मतदाता सूची में सुधार करने को लेकर विवाद क्यों हो रहा है
- 11-Jul-25 12:00 AM
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अजय दीक्षितचुनाव आयोग ने बिहार सहित सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों में सुधार के लिए कुछ नियम कायदे कानून बनाए हैं और इन सुधारों को लेकर बिहार में राजद के नेता तेजस्वी यादव ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी बिहार में कुछ विशेष संप्रदाय के मतदाताओं को मतदान से वंचित करना चाहती है और उन्होंने इस प्रक्रिया के चुनाव से ठीक पहले करने पर आपत्ति जताई है। 9 जुलाई को पटना में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने इस संबंध में प्रदर्शन कर कहा कि भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र की तरह चुनाव में हेराफेरी करना चाहती है।दूसरी ओर कुछ व्यक्तियों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि इस प्रक्रिया पर रोक लगाएं। सर्वोच्च न्यायालय 10 अगस्त को सुनवाई करेगा।भारत के संविधान के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951की अनुच्छेद 243 (क) के तहत ईसीआई यानि मुख्य चुनाव आयोग मतदाता सूचियों का राज्य बार समय समय पर प्रकाशित करता है।भारत का प्रत्येक नागरिक 18 वर्ष की आयु पूरी होने पर मतदाता सूची में एक स्थान पर अपने मत का किसी भी चुनाव में भाग ले सकता है।मतदाता सूचियों के गठन की प्रणाली आजादी के बाद 1951 से लागू है और प्रथम चुनाव 1952 में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ कराए गए। आरंभ में मतदाता के लिए आयु 21 वर्ष थी जो 1986 में 18 वर्ष करदी गई।जैसे जैसे समय बीता तो कुछ विसंगति भी नजर आई जैसे अनाधिकृत तरीके से कुछ राज्यों घुसपैठियों भी मतदाता सूची में शामिल हो गए।इन लोगों ने राशनकार्ड बनवाकर अपने आप को मतदाता सूची में शामिल कर बा लिया ।जिन राज्यों इस प्रकार की घुसपैठ हुई उनमें पश्चिमी बंगाल,बिहार,उत्तर प्रदेश,असम, नागालैंड त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, प्रमुख रूप से शामिल हैं।इन राज्यों में बांग्लादेश के चकमा शरणार्थी, घुसपैठियों की संख्या अधिक थी।सबसे पहले अटलजी की सरकार में गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने इसे संज्ञान में लिया। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया। और एनआरसी बनाने की घोषणा की इतना ही नहीं पहले आधार को पैन कार्ड से लिंक कराया उसके बाद वोटर आईडी को आधार से लिंक करने का काम चल रहा है।चुनाव आयोग ने वर्तमान में बिहार में मतदाता सूचियों में गड़बडिय़ों को रोकने के लिए आवश्यक कर दिया है कि मतदाता को यह साबित करना पड़ेगा कि वह भारत का निवासी है फिर चाहे वह किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का हो । इसके लिए मतदाता को अपने पिता का जन्म प्रमाणित करना पड़ेगा ।बस यही से विवाद शुरू हुआ है। बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम, और,सातों पूर्वोत्तर राज्यों में लाखों लोगों ने जाली राशनकार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बनवा लिया है। उनमें से अधिकाक मुस्लिम है जो बांग्लादेश,म्यांमार,से आए हैं।पश्चिमी बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार, तुड़मूल कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी ने इन लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराया है। उसी कार्ड से ये लोग वोटर बन गए हैं।केंद्र में जब तक कांग्रेस सरकार रही उसने इन मुद्दों को महत्व नहीं दिया लेकिन चुनाव आयोग समय समय पर संज्ञान में लाता रहा था। टी एन शेषन जब मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव से बकायदा पत्र लिख कर सूचित किया था कि पश्चिमी बंगाल की मतदाता सूचियों का परीक्षण कराया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि मतदाता सूचियों का प्रचलन बहुत प्राचीन है और समय समय पर इस प्रक्रिया में सुधार किया गया है।दुनियां की पहली मतदाताओं सूची का उल्लेख 1241 में ब्रिटेन में मिलता है तत्कालीन समय में किसी मुद्दे पर राय लेने के लिए एक सूची थी । लेकिन 1761 में अमेरिका में बकायका चुनाव के लिए मतदाता सूची बनी ।उससे पहले मत व्यक्त करने के लिए पहले कान में कहना बाद में ध्वनि मत का ईजाद किया गया था।फिर एक हस्त लिखित पर्ची की प्रथा चली उसके बाद रेफरेंडम बना । स्विटजरलैंड में सबसे पहले नागरिकों के घर पोस्ट से मतपत्र भेजने का भी प्रचलन था।मॉडर्न डेमोक्रेसी अमेरिका से आई।अब पूरे संसार में लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता सूचियों है ।किन्हीं राष्ट्रों में तो एनआरसी से स्वचालित मतदाता सूचियों का उपयोग किया जाता है।18 वर्ष पूरी होने पर स्वचालित रूप से मतदाता बनता है।जन्म विवाह, मृत्य पंजीकरण से मतदाता का स्थान तय किया जाता है।भारत में ईवीएम से मतदान होता है लेकिन मतदाता सूचियों का निर्धारण प्रक्रिया जटिल व कठिन है।चुनाव आयोग सरलीकरण और कंप्यूटर जनित मतदाता सूचियों को ऑनलाइन करने के रास्ते में है । विपक्ष का तर्क भी सही है कि चुनाव के मौके पर इस तरह के प्रक्रिया करना आपत्तिजनक है। लेकिन यह फैसला चुनाव आयोग का है न कि केंद्रीय सरकार का । और भारत में चुनाव आयोग अब तो काफी शक्तिशाली है। यहां तक कि मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं।किसी जमाने में चुनाव आयोग, मतदाता सूचियों, मतपत्र छापने,चुनाव से जुड़े कर्मचारियों, अधिकारियों को साज सामान, देने तक सीमित था लेकिन टी एन शेषन ने चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय करवाया।
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