बिहार, झारखंड में कांटे की लड़ाई
- 27-Feb-24 12:00 AM
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हरिशंकर व्यासभारतीय जनता पार्टी 370 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिन राज्यों में पिछली बार का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कर रही है उनमें बिहार और झारखंड दोनों शामिल हैं। बिहार में पिछली बार 40 में से 39 सीटें एनडीए को मिली थी जिसमें भाजपा को अकेले 17 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा को इसमें मुश्किल दिख रही थी तो उसने किसी तरह से राजद और जदयू का गठबंधन तुड़वा कर नीतीश कुमार के साथ तालमेल किया है। इसके बावजूद भाजपा को गारंटी नहीं है कि वह पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी।इसी तरह झारखंड में भाजपा और उसकी सहयोगी को राज्य की 14 में से 12 सीटें मिली थीं। लेकिन उसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उसे हरा दिया था। तब से भाजपा किसी तरह से सरकार को अस्थिर करने में लगी थी। चुनावी साल में जेएमएम नेता हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी ने विपक्ष का वोट एकजुट किया है। वहां आधा दर्जन सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल लड़ाई दिख रही है। ओवरऑल वोट में भाजपा बहुत आगे है। उसे 56 फीसदी वोट मिले थे, जबकि जेएमएम और कांग्रेस अलायंस को 35 फीसदी वोट मिले थे। यानी 21 फीसदी वोट का अंतर था।लेकिन सीटवार देखें तो पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा ने लोहरदगा, खूंटी और दुमका सीट बहुत कम अंतर से जीती थी। खूंटी में अर्जुन मुंडा महज डेढ़ हजार वोट से जीते थे, जबकि लोहरदगा सीट पर सुदर्शन भगत 10 हजार वोट से जीते थे। दुमका में सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को 47 हजार वोट से हराया था। इन तीन सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम गठबंधन कम अंतर से हारा था और दो सीटों- चाईबासा व राजमहल में जीत मिली थी। सो, कम से कम पांच लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां विपक्ष गठबंधन मजबूत है। पिछली बार के मुकाबले विपक्ष का गठबंधन इस बार बेहतर स्थिति में इसलिए भी है क्योंकि पांच साल राज्य में भाजपा के तमाम प्रयासों के बावजूद न जेएमएम में कोई टूट हुई और न कांग्रेस टूटी। हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने और गिरफ्तारी के बाद भी चम्पई सोरेन के साथ सभी विधायक एकजुट रहे।बिहार में भाजपा को पता था कि राजद, जदयू, कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन ज्यादा मजबूत है इसलिए नीतीश कुमार को उसने अपने साथ मिलाया। ओवरऑल वोट में भाजपा, जदयू और लोजपा गठबंधन को 23 फीसदी वोट की बढ़त थी। एनडीए को 53 फीसदी तो कांग्रेस और राजद गठबंधन को 30 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन सीटवार मुकाबले में कई सीटें बहुत कांटे की टक्कर वाली थीं। मिसाल के तौर पर जहानाबाद सीट पर राजद के सुरेंद्र यादव सिर्फ साढ़े 17 सौ वोट से हारे थे।पाटलिपुत्र सीट पर मीसा भारती 39 हजार वोट हारी थीं तो कटिहार सीट पर कांग्रेस के तारिक अनवर 57 हजार वोट से हारे थे। राजद और कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां काराकाट और औरंगाबाद सीट पर भी एक लाख से कम वोट से हारी थीं। विपक्षी गठबंधन सिर्फ एक किशनगंज सीट जीत पाया था। लेकिन इस बार नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद विपक्ष ज्यादा आक्रामक लड़ाई की तैयारी में है, जिसमें पाटलिपुत्र, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम, औरंगाबाद, काराकाट, सीवान, सारण और बक्सर जैसी करीब 10 सीटों पर कांटे की टक्कर होगी। इसलिए भाजपा नीतीश कुमार के अलावा लोजपा के दोनों खेमों यानी चिराग पासवान व पशुपति पारस के साथ साथ उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को भी एनडीए में रखे हुए है। इन सबको सीटें देकर वोट एकजुट करने की कोशिश में है तो बूझ सकते है बिहार में मुकाबला कितना तगड़ा है।
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