सोशल मीडिया पर बाबाओं का विवाद

  • 09-Jul-24 12:00 AM

विनीत नारायणजब से सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से व्यापक हुआ है, तब से समाज का हर वर्ग यहां तक कि गृहणियां भी 24 घंटे सोशल मीडिया पर हर समय छाए रहते हैं। इसके दुष्परिणामों पर काफी ज्ञान उपलब्ध है।सलाह दी जाती है कि यदि आपको अपने परिवार या मित्रों से संबंध बनाए रखना है, अपना बौद्धिक विकास करना है और स्वस्थ और शांत जीवन जीना है तो आप सोशल मीडिया से दूर रहें या इसका प्रयोग सीमित मात्रा में करें। पर विडंबना देखिए कि समाज को संयत और सुखी जीवन जीने का और माया मोह से दूर रहने का दिन-रात उपदेश देने वाले संत और भागवताचार्य आजकल स्वयं ही सोशल मीडिया के जंजाल में कूद पड़े हैं। विशेषकर ब्रज में ये प्रवृत्ति तेजी से फैलती जा रही है।पिछले ही दिनों वृंदावन के विरक्त संत प्रेमानंद महाराज और प्रदीप मिश्रा के बीच सोशल मीडिया पर श्री राधा तत्व को लेकर भयंकर विवाद चला। ऐसे ही पिछले दिनों वृंदावन में नवस्थापित भगवताचार्य अनिरुद्धाचार्य के वक्तव्य भी विवादों में रहे। इसी बीच बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा द्वारा लीला के मंचन में राधा स्वरूप धारण कर बालाकृष्ण से पैर दबवाने पर विवाद हुआ। ये सब ब्रज की विभूतियां हैं। हर एक के चाहने वाले भक्त लाखों-करोड़ों की संख्या में हैं। जैसे ही कोई विवाद पैदा होता है, इनका चेला समुदाय भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय हो जाता है। ठीक वैसे ही राजनैतिक दलों की ट्रोल आर्मी, जो बात का बतंगड़ बनाने में मशहूर है, सक्रिय हो जाती है। यह सब सोशल मीडिया में अपनी पहचान बनाने का एक तरीका बन गया है।अब प्रेमानंद जी वाले विवाद को ही लीजिए, कितने ही कम मशहूर भागवताचार्य भी इस विवाद में कूद पड़े जिनके फॉलोवर्स चार-पांच सौ ही थे पर जैसे ही वे इस विवाद में कूदे तो उनकी संख्या 20 हजार पार कर गई यानी बयानबाजी भी फायदे का सौदा है।परंपरा से शास्त्र ज्ञान का आदान-प्रदान गुरुओं द्वारा निर्जन स्थलों पर किया जाता था जहां जिज्ञासु अपने प्रश्न लेकर जाता था और गुरु की सेवा कर ज्ञान प्राप्त करता था। यही पद्धति भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को बताई थी। भगवद् गीता के चौथे अध्याय का चौंतीसवां श्लोक इसी बात को स्पष्ट करता है। तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।।4.34।।Ó परंतु सोशल मीडिया ने आकर ऐसी सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। अब धर्मगुरु चाहें न चाहें पर उनके शिष्य, उनके प्रवचनों का सोशल मीडिया पर प्रसारण करने को बेताब रहते हैं और फिर अलग-अलग गुरु ओं के शिष्य समूहों में आपसी प्रतिद्वंद्विता चलती है कि किस गुरु के कितने चेले या श्रोता हैं। जिस संत के फॉलोवर्स की संख्या लाखों में होती है उन पर टिप्पणी करना या उन्हें विवाद में घसीटना लाभ का सौदा माना जाता है क्योंकि वैसे तो ऐसा विवाद खड़ा करने वालों की कोई फॉलोइंग होती नहीं है। पर इस तरह उन्हें बहुत बड़ी तादाद में फॉलोवर और लोकप्रियता मिल जाती है।मतलब यह कि आप में योग्यता है कि नहीं, पात्रता है कि नहीं, आपको उस विषय का ज्ञान है कि नहीं, इसका कोई संकोच नहीं किया जाता। केवल सस्ती लोकप्रियता पाने के लालच में बड़े बड़े संतों के साथ नाहक विवाद खड़ा किया जाता है। आजकल ऐसे विवादों की भरमार हो गई है। वैसे तो तकनीकी के हमले को कोई चाह कर भी नहीं रोक सकता। पर कभी-कभी इंसान को लगता है कि उसने भयंकर भूल कर दी। 2003 की बात है जब मैंने बरसाना (मथुरा) के विरक्त संत श्री रमेश बाबा के प्रवचन नियमित रूप से हर सप्ताह बरसाना जा कर सुनना शुरू किया, बाबा की भक्ति और सरलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मुझे लगा कि बाबा के प्रवचन पूरी दुनिया के कृष्ण भक्तों तक पहुंचने चाहिए।तब ऐसा होना टीवी चैनल के माध्यम से ही संभव था क्योंकि तब तक सोशल मीडिया इतना लोकप्रिय नहीं हुआ था। मैंने इसके लिए प्रयास करके श्री मान मंदिर में टीवी रिकॉर्डिंग स्टूडियो की स्थापना कर दी। उस दौर में मान मंदिर के विरक्त साधुओं ने मेरा कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि बाबा की बात अगर इस तरह प्रसारित की जाएगी तो बरसाना में कलियुग का प्रवेश कोई रोक नहीं पाएगा पर बाबा ने मुझे अनुमति दी तो काम शुरू हो गया। इसका लाभ मान मंदिर को यह हुआ कि उसके भक्तों की संख्या में देश-विदेश में तेजी से बढ़ोतरी हुई और वहां धन की वष्रा होने लगी। तब मुझे विरोध करने वाले अव्यावहारिक प्रतीत होते थे।पर आज जब मैं पलट कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि वाकई इस प्रयोग ने मान मंदिर के पवित्र, शांत और निर्मल वातावरण को बहुत सारे झमेलों में फंसा दिया। वहां टीवी का प्रवेश न हुआ होता तो वहां का अनुभव पारलौकिक होता था जिसे अनुभव करने नीतीश कुमार, अर्जुन सिंह, सुषमा स्वराज, लालू यादव, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश तक उस दौर में वहां गए और गद्गद् हो कर लौटे।हमने बात शुरू की थी सोशल मीडिया पर बाबाओं के संग्राम से और बात पहुंच गई अध्यात्म की एकांतिक अनुभूति से शुरू होकर उसके व्यावसायीकरण तक। इस आधुनिक तकनीकी ने जहां श्री राधा कृष्ण की भक्ति का और ब्रज की संस्कृति का दुनिया के कोने-कोने में प्रचार किया वहीं इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, बरसाना, मथुरा आदि अपना सदियों से संचित आध्यात्मिक वैभव और नैसर्गिक सौंदर्य तेजी से समेटते जा रहे हैं। हर ओर बाजार शक्तियों ने हमला बोल दिया है।कहते हैं कि विज्ञान अगर हमारा सेवक बना रहे तो उससे बहुत लाभ होता है पर अगर वो हमारा स्वामी बन जाए तो उसके घातक परिणाम होते हैं। एक ब्रजवासी होने के नाते और संतों के प्रति श्रद्धा होने के नाते मेरा देश भर के संतों से विनम्र निवेदन है कि सोशल मीडिया के संग्राम से बचें और अपने अनुयायियों को होड़ में आगे आकर अपना बढ़ा-चढ़ा कर प्रचार करने से रोकें जिससे वे अपना ध्यान भजन साधन के अलावा तीर्थस्थलों के सौंदर्यीकरण और रखरखाव में लगा सकें ताकि तीर्थयात्रियों को ब्रज जैसे तीथरे में जाने पर सांस्कृतिक आघात न लगे, जो आज उन्हें लगने लगा है।




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