(भोपाल) प्रदेश केनेताओं में तालमेल का अभाव, मौजूदा चुनाव में कुछ भी ठीक से मैनेज नहीं कर पा रही पीसीसी

  • 01-May-24 12:00 AM

भोपाल,01 मई (आरएनएस)। इंदौर के हाई वोल्टेज ड्रामे से जाहिर हुआ कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी पूरी तरह से अराजकता की चपेट में है। प्रदेश के नेताओं के बीच आपसी तालमेल का अभाव है, जबरदस्त अंदरुनी खींचतान है और राजनीतिक पबंधन नाम की कोई चीज दिखाई नहीं दे रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी खुद छात्र नेता की तरह व्यवहार करते नजर आ रहे हैं। ऐसा लगता है जीतू पटवारी प्रदेश कांग्रेस नहीं बल्कि किसी सुदूर जिले के जिला कांग्रेस अध्यक्ष हों। कांग्रेस में मची भगदड़ को संभालने में जीतू पटवारी, भंवर जितेंद्र सिंह और उमंग सिंघार की तिकड़ी पूरी तरह से विफल है। कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने जिस तरह से कल नामांकन वापसी की अंकित तिथि पर खुद को हटाया उससे कांग्रेस की संभावनाओं पर विपरीत असर पड़ा है। प्रदेश में सात में और 13 मई को दो चरणों में मतदान होना है। इन दो चरणों में 17 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। जाहिर है जीतू पटवारी को आज भिंड आ रहे राहुल गांधी को जवाब देना भी मुश्किल पड़ जाएगा। जीतू पटवारी हमेशा जरूरत से ज्यादा तेज चाल से राजनीति करने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से उन्हें बार-बार ठोकर भी लगती है लेकिन उनकी जरूरत से ज्यादा चतुराई करने की आदत जा नहीं रही है। जीतू पटवारी किसी भी हालत में खुद प्रत्याशी नहीं बनना चाहते थे। जबकि इंदौर शहर कांग्रेस से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक यह मांग की गई थी कि खुद जीतू पटवारी इंदौर से चुनाव लड़ें। अपने सिर पर आई बला को टालने के लिए उन्होंने अक्षय कांति बम को मनाया। इसके पीछे दलील यह दी गई कि अक्षय कांति बम जैन समाज से आते हैं। शिक्षण संस्थाओं के संचालन के कारण उनका इंदौर के हजारों छात्रों से परिचय है तथा आर्थिक खर्च वहन करने में वो सक्षम हैं। जबकि जीतू पटवारी और भंवर जितेंद्र सिंह चाहते तेा बदनावर की सभा में आए राहुल गांधी के जरिए वे बदनावर के विधायक भंवर सिंह शेखावत को कांग्रेस के सबसे अच्छे कैंडिडेट साबित होते लेकिन जीतू पटवारी भंवर सिंह शेखावत को इंदौर में सक्रिय नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शेखावत को राजी करने की गंभीर कोशिश नहीं की। जाहिर है जीतू पटवारी को उनकी जगह अति चतुराई या चालाकी भी भारी पड़ी है। चुनाव के बाद उनके लिए राजनीतिक परिस्थितियां और कठिन होती जाएंगी। यदि कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा तो जीतू पटवारी का प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम करना मुश्किल हो जाएगा। या तो उन्हें खुद हटना पड़ेगा या फिर राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष उनका विकल्प ढूंढना होगा। प्रदेश कांग्रेस में अभी स्थिति यह है कि जीतू पटवारी के अलावा अन्य कोई बड़ा नेता चुनाव अभियान में सक्रिय नहीं है। अरुण यादव, अजय सिंह, डॉ: गोविंद सिंह, विवेक तन्खा, बाला बच्चन जैसे नेता बयान बाजी औपचारिकता निभा रहे हैं। उमंग सिंघार और जीतू पटवारी के बीच अनबन लगातार जारी है। दिग्विजय सिंह और कांतिलाल भूरिया अपने चुनाव में उलझ गए हैं। कमलनाथ छिंदवाड़ा के चुनाव के बाद दिल्ली चले गए हैं, क्योंकि खुद जीतू पटवारी नहीं चाहते कि कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहें। जाहिर है प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। अनिल पुरोहित




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