(बोकारो) बड़े काम की चीज हैं ये हरे-भरे जौ, नवरात्रि के बाद आप भी इन्हें नदी में बहा देते हैं, तो इस बार न करें ये भूल, ये हैं फायदे

  • 22-Oct-23 12:00 AM

निर्मल महाराज बोकारो 22 अक्टूबर (आरएनएस)। नवरात्र में जौ बोने और नौ दिन बाद उन्हें विसर्जित करने की प्रथा देवी उपासना के साथ-साथ मनुष्य के प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक भी मानी जाती है. नवरात्रि के दौरान जौ बोए जाते हैं, जो नौ दिनों में हरे-भरे हो जाते हैं. ज्?यादातर लोग नवरात्रि के बाद इन्?हें जल में प्रवाहित कर देते हैं. आप भी ऐसा करते हैं तो इस बार ये गलती न करें.नवरात्र के भी तीन चरण है , नवपत्रिका, जयश्री और विग्रह /मूर्ति/ सन्निधि, यह जो? जौ/ जयन्ती ( बार्ली ) है. इसकी आयुर्वेद में बड़ी महता है, इसे फेंके नहीं, इसकी जड़ सहित बालू, मिट्टी से दशमी को उखाड़कर और पानी मे धो दें , फिर सुखाकर ड्राई करें फिर पाउडर बना लें और दो चम्मच सुबह शाम खाएं, ये बार्ली पाउडर 2000/ किलो बाजार में बिकता है.क्या है जयन्ती जयन्ती जौ का वह रुप है जो नौ दिनों में अंकुरित होकर बीज और पौधे का रूप लेता है, इसे नव रात्रि में बालू -मिट्टी में कलश के नीचे रखा जाता है. इसे नवरात्र के पहले दिन साफ़ कर धोकर बालू में मिलाते हैं फिर इसे बालू के बीच में गड्ढा कर कलश रखा जाता है. विधान तो तांबा या पीतल रखने का है पर मिट्टी का कलश भी रखा जाता है. रोज इसमें गंगा जल, पंचामृत ,सर्वोसधी ,महोसधी का जल डाला जाता है और इसमें दुर्गा देवी की पूजा की जाती है. इसी आदिशक्ति की जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया है, इसके महाविस्फोट के साथ ही नव दुर्गा शक्ति की आराधना, प्रकृति के पांच तत्वों के प्रतीक पंचदेव की अराधना की जाती है और दुर्गा सप्तशती के पाठ से उच्चरित ध्वनि, घण्टा की ध्वनि इस जौ ( बार्ली ) के नव अंकुरित पौधों में प्रवाहित होती है.ऊर्जा का होता है संचार इसमें इतनी ऊर्जा होती है, कि इसे दशमी के दिन दाहिने कान पर रखने से ही यजमान का कल्याण होता है, तो वहीँ इसके सेवन से ऊर्जा शरीर में जाती है. इसमें कई विटामिन, खनिज हैं जिस कारण आदिकाल से पूर्वज इस जयन्ती इस जयन्ती को सालों भर संजोकर रखते थे और स्वास्थ्य संबंधी लाभ के लिए चूर्ण के रुप में इसका पान करते थे , परन्तु अज्ञानता में हम नदी में बहा रहे हैं, और पर्यावरण का नुकसान कर रहे हैं. इन रोगों के निवारण में है कारगर नेचुरोपैथी विशेषज्ञों की मानें तो जवारे का चूर्ण किसी वरदान से कम नहीं होता. इसका रस एनीमिया के रोगियों के लिए बहुत ज्?यादा फायदेमंद होता है. यह डायबिटीज के मरीजों का शुगर लेवल कम करता है. इसके अलावा गैस, एसिडिटी और पाचन तंत्र से जुड़ी तमाम समस्याओं का निवारण भी करता है. इसके रस को कैंसर से बचाव करने में भी मददगार माना गया है. इसमें तमाम ऐसे गुण होते हैं जो कैंसर की कोशिकाओं को पनपने से रोकते हैं .इतना ही नहीं स्किन डिजीज, आँखों की रोशनी, बालों की समस्या के निवारण में भी यह काफी कारगर साबित होता है. आयुर्वेदाचार्य से लें राय इसके सेवन के क्या फायदे हैं. इसे कब और कैसे खाएं, और किस रोग में इसका इस्तेमाल करना है आदि की जानकारी आयुर्वेदाचार्य से ले लेनी चाहिए.




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