(कसमार)झारखंड के एक बड़े भू- भाग पर हुए वन पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन के नायक बने- जगदीश महतो
- 27-Dec-23 12:00 AM
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निर्मल महाराज कसमार 27 दिसंबर (आरएनएस)। झारखंड के एक बड़े भू- भाग पर हुए वन पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन के नायक बने है कसमार के हिसीम निवासी जगदीश महतो। आंदोलन के दौरान इन्होंने कई कड़े संघर्षों का सामना किया। इस आंदोलन को जिंदा रखने के लिए इन्होंने अपना सबकुछ बेच दिया। खेत-मवेशी यहां तक की अपनी पत्नी के गहने भी। यही नही इस आंदोलन के विरोधियों ने इनपर इतना जुल्म किया कि उन्होंने इन्हें अपना मूत्र तक पीने को भी मजबूर किया। वन तस्करों ने कई बार इनपर जानलेवा हमला भी किया। परन्तु इन्होंने कभी हिम्मत नही हारी। सभी मुश्किलों और बाधाओं से लड़ते हुए अपने मिशन को आगे बढ़ाते रहे।कुल्हाड़ी के विरोध ने जगदीश को बनाया नायकजगदीश महतो का करवा धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और कुछ ही दिनों में इनका जंगल बचाओ आंदोलन पूरे उत्तरी छोटानागपुर में फैल गया। इस दौरान इन्होंने करीब साढ़े चार सौ गांव मे ग्राम स्तरीय वन सुरक्षा समितियों का गठन कर सबको इस आंदोलन से जोड़ दिया। हज़ारों महिला-पुरुष जंगल को बचाने का संकल्प ले डटकर इनके साथ खड़े हो गए।1984 में वन सुरक्षा आंदोलन की शुरुआतहिसीम के केदला पहाड़ पर वन सुरक्षा आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1984 में हुई। इस पहाड़ पर मुख्य रूप से चार गांव बसे हुए है, जहां काफी बड़ा इलाका वन क्षेत्र है। लेकिन धीरे- धीरे वन तस्करों के कारण इस क्षेत्र में जंगल कटने लगे। जब एक बार कुल्हाड़ी चलने की शुरुआत हुई तो फिर थमने का नाम ही नही लिया। कुछ स्थानीय ग्रामीणों के वन माफियाओं के साथ मिले होने के कारण यहां के जंगल पूरी तरह उजड़ चुके थे।ग्रामीण कुल्हाड़ी के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हुएजंगल को कटते देख ग्रामीणों ने बैठक कर यह निर्णय लिया कि अगर पेड़ों की कटाई को रोकी नही गई, तो ग्रामीण पर्यावरण के गम्भीर संकट झेलने को मजबूर होंगे। फिर सभी ग्रामीण जंगलों में चल रहे कुल्हाड़ी के खिलाफ एकजुट हो खड़े हो गए। ग्रामीणों की पहली बैठक हिसीम गांव के मध्य विद्यालय परिसर में अक्टूबर 1984 में हुई थी। बैठक में कुल्हाडी आंदोलन के लिए एक समिति का गठन किया गया। हर हाल में वनों की सुरक्षा का निर्णय लिया गया। उस वक्त समिति के अध्यक्ष बनाये गए थे विष्णुचरण महतो, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने आंदोलन की बागडोर जगदीश महतो को सौंप दी लेकिन आंदोलन से जुड़े रहे।जगदीश महतो के प्रयास से आंदोलन का विस्तारजगदीश महतो के हाथों में आंदोलन की बागडोर आते ही जंगल बचाओ अभियान ने ऐसी गति पकड़ी कि आसपास के कई गावों के ग्रामीण इस आंदोलन के साथ जुड़ गए। आंदोलन का विस्तार होता चला गया। ग्रामीणों के जुड़ते-जुड़ते गांवों की संख्या 450 पार कर गई।अब भी जिन्दा है कुल्हाड़ी आंदोलनआज भी कुल्हाडी आंदोलन जि़ंदा है। जगदीश महतो पिछले तीन दशक से वन सुरक्षा आंदोलन के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी संभाल रखी है। इसी आंदोलन का असर है कि आज हिसीम केदला और उसके आसपास के गांव में हरियाली लौटी आई है। पूरा इलाका अब जंगलों से भरा पड़ा है।
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