(कोलकाता)डिजिटलकरण की हवा से रोजी रोटी तो दूर ढाकियों के अस्तित्व पर भी छाया संकट
- 26-Sep-25 12:00 AM
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बंगाल की परम्परा अब चली अन्य राज्यों की ओरजयदीप यादवकोलकाता 26 सितंबर (आरएनएस)। दुर्गोत्सव का श्रीगणेश हो चुका है और महानगर कोलकाता सहित पूरा बंगाल उत्सव के रंग में रंगने को तैयार है। लेकिन दुर्गा पूजा के अभिन्न अंग ढाक की परंपरा अब विभिन्न कारणों से अस्ताचल की ओर है। सबसे पहले महंगाई और उपर से ढाक का डिजिटलकरण होनाढाक और ढाकियों की रोजी रोटी की बात तो दूर इनके अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। महानगर कोलकाता के सियालदह स्टेशन और कालीघाट मंदिर इलाके में ढाकियों का जमघट देखा जा सकता है। रह रह कर उक्त इलाके ढाक के आवाज से गूंज रहे। दृश्य यह रहा कि यहा मौजूद आमलोग ढाका का आनंद लेते देखें गए। वहीं दुर्गा पूजा कमेटियों के लोग ढाकियों से मोलभाव करते दिखें। ढाकी ढाक का प्रदर्शन कर रहे थे ताकि पूजा आयोजक उन्हें दुर्गा मंडपों में लेकर चले। मोलभाव के बाद ढाकी पूजा कमेटी के लोगों के साथ पूजा मंडपों की ओर रवाना हो रहें थे तो उनके चेहरों पर मुस्कान देखी जा रही थी। वहीं ऐसे भी तमाम ढाकी दिखें जो उदास चेहरे से दुर्गा पूजा कमेटियों के लोगों का इंतजार कर रहे थे कि कोई उन्हें भी दुर्गा मंडप में ले जाए ताकि उन्हें रोजगार मिल सके। कई पूजा कमेटियों की माने तो इसबार उललोगों का बजट फेल हो रहा है। इनके आरोपों की माने तो ढाकियों के अपनी मजदूरी में तीन गुना इजाफा कर दिया है। गया है। डायमण्ड हार्बर, सुंदरबन, काकद्वीप, बद्र्धमान, मुर्शिदाबाद, बांकुड़ा, माल्दा, पुरुलिया आदि सुदूर बंगाल के क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में जुटे ढाकिए यहां इस बात के इंतजार कर रहें रहें थे कि पता नहीं उनकी बुकिंग कब होगी। ढाक बजाने वाले कलाकार विजय ढाकी दास, संतोष कालिंदी, भीम कालिंदी ने बताया कि वे लोग करीब 20 से 25 वर्षों से ढाक बजा रहे हैं। लेकिन बीते पांच सालों से उनलोगों के बाजार पर डिजिटलकरण की जो गाज गिरी है वह दर्दनाक है। राज्य सरकार को ढाक कला को बचाने के लिए पहल करना चाहिए वरना यह कला कहीं विलुप्त नहीं हो जाए। बांकुड़ा के छातना गांव में लगभग 80 से 90 ढाकी परिवार रहते हैं। हर परिवार के सदस्य साल भर विभिन्न आयोजनों में ढाक बजाते हैं। उनलोगों का परिवार अपने ढाक पर ही जीता है। लेकिन हालात तो यह है कि, उक्त गांव से 20 से 22 ढाकी वादकों का एक समूह हर साल दूसरे राज्यों में ढाक बजाने जाता है। क्योंकि बंगाल में मांग तो है, लेकिन पूजा कमेटिया पर्याप्त पैसा नहीं देना चाहती है।बहरहाल जो भी हो ढाकियों ने बताया कि, बंगाल और असम से ढाक की यात्रा शुरु हुई। खासकर इसका जन्म पूर्वी बंगाल में हुआ। उसके बाद, ढाक धीरे-धीरे विभाजित भारत के त्योहारों का एक प्रमुख हिस्सा बन गया। धार्मिक मत है कि, बुराई के विनाश के दौरान ढाक, शंख, घंटी आदि बजाकर सकरात्मक ऊर्जा का संचार किया जाता था। दुर्गा पूजा, काली पूजा, जगद्धात्री पूजा, बसंती पूजा, सरस्वती पूजा, विश्वकर्मा पूजा में ढाक की ध्वनि एक अलग माहौल बनता है।
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