युवा महिलाओं के जीवन की वास्तविक झलक प्रस्तुत करती जि़द्दी गर्ल्स

  • 08-Mar-25 12:00 AM

हरिशंकर व्यासजि़द्दी गर्ल्सÓ कहानी है पांच जेन ज़ी फ्रेशर्स की जो कॉलेज में आते ही गहरी दोस्ती, रोमांस और कैंपस की हवा के साथ साथ जि़ंदगी की ताप से भी गुजऱ रही हैं।ज्. जि़द्दी गर्ल्सÓ सीरीज़ का निर्देशन किया है शोनाली बोस ने, जबकि इसे रंगिता प्रीतिश नंदी और इशिता प्रीतिश नंदी ने क्रिएट किया है। और संकल्प जोशी शामिल हैं।कॉलेज की मस्ती, चुनौतियां और भावनात्मक उतार चढ़ाव को इसमें प्रामाणिक रूप से दर्शाया गया है।कैंपस फि़क्शन अपने आप में कि़स्सागोई के लिए एक बेहद दिलचस्प स्पेस है। चाहे ये कैंपस कॉलेज का हो या किसी यूनिवर्सिटी का, इसे कभी केंद्र तो कभी नेपथ्य में रख कर बहुत सी कहानियां, उपन्यास लिखे गए और फि़ल्में बनती रहीं हैं। इसी शृंखला में अब एक ताज़ातरीन वेब सीरीज़ आई है, जि़द्दी गर्ल्सÓ। फिल्म की कहानी दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय में लड़कियों के लिए मशहूर कॉलेज मिरांडा हाउसÓ के इर्द गिर्द बुनी गई है, जिसका नाम तकनीकी और व्यावहारिक वजहों से मटिल्डा हाउसÓ कर दिया गया है। साथ ही शुक्र है उस भूल चूक लेनी देनीÓ की तख़्ती (डिस्क्लेमर) एडवांस में लगा देने वाले अनिवार्य चलन का, जिसकी वजह से यह सीरीज़ रिलीज़ के पहले उन विवादों में फंसने से बच गई, जो इसे इसके दर्शकों से दूर रख सकते थे।तो चलिए आज के सिने-सोहबतÓ में चर्चा की जाए मटिल्डा हाउसÓ यानी मिरांडा हाउसÓ यानी एमएचÓ से जुड़ी इस कहानी पर बनी जि़द्दी गर्ल्सÓ की।दरअसल, एमएचÓ से मेरा निजी रिश्ता भी रहा है। तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटरÓ (सीएलसी) में पढता था। कऱीब पच्चीस साल हो गए। जि़ंदगी की पहली घोषित गर्लफ्रेंड एमएच में थी और वो भी वहां के हॉस्टल में। ग़ौरतलब है कि ये बताना उतना प्रासंगिक नहीं है कि अब वो मेरी पत्नी हैं लेकिन चूंकि समाज को प्रेम कहानियों का सुखांत देखना अच्छा लगता है इसलिए मैंने इसका जि़क्र भी कर दिया है।तो होता ये था कि हर शाम उनसे मिलने जाता था। तब वहां रहने वाली लड़कियों के लिए विजि़टर्स से मिलने का समय होता था शाम साढ़े चार से साढ़े सात। उसके बाद के वक़्त को कहते थे कर्फ्यू ऑवरÓ। शाम साढ़े सात के बाद हॉस्टल की वो सभी सैकड़ों लड़कियां उस ऊंची गेट और उससे भी ऊंची दीवारों के पीछे ग़ायब। ज़ाहिर है किसी भी संस्थान और वहां के माहौल को सुरक्षित रखने के लिए सिस्टम्स बनाए जाते हैं और समय समय पर उनको बेहतर करने के इंटरनल और एक्सटर्नल संघर्ष चलते रहते हैं।बहरहाल, अनुशासनÓ और अलग अलग किस्म की आज़ादीÓ के बीच का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है लेकिन एमएचÓ की लड़कियों की जो बात मुझे सबसे ज़्यादा चकित करती रही कि वो है वहां के माहौल में देश भर से पढऩे और खुद को गढऩे आई लड़कियों में ऐसा कॉन्फिडेंस आता है कि वो अपनी पसंद की फील्ड में कुछ भी कर गुजऱती हैं और वो भी अपनी शर्तों पर। चाहे वहां के थिएटर ग्रुप्स हों, या डिबेटिंग सोसाइटी या फिर स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव, चुनाव की प्रक्रिया और उनमें इन लड़कियों का बेधड़क भाग लेना, साइंस एक्जीबिशन हो या पोएट्री रेसाइटेशन अपनी पढ़ाई और स्पोर्ट्स के साथ साथ सबमें जूझना इन लड़कियों की जीवन शैली बन जाती है। इस कैंपस में हज़ारों लाखों सपने साकार किए हैं। हर क्षेत्र में लड़कियों ने नाम किए हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी एक्स मिरांडीयन (मिरांडा हाउस की पूर्व छात्रा) थीं।बहरहाल, जि़द्दी गर्ल्सÓ कहानी है पांच जेन ज़ी फ्रेशर्स की जो कॉलेज में आते ही गहरी दोस्ती, रोमांस और कैंपस की हवा के साथ साथ जि़ंदगी की ताप से भी गुजऱ रही हैं। साथ ही वे अपने कॉलेज और वहां के माहौल को बाहरी खतरों से बचाने के लिए संघर्ष करना भी सीखती हैं। जि़द्दी गर्ल्सÓ की कहानी का प्लॉट शिक्षा के निजीकरणÓ की साजि़श को अमली जमा पहनाने की कोशिश और उसके खिलाफ वहां की लड़कियों और कुछ ऐसे शिक्षिकाओं और शिक्षकों के संघर्ष पर टिका है जो उस खुले और प्रगतिशील माहौल को बचाए रखना चाहते हैं। एक तरफ खुले माहौल से हो रही भारतीय संस्कृति के अपमान का कुतर्क औरकॉलेज के खुले माहौल पर अंकुश लगाने की कवायद चल रही होती है तो दूसरी तरफ समानता के अधिकारÓ के तहत सबके लिए कम शुल्क में अच्छी शिक्षा को बरकऱार रखने की कोशिश है।देश भर में जिस तेज़ी से शिक्षा का निजीकरणÓ बढ़ रहा है उससे अमीर और गरीब बच्चों के बीच की खाई और भी चौड़ी होती जा रही है। नितांत आवश्यक है कि सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और अन्य तकनीकी संस्थानों को बेहतर किया जाए ताकि हर तबके से आने वाले विधार्थियों को समान अवसर मिल सके। इस संदर्भ में मुझे छत्तीसगढ़ कैडर के अपने एक आईएएस अधिकारी मित्र अवनीश शरण का नाम इसलिए ध्यान में आ रहा है क्योंकि उन्होंने आईएएस रहते हुए अपनी बेटी की स्कूली शिक्षा के लिए उसका दाखिला शहर के एक सरकारी विद्यालय में करवाया था। लगभग सामंती समाज और उसकी री-पैकेजिंग के तौर पर नौकरशाही की ठसक वाले अपने इस देश के किसी भी छोटे शहर के लिए ये एक बहुत बड़ी घटना थी। उसके बाद अवनीश शरण के कई और साथी अफसरों और जूनियर्स ने भी ऐसा ही किया। फिर सरकारी अधिकारियों को ही राज्य सरकार के उस विद्यालय की स्थिति दुरुस्त करनी पड़ी. जिससे हर वर्ग से आने वाले बच्चों की सहूलियतें बढ़ गई। ज़रुरत है माइक्रो लेवल पर सबको अपना योगदान देने की ताकि अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स ही आखिरी विकल्प न रहें।बढिय़ा है कि जि़द्दी गर्ल्सÓ के माध्यम से समाज में शिक्षा के निजीकरण और उसके इर्द गिर्द भी विचार विमर्श हो कि अपने यहां किस अनुपात में क्या हो या क्या नहीं? जि़द्दी गर्ल्सÓ सीरीज़ का निर्देशन किया है शोनाली बोस ने, जबकि इसे रंगिता प्रीतिश नंदी और इशिता प्रीतिश नंदी ने क्रिएट किया है। प्रमुख भूमिकाओं में सिमरन, नंदिता दास, अनुप्रिया कैरोली, रेवती, अतिया तारा नायक, उमंग भड़ाना, जैन अली, दिया दामिनी, नंदीश सिंह संधूऔर संकल्प जोशी शामिल हैं।कॉलेज की मस्ती, चुनौतियां और भावनात्मक उतार चढ़ाव को इसमें प्रामाणिक रूप से दर्शाया गया है। साथ ही, यह सीरीज दोस्ती, महत्वाकांक्षाओं और निजी संघर्षों के माध्यम से युवा महिलाओं के जीवन की वास्तविक झलक प्रस्तुत करती है। ये कहानी बख़ूबी दिखाती है कि कैसे ये लड़कियां अप्रासंगिकता को चुनाती देकर अपने भविष्य के लिए संघर्ष करती हैं। जि़द्दी गर्ल्सÓ के इस पहले सीजऩ में कुल आठ एपिसोड हैं। अमेजऩ प्राइम वीडियो पर है। देख लीजिएगा।(पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़ के होस्ट हैं।)




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