सुगम्य भारत अभियान : नौ वर्षों की प्रगति की झलक और आगे की राह
- 05-Dec-24 12:00 AM
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अरमान अलीइससे बेहतर संयोग नहीं हो सकता है, जैसे ही हम अति महत्वाकांक्षी सुगम्य भारत अभियान (सुगम्य भारत अभियान) के नौ साल पूरे होने का उत्सव मनाने, विश्लेषण करने और उस पर विचार करने की तैयारी कर रहे हैं, ठीक उसी दरम्यान सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जो इसके उद्देश्य को मजबूत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर को केंद्र सरकार को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 40 के तहत अनिवार्य नियम बनाने का निर्देश दिया। यह निर्देश जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक स्थान और सेवाएं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ हों, भारत की समावेशिता की खोज को नया प्रोत्साहन प्रदान करता है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2015 में उत्साह और दूरदर्शिता के साथ सुगम्य भारत अभियान की शुरुआत की गई। अभियान का उद्देश्य देशभर में दिव्यांगजनों के लिए बाधा रहित और सुखद/अनुकूल वातावरण तैयार करना है। साथ ही परिवहन प्रणालियों और सूचना और संचार पारिस्थितिकी तंत्र में पहुंच सुनिश्चित करना है। यह अपनी तरह का पहला राष्ट्रव्यापी प्रयास था, जिसमें योजनाबद्ध तरीके से टियर 1 शहरों में 50 सबसे महत्वपूर्ण भवनों और टियर 2 शहरों में 25 प्रमुख भवनों को पूर्ण रूप से सुगम्यता के लिए लक्षित किया गया था।मुझे राज्यों के मुख्य सचिवों द्वारा बुलाई गई कई उच्च-स्तरीय बैठकों में भाग लेने की बातें याद हैं। उन बैठकों में विभागों को प्रगति की निगरानी करने और अपने-अपने क्षेत्रों में सुगम्यता उपायों को अपडेट करने का काम सौंपा गया था। इन सत्रों ने सरकार के इरादे की गंभीरता को सुदृढ़ किया और ऐसी परिवर्तनकारी पहल के लिए आवश्यक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। चंडीगढ़ जैसे शहर जो अपनी बेहतर शहरी योजना के लिए जाने जाते हैं और भुवनेश्वर जो अपनी सुलभता पहल के लिए प्रसिद्ध हैं, इस अभियान के प्रेरक उदाहरण के रूप में उभरे कि इस अभियान द्वारा क्या हासिल किया जा सकता है।फिर भी अपने अभूतपूर्व दृष्टिकोण के बावजूद इस अभियान को विशेष रूप से राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सुगम्यता राज्य का विषय है, ऐसे में इसके कारण कार्यान्वयन का अधिकांश बोझ राज्यों पर पड़ता है, जिनमें से कई राज्यों को महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। सीमित जवाबदेही तंत्र और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी ने प्रगति को और बाधित किया। अभियान के महत्वाकांक्षी लक्ष्य कई क्षेत्रों में पूरे नहीं हुए जैसे सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को फिर से तैयार करना और डिजिटल पहुंच को बढ़ावा देना।समय पर सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से इस मिशन में नई तात्कालिकता आ गई। सिफारिशों को कानूनी अधिदेशों में परिवर्तित करके कोर्ट का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि सुगम्य भारत अभियान को गति खोने की अनुमति नहीं दी जा सकती।आगे बढऩे को लेकर व्यक्तिगत दृष्टिकोणअभियान की यात्रा पर विचार करते हुए मेरा मानना है कि सुगम्य भारत 2.0 को स्वच्छ भारत अभियान जैसी सफल पहल के समान एक मिशन-मोड दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के लिए मजबूत हितधारक जुड़ाव, स्पष्ट जवाबदेही तंत्र और प्राप्त करने योग्य समयसीमा महत्वपूर्ण हैं। प्रोत्साहन परिवर्तन के प्रमुख संचालक होंगे। उदाहरण के लिए विश्वविद्यालय एनएएसी मान्यता के लिए सुगम्यता को एक मानदंड बना सकते हैं, जबकि उद्योग, स्थानीय सरकार और सार्वजनिक संस्थानों को सार्वभौमिक डिजाइन सिद्धांतों को अपनाने के लिए पुरस्कृत किया जा सकता है।अभियान का फोकस भौतिक बुनियादी ढांचे से लेकर उत्पादों, सेवाओं और डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र तक होना चाहिए। निजी क्षेत्र में सरकारी प्रयासों को पूरा करने की अपार संभावनाएं हैं। कंपनियां अपने कार्यालयों, उत्पादों और सेवाओं में समावेशी डिजाइन सिद्धांतों को अपना सकती हैं, जबकि दिव्यांग लोगों के संगठन (डीपीओ) के साथ साझेदारी दिव्यांग लोगों की जरूरतों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि या जानकारी प्रदान कर सकती है। सुगम्यता को सामाजिक प्रतिबद्धता और व्यावसायिक रणनीति दोनों के रूप में पहचानना परिवर्तनकारी होगा।चिंतन से कार्रवाई तकनौ वर्षों के सुगम्य भारत अभियान ने एक मजबूत नींव रखी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आकांक्षा से कार्रवाई की ओर बढऩे का एक स्पष्ट आह्वान है, जिससे सुगम्यता को राष्ट्रीय प्राथमिकता दी गई है। सफलता के लिए हमें हर स्तर पर सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। इसके िलए केंद्र और राज्य सरकारों को श्रेणीबद्ध तरीके से रणनीति बनानी चाहिए, नागरिक समाज संगठनों को इसे बढ़ावा देना चाहिए, निजी क्षेत्र को नवाचार करना चाहिए और सुगम्यता में निवेश करना चाहिए। साथ ही मीडिया को इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने पिछले कुछ वर्षों में सुगम्य भारत अभियान को विकसित होते देखा है, मैं इसकी क्षमता के प्रति काफी आशान्वित हूं। कार्यान्वयन, हितधारक गठबंधन और सतत प्रगति पर अधिक ध्यान देने के साथ सुगम्य भारत 2.0 एक समावेशी राष्ट्र के निर्माण के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक बन सकता है। एक ऐसे भारत का सपना जहां सुगम्यता केवल एक आदर्श नहीं है बल्कि सभी के लिए एक वास्तविकता है - अगर हम दृढ़ संकल्प और उद्देश्य के साथ इस क्षण का लाभ उठाते हैं।लेखक कार्यकारी निदेशक (एनसीपीईडीपी) नई दिल्ली हैं
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