
पोलिंग बूथ के सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करना मतदाताओं की निजता का उल्लंघन
- 21-Jun-25 03:51 AM
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0-राहुल गांधी की मांग पर चुनाव आयोग का जवाब
नईदिल्ली ,21 जून (आरएनएस)। पोलिंग बूथ के वेबकास्टिंग फुटेज सार्वजनिक करने की मांग के बीच चुनाव आयोग के अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि ऐसा कदम मतदाताओं की निजता और सुरक्षा चिंताओं का उल्लंघन है. आयोग ने कहा कि वह मतदाताओं की निजता और मतदान की गोपनीयता की रक्षा के लिए कानूनी रूप से प्रतिबद्ध है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शनिवार को चुनाव प्रक्रिया के सीसीटीवी फुटेज को लेकर चुनाव आयोग से सवाल किया था.
चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर फैसले को तय समय में अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है तो वे 45 दिनों के बाद चुनाव प्रक्रिया के सीसीटीवी कैमरे, वेबकास्टिंग और वीडियो फुटेज को नष्ट कर दें.
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया, कुछ लोग मतदान के दिन मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग के वीडियो या सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं. हालांकि यह मांग मतदाताओं के हित में और देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए काफी वास्तविक और उचित प्रतीत होती है, लेकिन वास्तव में इसका मकसद बिल्कुल विपरीत उद्देश्य हासिल करना है. जिसे बहुत तार्किक मांग के रूप में पेश किया जा रहा है, वह वास्तव में मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा चिंताओं, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950/1951 में निर्धारित कानूनी स्थिति और भारत के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बिल्कुल विपरीत है.
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि फुटेज को साझा करने से, जिससे कोई भी समूह या व्यक्ति आसानी से मतदाताओं की पहचान कर सकेगा, मतदान करने वाले मतदाता तथा मतदान न करने वाले मतदाता, दोनों ही असामाजिक तत्वों के दबाव, भेदभाव और धमकी का निशाना बन सकते हैं.
अधिकारियों ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी विशेष मतदान केंद्र पर कम वोट मिलते हैं, तो वह सीसीटीवी फुटेज के जरिये आसानी से पहचान कर सकेगा कि किस मतदाता ने वोट दिया है और किस मतदाता ने नहीं, और इसके बाद वह उन्हें परेशान या डरा सकता है.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि चुनाव आयोग सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों की अवधि तक अपने पास रखता है, जो सिर्फ और सिर्फ एक आंतरिक प्रबंधन उपकरण है और अनिवार्य आवश्यकता नहीं है, जो कि चुनाव याचिका दायर करने के लिए निर्धारित अवधि के अनुरूप है.
अधिकारियों ने बताया कि चूंकि नतीजों की घोषणा के 45 दिनों के बाद किसी भी चुनाव को चुनौती नहीं दी जा सकती, इसलिए इस अवधि से अधिक समय तक फुटेज को अपने पास रखने से गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण बयानबाजी फैलाने के लिए सामग्री का दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ जाती है.
उन्होंने कहा कि यदि चुनाव याचिका 45 दिनों के भीतर दायर की जाती है तो सीसीटीवी फुटेज नष्ट नहीं की जाती है और मांगे जाने पर सक्षम अदालत को उपलब्ध करा दी जाती है.
अधिकारियों ने कहा कि निर्वाचन आयोग के लिए मतदाता की गोपनीयता बनाए रखना कोई समझौता नहीं है और उसने कानून में निर्धारित इस आवश्यक सिद्धांत पर कभी समझौता नहीं किया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है.
दुर्भावनापूर्ण धारणा बनाने के लिए अपने इलेक्ट्रॉनिक डेटा के उपयोग की आशंका के चलते चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर चुनाव नतीजों को उस अवधि के भीतर अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है, तो वे 45 दिनों के बाद सीसीटीवी कैमरे, वेबकास्टिंग और चुनाव प्रक्रिया के वीडियो फुटेज को नष्ट कर दें.
इससे पहले, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मतदान केंद्रों से शाम 5 बजे के बाद की सीसीटीवी फुटेज जारी करने की मांग की थी. जिस पर चुनाव अधिकारियों ने यह टिप्पणी की.
पिछले साल दिसंबर में सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों जैसे सीसीटीवी कैमरे और वेबकास्टिंग फुटेज तथा उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग के सार्वजनिक निरीक्षण पर रोक लगा दी थी, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके.
चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर, केंद्रीय विधि मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध कागजात या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके.
30 मई को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को लिखे पत्र में चुनाव आयोग ने कहा कि उसने चुनाव प्रक्रिया के दौरान फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी और वेबकास्टिंग जैसे बहु-रिकॉर्डिंग उपकरणों के जरिये चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की रिकॉर्डिंग के निर्देश जारी किए हैं.
चुनाव आयोग के सूत्रों ने आगे कहा, चुनाव आयोग मतदाताओं की गोपनीयता और मतदान की गोपनीयता की रक्षा के लिए कानूनी रूप से बाध्य और प्रतिबद्ध है, इसलिए मतदान केंद्र से वीडियो फुटेज मतदाताओं की स्पष्ट सहमति के बिना किसी भी व्यक्ति, उम्मीदवार या एनजीओ या किसी तीसरे पक्ष को नहीं दी जा सकती है.
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