल्टा में सुंदर बन,जैसे विशाल जंगल श्रृंखलाओं का जन्म हुआ था। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ स्टैन का मानना है कि जंगल नहीं होंगे तो जल,जीव, मानव, पशु पक्षी, वनस्पति का विकास नहीं होगा । उन्होंने कहा है कि पृथ्वी के आवरण से ओजोन परत को पृथ्वी के बढ़ते ताप क्रम से नुकसान हुआ है और ग्लेशियरों का पिघलना जारी है।यह भी जनसंख्या दबाव के कारण है।इस मामले में यूरोपीय देशों में जनसंख्या दबाव कम है। नॉर्वे फिनलैंड, आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, डेनमार्क आदि में ग्लेशियरों का संरक्षण हो रहा है और वहां बरसात भी 1500 मि मीटर से अधिक है जबकि भारत में मानसून नियमित है तब भी पूरे भारत की औसत बारिश 700 मि मीटर है।लेकिन अभी भी भारत में बन 25 फीसदी है। क्योंकि अपनी सदाबहार बनो, उष्णकटिबंधीय जलवायु है।उत्तर में हिमालय में घने जंगलों का डेरा है। पूर्वोत्तर भारत की हरीयाली तो पूरे संसार में सबसे अधिक है। लेकिन जहां तक नदियों, झीलों, तलावों का प्रश्न हैं उसमें यूरोपीय देश, चाइना, अमेरिका की ख्याति है। टेम्स, अमेजॉन, नील,नदियों को सर्वोत्तम माना जाता है।भारत में मप्र सबसे घने जंगलों का प्रदेश है, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, पूर्वोत्तर राज्य असम, नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम हरित क्रांति के जनक हैं।सबसे बुरी हालत राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, ओडि़शा, आंध्र प्रदेश,केरल के है। वर्तमान में उसी देश को विकसित माना जाता है जिसमें जीव जंतु, जानवर, पशु पक्षी सुरक्षित हो । मप्र को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है क्योंकि मप्र में बन अधिक हैं।कूनो पालपुर, बांधव गढ़, कान्हा किसली,शिवपुरी नैशनल पार्क, पचमढ़ी,के बन विश्व प्रसिद्ध हैं। उत्तराखंड में राजाजी टाइगर, जिम कार्बेट, देहरादून नेशनल पार्क है।मुरैना , भिंड, श्योपुर में चंबल नदी में नेशनल सेंचुरी है यहां पर दिसंबर माह में न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया,से कई प्रकार पक्षी प्रवास पर आते हैं लेकिन रेत अवैध खनन ने सब गुड गोबर कर दिया है। विलुप्त घडिय़ाल प्रजाति की अंतराष्ट्रीय सेंचुरी भी चंबल नदी पर है।




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