मुद्दा : जन सरोकार व संघ का विस्तार

  • 28-Mar-24 12:00 AM

अवधेश कुमारनागपुर में संपन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा के दौरान संपूर्ण भारत और भारत में अभिरु चि रखने वाले विश्व भर के मीडिया का एकत्रीकरण था।सामने लोक सभा चुनाव के कारण ऐसा लग रहा था कि वहां से इसके संबंध में कुछ रणनीति ऐसी बनेगी, ऐसा वक्तव्य आएगा जो समाचार, बहस और विचार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होगा। लंबे अनुभव के बावजूद पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की धारणा बदली नहीं है कि चुनाव या राजनीतिक दल या सरकार को फोकस करके संघ के आयोजन नहीं होते। यह संभव नहीं कि चुनाव हो और इसमें संघ की अभिरु चि नहीं हो या उसमें उनकी कोई भूमिका हो ही नहीं।यह भूमिका किस रूप में हो सकती है? इस बारे में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का वक्तव्य ध्यातव्य है-चुनाव देश के लोकतंत्र का महापर्व हैं। संघ के स्वयंसेवक सौ प्रतिशत मतदान के लिए समाज में जन-जागरण करेंगे। समाज में इसके संदर्भ में कोई भी वैमनस्य, अलगाव, बिखराव या एकता के विपरीत कोई बात न हो, इसके प्रति समाज जागृत रहे। राजनीति और चुनाव को सर्वोपरि मान लेने वाले इस माहौल में सहसा विश्वास करना कठिन है कि देश का सबसे बड़ा स्वयंसेवकों का संगठन मतदाता जागरूकता या समाज में सौमन्स्य आदि की दृष्टि से ही चुनाव के दौरान काम करेगा।यह पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की जिम्मेवारी है कि देखें कि ऐसा होता है या नहीं? ऐसे सभी संगठनों, जो सीधे दलीय चुनावी राजनीति में शामिल नहीं हैं, की यही यथेष्ट भूमिका हो सकती है। मतदान में किसी दल या उम्मीदवार को अवश्य सहयोग करिए लेकिन संगठन के रूप में चुनावी भूमिका नहीं होनी चाहिए। आप मतदाताओं के बीच जाएं, उन्हें मुद्दों के प्रति जागरूक करें, मतदान के लिए प्रेरित करें तथा इस बीच राजनीतिक दलों के परस्पर आक्रामक तीखे बयानों, आरोपों तथा समाज के अंदर मतदान के लिए वैमनस्य फैलाने वालों या तनाव और हिंसा पैदा करने वालों के असर को कम करने की कोशिश करें। संघ स्वयं को अगर समाज में एक संगठन की जगह समाज का संगठन मानता है तो उसके लिए कोई राजनीतिक दल दुश्मन नहीं हो सकता।हां, राजनीतिक दलों की नीतियां उसके विरुद्ध हैं यानी उसके अनुसार देश हित में नहीं हैं, तो तात्कालिक विरोध किया जा सकता है। प्रतिनिधि सभा ऐसी बैठक होती है जिसमें संघ के सभी शीर्ष पदाधिकारी, प्रांत स्तर के पदाधिकारी और 36 आनुषंगिक संगठनों के प्रमुख या प्रतिनिधि उपस्थित होते हैं। इस नाते 1500 वैसे प्रमुख प्रतिनिधियों की एक जगह उपस्थिति, विमर्श और निर्णय अत्यंत महत्त्व के होंगे। इसमें सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का पुनर्निर्वाचन हुआ और वे 2027 तक पद पर रहेंगे। संघ पर निष्पक्षता से अध्ययन करने वाले इसका खंडन करते हैं कि यहां चुनाव होता ही नहीं। चुनाव नियमित होते हैं किंतु ज्यादातर अन्य संगठनों या राजनीतिक दलों की तरह पदों की होड़ न होने के कारण नकारात्मक प्रतिस्पर्धा नहीं होती।प्रतिनिधि सभा से घोषित कार्यक्रमों में अहिल्याबाई होल्कर के जन्म के 300वें वर्ष में मई, 2024 से अप्रैल, 2025 तक जन्म वर्ष मनाया जाना है। कितने राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के महत्त्व का आभास है? कौन राष्ट्रीय संगठन समाज विशेषकर महिलाओं को प्रेरणा देने की दृष्टि से इस तरह का कार्यक्रम आयोजित करेगा? इसके अलावा जो विषय वहां चर्चा में थे उनमें स्वयंसेवकों द्वारा वर्ष में किए गए मुख्य कार्य, श्रीराम मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का राष्ट्रीय जागरण की दृष्टि से प्रभाव, संदेशखालि की भयावह घटना और मणिपुर, पंजाब आदि शामिल थे। अगर होसबोले कहते हैं कि स्वतंत्र भारत में संदेशखालि जैसी घटनाएं झकझोर देने वाली हैं, दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए तथा इसमें सभी दलों को अपने राजनीतिक स्वाथरे को छोड़कर महिला सुरक्षा और समाज के इस विषय पर एक मत से ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए कि भविष्य में ऐसा करने की कोई सोच भी नहीं सके तो इससे कौन असहमत हो सकता है?दुर्भाग्य से राजनीतिक, बौद्धिक एवं आंदोलनात्मक एक्टिविस्टों की दुनिया में इतना तीखा विभाजन है कि यह सोचकर कहीं भाजपा को इसका चुनावी लाभ न मिल जाए अनेक दल, संगठन, बुद्धिजीवी और पत्रकार इसे बड़ा मुद्दा बनाने से बचते हैं। ऐसे लोग संघ पर कोई टिप्पणी करेंगे तो समाज उसे स्वीकार नहीं कर सकता। स्वाभाविक है कि 2025 की विजयदशमी को संघ के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो उसकी चर्चा होगी और उसके अनुसार योजनाएं बनेंगी। हालांकि संघ यही कह रहा है कि उसे जब तक संसार है तब तक काम करते रहना है, उसमें अनेक 100 वर्ष आएंगे तो 100 वर्ष का कोई ऐसा विशेष महत्त्व नहीं है किंतु उसका ध्यान रखते हुए ज्यादा से ज्यादा शाखा और संपर्क विस्तार हो यही लक्ष्य सामने आ रहा है और उसकी पुष्टि प्रतिनिधि सभा में हुई।संघ द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार 2023 की 68,651 शाखाओं के मुकाबले संघ की शाखाओं की संख्या बढ़कर 73,117 पर पहुंच गई। जिन स्थानों पर शाखा लगती हैं, उनकी संख्या 42,613 से बढ़कर 45,600 हो गई। प्रतिनिधि सभा में तय हुआ कि 2025 की विजयादशमी से पूर्ण नगर, पूर्ण मंडल तथा पूर्ण खंडों में दैनिक शाखा तथा साप्ताहिक मिलन का लक्ष्य पूरा होगा। शाखाओं की संख्या एक लाख करने का लक्ष्य है। राममंदिर के उद्घाटन समारोह से पहले अयोध्या से लाए गए पूजित अक्षत को घरों में बांटने के दौरान संघ एवं समवैचारिक संगठनों के 44 लाख 98 हजार कार्यकर्ता 5 लाख 98,778 गांवों तक पहुंचे थे। 19 करोड़ 38 लाख परिवारों तक अक्षत पहुंचाया गया और 22 जनवरी को पांच लाख 60 हजार स्थानों पर 9.85 लाख कार्यक्रम हुए।अन्य अनेक संगठनों की समस्या है कि भारत के जनमानस को न समझने के कारण उचित भूमिका नहीं निभाते या विपरीत चले जाते हैं। दूसरी ओर संघ उसे समझ कर उसके अनुसार भूमिका निभाता है, और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश करता है। आप संदेशखालि को इसलिए महत्त्व नहीं देंगे कि इससे भाजपा को लाभ हो जाएगा तो जनमानस, जो उनकी आवाज उठाएगा, उसके साथ जाएगा।




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