भारतीय संस्कृति की वाहक है लोकगाथाएं

  • 23-Aug-24 12:00 AM

प्रो. साकेत कुशवाहा

लोककथाएं और लोकपरम्पराएं किसी भी सभ्यता और संस्कृति की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि इनके माध्यम से पूर्ववत चली आ रही सामाजिक धरोहर को आगामी पीढ़ी को कई गतिविधियों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है । भारत लोककथाओं से सम्पन्न देश है जिसमें प्रत्येक क्षेत्र और उस क्षेत्र के निवासियों की अलग-अलग लोककथाएं है जिनका स्मरण और संरक्षण करना आवश्यक है । लोक कथाएं वो कहानियाँ होती है जिनका निर्माण और उत्पन्न स्थान बात पाना कठिन होता है क्योंकि ए कथाएं पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है । लोक संस्कृति में व्याप्त लोकगीत, लोकनृत्य, लोकगाथा, लोककथा जनजातियों के प्रतिरूप है। जिसके द्वारा जनजातियों का परिचय स्वभाविक रूप से हो जाता है। जनजातियों में प्रचलित लोक कथाएं जनजातीय संस्कृति के दर्पण है। जिसमें उनकी संस्कृति, परम्परा, खान-पान, रहन-सहन, तीज-त्यौहार और प्रकृति के साथ उनके जुड़ाव को आसानी से देखा जा सकता है। लोककथा का विकास मानव के जन्म के साथ ही प्रारंभ हुआ होगा। वर्तमान समय में भी लोककथा वाचिक परम्परा से ही प्राप्त होती है। खेतों में कार्य करते हुए कृषक महिला एवं पुरुष श्रम परिहार के लिए लोककथाओं का सहारा लेते हैं। लोक कथा कथक्कड़ की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। गाँव में फुर्सत के क्षणों में किसी घर के बरामदे या सार्वजनिक चौपाल में भी लोक कथाओं को बहुत उत्साह से सुनते हुए आनन्द उठाते हैं तथा घरों में रात्रि के समय छोटे-छोटे बच्चे अपने दादा-दादी के पास रहते हुए भी लोककथाओं को मौखिक रूप से सुनते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी अनवरत् चली आ रही है। डॉ. नत्थू तोड़े की पुस्तक बस्तर की लोककथा: सांस्कृतिक आयामÓ में भी बस्तर के जनजातियों में प्रचलित मौखिक परम्परा से चली आ रही लोककथाओं का दर्शन होता है। बस्तर की जनजातियों में प्रचलित सभ्यता एवं संस्कृति को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। इस पुस्तक के अध्ययन से जनजातियों की धार्मिक आस्था, लोक विष्वास एवं लोक परम्पराओं की भिन्न-भिन्न विषेशताओं को जाना एवं समझा जा सकता है। डॉ. नत्थू तोड़े अपनी पुस्तक में बस्तर के प्रमुख जनजातिय निवासी गोड़, हल्बा, भतरा, गदबा, धुरूवा, माडिय़ा एवं मुरिया के सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना को उनमें प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से उद्धृत करने का प्रयास किया है। तकनीकी प्रधान दुनियाँ में इनका प्रभाव कम होता जरा है । अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा राज्य है और पूरे देश में सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। राज्य में कई खूबसूरत आकर्षण हैं। वन्यजीवों को देखने से लेकर आध्यात्मिक तीर्थस्थलों में प्रार्थना में भाग लेने तक, अरुणाचल प्रदेश में करने के लिए बहुत सी चीज़ें हैं । इसके अलावा, यह राज्य अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपरा के लिए भी जाना जाता है। यहाँ अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों और परंपराओं के बारे में वह सब कुछ बताया गया है जो आपको जानना चाहिए और यह भी कि कैसे प्रत्येक आदिवासी समुदाय ने अपनी संस्कृति बनाई। अरुणाचल प्रदेश में करीब 26 जनजातियाँ हैं, जिनमें 100 से ज़्यादा उप-जनजातियाँ हैं। इनमें से मुख्य जनजातियाँ हैं आदिस, अपटानी, बुगुन, ह्रुसोस, सिंगफोस, मिशमी, मोनपा, न्यिशिस, शेरडुकपेन्स, टैगिन्स, खमटिस, वांचो, नोक्टेस, योबिन, खंबास और मेम्बास। हालाँकि, प्रत्येक जनजाति के बारे में ज़्यादा जानने का सबसे अच्छा तरीका एक टूर लेना है जहाँ गाइड आपको प्रत्येक जनजाति की उत्पत्ति और संस्कृति के बारे में बताएगा। इन आदिवासी लोगों में ऐसा क्या अनोखा है? अपनी संस्कृति में महारत हासिल करने के अलावा, ये लोग टोकरियाँ बनाना, बुनाई, लोहार का काम, मिट्टी के बर्तन बनाना, लकड़ी की नक्काशी, पेंटिंग और बहुत कुछ जैसे कौशल में भी माहिर हैं। अरुणाचल प्रदेश में गालो जनजाति पोपिर नृत्य से नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। लोकप्रिय नृत्य जनजातियों की विशेषता है और दर्शकों को यह नृत्य जरूर देखना चाहिए। यह मुख्य रूप से महिला सदस्यों द्वारा किया जाता है। उनका नृत्य एपी में देवी मोप को शीर्ष श्रद्धांजलि है, ऐसा माना जाता है कि यह समृद्धि और उर्वरता की देवी है। एक समय की बात है, अरुणाचल प्रदेश की हरी-भरी घाटियों और बर्फ से ढकी चोटियों पर मोनपा नामक एक जनजाति रहती थी। वे एक शांतिपूर्ण और घनिष्ठ समुदाय थे, जो प्रकृति और आध्यात्मिक दुनिया से गहराई से जुड़े हुए थे। उनकी कहानियों और किंवदंतियों में से एक सबसे अलग थी - न्येथरी और पवित्र पर्वत की कहानी।आज टेलीविजऩ की अलग ही धूम है7लोगों के दिलों पर इसी का राज है7इसने अपना अलग ही महत्त्व बना रखा है7लोग अपनी भावनाओं के साथ इस से जुड़े हुए हैं7इसके सामने दुसरे माध्यम फीके पड़ गए हैं7चूँकि इस माध्यम में समाचर या सूचनाओं का आदान-प्रदान द्रश्य-श्रव्य माध्यम द्वारा होता है इसलिए लोगों पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है7इस में कोई शक नहीं की आज टेलिविजन लोगों के जीवन का एक अंग बन चूका है7तमाम माध्यमों के बीच इसको प्राथमिक हैसियत हासिल है7अब तो नेशनल और क्षेत्रीय सभी भाषाओँ में चैनल पर्याप्त हैं7अनेक भाषाओँ और अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं7समाचार ,फिल्म ,डाक्युमेंट्री, डाक्युड्रामा, रियलिटी शो, टॉक शो, मनोरंजकपरक कार्यक्रम, खेल, भूगोल, इतिहास, धर्म, साहित्य, राजनीतिक कार्यक्रम और धरावाहिक आदि से संबंधित कार्यक्रम विभिन्न चैनलों पर प्रस्तुत किया जाता है7 उनमे लोककथाओं का प्रदर्शन और प्रभाव कम रहता है । अरुणाचल में बहुत से ऐसे लोक कथाएं प्रचलित है जिनका एक वैज्ञानिक ढांचा है और जो आधुनिक सभ्यता को भी आकर्षित करती है । इस प्रदेश में डोनी-पोलोइज़्म (सूर्य-चंद्रमा) आदिवासियों के बीच प्रकृति और सद्भाव के संतुलन को बनाए रखने का दर्शन है। यहाँ की ज़्यादातर जनजातियाँ प्रकृति और दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करती हैं। समय के साथ, बौद्ध धर्म लोगों के बीच एक प्रमुख आस्था के रूप में उभरा।ऐसा लगता है कि अरुणाचल प्रदेश की संस्कृति के लिखित अभिलेखों का कोई स्रोत नहीं है और ज़्यादातर जानकारी मौखिक साहित्य के माध्यम से ही मिल सकती है। कई राज्य ऐसे हैं जो अपने लोक कथाओं को संरक्षित करने के लिए जाना जाता है परंतु यह राज्य अपने लोक कथाओं को लोक गाथाओं के माध्यम से अभियक्ति के लिए जाना जाता है । इस राज्य में भ्रम करने और सेवा देने के पश्चात यह ज्ञान हुआ है कि यहाँ की लोक गाथाएं सामाजिक और राजनीतिक अभियक्ति की वाहक है । दुनिया के कुछ सबसे अनोखे समुदायों का एक आकर्षक निवास, समृद्ध जैव विविधता की प्रचुरता और समय के साथ अलग दुनिया, अरुणाचल प्रदेश वास्तव में एक स्वर्ग है जो हमेशा एक आनंदमय स्थान रहेगा, जो समय बीतने से अछूता रहेगा।( लेखक प्रसिद्ध, शिक्षाविद एवं राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश के कुलपति है)




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