(भोपाल) प्रिंस चार्मिंग सीएम जिन्होंने संजय गांधी को भाव नहीं दिए

  • 05-Oct-23 12:00 AM

भोपाल,05 अक्टूबर (आरएनएस)। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के प्रिंस चार्मिंग के नाम से मशहूर थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनयरिंग और नागपुर यूनिवर्सिटी से कानून पड़ा। स्वभाव ऐसा अक्खड़ कि पार्टी में तब के ताकतवर व्यक्त् िसंजय गांधी तक को भाव नहीं देते थे। ऐसे चंद नेता ही थे मगर वे उनमें से एक थे। हम बात कर रहे हैं प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहेश्यामाचरण शुक्ल की। शुक्ल ने कभी किसी के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया और यही कारण है कि वे कभी गांधी परिवार के विश्वासपात्र नहीं बन सके। श्यामाचरण शुक्ला दिसम्बर, 1975 में दूसरी बार एमपी के मुख्यमंत्री बने, तब इमरजेंसी लागू हो चुकी थी। पूरे शासन तंत्र मेंसंजय गांधी की तूली बोलती थी। 20 सूत्रीय और पांच सूत्रीय कार्यक्रमों के चलते संजय गांधी का प्रभाव लगतार बढ़ रहा था, लेकिन शुक्ल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अलावा किसी की नहीं सुनते थे। उस दौरान कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपने राज्यों में संजय की यात्रा के लिए पालक-पांवड़े बिछाए रहते थे, लेकिन शुक्ल उनसे अलग थे। वे संजय के लेने तक नहीं जाते थे जबकि उनके साथ के दूसरे नेता संजय गांधी के पीछे-पीछे घूमते नजर आते थे। इसमें सबसे आगे ये आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जे वेंगलराव। संजय गांधी राजस्थान की यात्रा पर गए तो मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के कंधे पर पैर रखकर हाथों पर चढ़े। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी तो संजय गांधी की टूटी चप्पल हाथ में लिए चलते नजर आए थे। लेकिन श्यामाचरण शुक्ल इन सबसे अलग थे। संजय का मध्य प्रदेश आने का कार्यक्रम बना तो शुक्ला उन्हें लेने खुद नहीं गए। उन्होंने कैबिनेट के मंत्री, कृष्णपाल सिंह को सरकारी विमान से दिल्ली भेजा। संजय गांधी ने जब मारुति उद्योग स्थापित उन्होंने मारुति को काम नहीं दिया। एक बार संजय गांधी की भोपाल यात्रा का कार्यक्रम बना तो श्यामाचरण शुक्ल ने इसका विरोध किया। इंदिरा गांधी के कारण वे बड़ी मुश्किल से इसके लिए राजी हुए, लेकिन उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट भी नहीं गए। इसके कुछ महीने बाज संजय का बस्तर दौरे का कार्यक्रम बना तो शुक्ला ने फिर विरोध जताया। हालांकि, संजय नहीं माने। भोपाल और बस्तर की यात्राओं में उन्हें बेंगन से संजय गांधी का स्वागत करना पड़ा। अनिल पुरोहित




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