सोता रहा रेलवे, रोती रही आस्था

  • 20-Feb-25 12:00 AM

नितिनमोहन शर्मानईदिल्ल स्टेशन पर बढ़ती बेतहाशा भीड़ का सीसीटीवी पर रेलवे के मौके पर मौजूद अफसरों को नजऱ नही आ रही थी? दिल्ली हादसे पर इंदौर के अखबार ख़ुलासा फर्स्ट द्वारा उठाया ये सवाल हादसे की जांच का मुख्य बिंदु बन गया हैं। ऐसे ही आज भी एक सवाल सबसे मोजू है कि 13 जनवरी यानी कुंभ के आगाज़ के साथ ही रेल के सफऱ के बुरे हाल मोदी सरकार के रेल मंत्रालय को नजऱ नही आ रहें थे? रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव स्टेशनों व प्लेटफॉर्म पर पसरी अराजकता से अंजान थे? डिब्बों में तोडफ़ोड़ करने के समाचार व दृश्य से मंत्री महोदय बेख़बर क्यो बने रहें? महिनों पहले महंगे टिकट रिजर्वेशन कर कुंभ नगरी जाने वाले लाखों लोगों के बुरे हाल पर भी भारत सरकार का रेल मंत्रालय क्यो चेन की नींद सोता रहा? अब अगर विपक्ष रेल मंत्री का इस्तीफा मांग रहा है तो वह राजनीति का विषय कैसे हो गया? ये तो शुद्ध आस्था का विषय है कि रेलवे मंत्रालय, रेल मंत्री सोते रहे और आस्था रोती रही। दबती रही, कुचलती रही, दम तोड़ती रही। आस्थावान सरकार, आस्था के प्रति इस बेफि़क्री पर मंत्री को दंड देगी? या मंत्री महोदय के मानस में व्याप्त नैतिकता उन्हें झकझोरेगी? जिन्होंने रेल मंत्रालय की परिधि में अपनों को खोया, वे ही नही...देश की इस पर नजरें हैं। महाकुंभ तक आने जाने के लिए रेल से सफऱ के जो नज़ारे देश-दुनिया देख रही थी, वो क्या रेल मंत्रालय को नजऱ नही आ रही थी? कांच फोड़ते, खिड़की तोड़ते, इंजिन में घुसते, डिब्बों में दबते, स्टेशनों पर कुचलते लोग क्या रेलवे के अफ़सरों को नही दिख रहें थे? जब से कुंभ का शुभारंभ हुआ, रेल के सफऱ के बुरे हाल दृश्य श्रव्य माध्यमों पर सरेआम दिखाए जा रहें थे, बावजूद इसके रेलवे के जिम्मेदार सोते रहे और निर्दोष आस्था रोने बिलखने को मजबूर होती रहीं। आखिऱ रेलवे मंत्रालय की जवाबदेही क्यो तय नही होती? जिम्मेदार अफ़सर अब तक दंड के दायरे से क्यो बाहर हैं? जो व्यवस्था दिल्ली में हादसे के दूसरे दिन यानी रविवार को हुई, वह शनिवार को क्यो नही हो पाई? इसका जवाब हैं क्या किसी के पास? क्या केवल स्पेशल ट्रेन चला भर देने से रेलवे की इतने बड़े आस्था के उत्सव के लिए काफ़ी था? रेल वाले स्पेशल ट्रेनों के आंकड़े गिना रहें हैं लेकिऩ इन स्पेशल ट्रेनों में सफऱ कैसे हो रहा हैं, इस पर किसी का ध्यान क्यो नही गया? 13 जनवरी से रेल के सफर के बुरे हाल सब तरफ़ चर्चा में थे। बावजूद इसके रेल मंत्रालय क्या करता रहा? ये सवाल विपक्ष का ही नही, जन जन का हैं। जवाब देना ही पड़ेगा। अन्यथा ये माना जायेगा कि रेल मंत्रालय ने ही आस्था से अभिभूत जनसामान्य को मरने के लिए छोड़ा था।रिज़र्वेशन क्लास के डिब्बो में जिस तरह से अराजकता पसर रही थी, वह वक्त रहते क्यो नही थामी गई? लोगों में एसी कोच तक को नही बख़्शा। उसके हाल भी जनरल डिब्बे से बदतर कर दिये। दरवाज़ों को ल मार कर तोड़ा जा रहा था। एसी कोच के कांच फोड़े जा रहें थे। एक डिब्बे में एक हज़ार यात्रियों के घुसने, दबने के नज़ारे क्या सिफऱ् देश ही देख रहा था? मोदी सरकार का रेल मंत्रालय इस सबसे बेख़बर था? अगर नही था तो फिऱ ये सीधे जिम्मेदारी रेल मंत्री महोदय की नही बनती क्या? प्रयागराज आने जाने वाले तमाम रेलवे स्टेशनों पर एक जैसे हालत थे। फिऱ चाहे वह सतना हो या पटना या फिऱ दिल्ली हो या भोपाल। हज़ारों की भीड़ हर स्टेशनों पर पहुँच रही थी लेकिऩ वह भगवान भरोसे क्यो छोड़ दी गई? आम आदमी का प्रयागराज सफऱ तो रेलवे के जरिये ही पूरा होना था। उसके पास कहा कार व अन्य चार पहिया वाहन हैं। वह तो बाल बच्चो सँग रेलवे स्टेशन की तरफ ही बढ़ेगी। आखिऱ रेल ही तो आस्था के इस रेले का कुंभ नगरी जाने का एकमात्र जरिया थी। बावजूद इसके भारत सरकार का रेल मंत्रालय क्या करता रहा? सिफऱ् स्पेशल ट्रेन चला देने या रेल के फेरे बढ़ा देने तक ही उसकी जवाबदारी थी?हादसे के बाद के बंदोबस्त पहले से लागू क्यों नही हुए? रेल मंत्रालय की स्टेशन के अंदर, बाहर व डिब्बों के अंदर बाहर के हालात पर कोई तेयारी क्यो नही थी? कुंभ नगरी तक न पहुँचने का स्टेशनों पर पसरते ग़ुस्से पर भी वह आंखें मूंदे क्यो बैठा रहा? सिफऱ् जीआरपी के ज़रिए हज़ारों लाखों लोगों को संभालने तक ही रेलवे क्यो सीमित रहा? स्थानीय पुलिस महक़मा रेलवे का सहयोगी क्यो नही बनाया गया? जैसा दिल्ली में शनिवार को हुए मौत के तांडव के बाद रविवार को स्थानीय पुलिस की मदद ली गई, वैसा कुंभ की शुरुआत से ही क्यो नही किया गया? प्रयाग जंक्शन जैसी व्यवस्था रेलवे ने हर स्टेशन पर क्यो नही की? प्रयागराज में योगी सरकार ने पहले ही दिन से स्थानीय पुलिस को भी रेलवे स्टेशनों की जवाबदारी दी। स्टेशन के अंदर बेतहाशा भीड़ नही बढऩे देने व प्लेटफॉर्म पर कतारबद्ध लोगो को जाने देने का काम योगी सरकार ने किया। नतीज़े में जहाँ करोडों पहुँचे, वहां एक भी हादसा रेलवे स्टेशन पर नही हुआ। जबकि जो दिल्ली में हुआ, वह हूबहू 2013 कुंभ में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुआ था। प्रयाग जंक्शन की व्यवस्था रेलवे मंत्रालय ने हर स्टेशन पर क्यो नही की? क्यो नही उसने हर उस स्टेशनों पर पुलिस मदद की जरूरत महसूस नही हुई, जहाँ बोगियों में घुसने की मारामारी चंल रही थी?स्थानीय पुलिस, अफ़सरों को रेलवे के न्यौते का इंतज़ार या घटना का? दिल्ली हादसे के बाद भी हालातों से रेलवे कुछ नही सीखा। सीखता होता तो रविवार को इंदौर, भोपाल, रीवा, सतना, इटारसी में वैसे ही हालात क्यो बनते? अब भी रीवा, जबलपुर, सतना रुट पर स्टेशन व प्लेटफॉर्म पर हालात जस के तस बने हुए हैं। वही मुठीभर जीआरपी का अमला और हज़ारों हज़ार मुसाफिर। शायद रेलवे को इन स्टेशनों पर भी किसी हादसे का इंतज़ार हैं। इंतज़ार में तो स्थानीय पुलिस भी वैसे ही है, जैसे दिल्ली की थी। जिस तरह दिल्ली पुलिस कमिश्नर घटना के बाद स्टेशन पर बंदोबस्त के लिए पहुचे, वैसे ही स्थानीय अफ़सर शायद किसी घटना का इंतज़ार कर रहें हैं या रेलवे के न्यौते-मनुहार का? है न?




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