बालकृष्ण भट्ट : राष्ट्रीय चेतना के प्रबल स्वर और हिंदी गद्य के शिल्पकार

  • 29-Jun-25 01:34 AM

नई दिल्ली, 29 जून (आरएनएस)। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया एवं दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) में "बालकृष्ण भट्ट का साहित्य" विषयक एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस सारगर्भित कार्यक्रम में साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक चिंतन के विभिन्न पक्षों से बालकृष्ण भट्ट के योगदान पर विद्वानों ने व्यापक विचार प्रस्तुत किए।कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ पत्रकार श्री दिलीप चौबे के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने बालकृष्ण भट्ट को भारतीय पत्रकारिता की नींव का मजबूत स्तंभ बताते हुए कहा कि आज की निर्भीक पत्रकारिता की जड़ें भट्ट जी की लेखनी में हैं। मुख्य वक्ता प्रो. हरीश अरोड़ा (वरिष्ठ साहित्यकार एवं हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने भट्ट जी की साहित्यिक दृष्टि, इतिहास-बोध और सामाजिक सरोकारों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें हिंदी गद्य-काव्य परंपरा का आद्य शिल्पी बताया। उन्होंने कहा कि भट्ट जी का गद्य तर्क और भाव की अद्वितीय समन्वयक शैली में लिखा गया है, जो उन्हें भारतेन्दु युग का वैचारिक अग्रदूत बनाता है। डॉ. विजयशंकर मिश्र ने भट्ट जी की रचनाओं की पाश्चात्य विचारकों से तुलना करते हुए उन्हें "हिंदी का एडिसन" करार दिया। वहीं डॉ. राधेश्याम मिश्र ने उनके गद्य में छिपी काव्यात्मकता को उदाहरणों सहित प्रस्तुत करते हुए उन्हें भाषाई नवाचार का जन-प्रेरक बताया। डॉ. हरिसिंह पाल (महासचिव, नागरी लिपि परिषद) ने भट्ट जी को मुखर अभिव्यक्ति और निर्भीक लेखनी का प्रतीक बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदी पत्रकारिता की मौजूदा स्पष्टवादिता उनके योगदान की ही देन है। विशिष्ट वक्ता डॉ. आशा जोशी ने भट्ट जी के निबंधों में ‘कबीर जैसी स्पष्टता’ की उपस्थिति पर चर्चा करते हुए उनके सामाजिक सरोकारों, विशेषकर बाल विवाह एवं जनसंख्या वृद्धि पर उनके विचारों को सामने रखा। युवा लेखिका सुश्री नेहा कौशिक ने अनुवाद के माध्यम से उनके साहित्य के सांस्कृतिक आयामों पर विचार रखते हुए कहा कि उनका अनुवाद भाषिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्रचना है। मुख्य अतिथि डॉ. वीणा गौतम ने उस समय की सामाजिक कुरीतियों तथा पश्चिमी प्रभावों पर चर्चा करते हुए भट्ट जी के विचारों की समकालीन प्रासंगिकता को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मुकेश अग्रवाल ने भट्ट जी की साहित्यिक भावना को "जन समूह के हृदय का विकास" कहते हुए उनकी प्रसिद्ध रचना "वेणुसंहार" की पंक्ति “खिला गुल हिंद में आवारगी का” का उल्लेख किया। कार्यक्रम संयोजक डॉ. शिव शंकर अवस्थी ने कहा कि भट्ट जी की रचनाएँ भले ही कलात्मक शिखर पर न हों, लेकिन उनकी वैचारिक दृढ़ता और सामाजिक प्रतिबद्धता उन्हें हिंदी गद्य का मार्गदर्शक बनाती हैं। वे एक ऐसे युग-निर्माता चिंतक थे, जिनके बिना आधुनिक हिंदी निबंध और आलोचना अधूरी रहती। इस अवसर पर दिल्ली व आसपास के अनेक साहित्यकार, भाषाविद और शिक्षाविद उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन श्री सत्यपाल चावला द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।




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