(भोपाल) भाजपा को महाकौशल, चंबल और निमाड़ अंचल में समस्या

  • 02-Nov-23 12:00 AM

भोपाल,02 नवम्बर (आरएनएस)। चुनाव अभियान के अंतिम चरण में भाजपा और कांग्रेस घनघोर चुनाव प्रचार अभियान और मतदान केंद्र प्रबंधन के लिए जुट गई हैं। आज और कल विद्रोही उम्मीदवारों को समझाने पर फोकस किया जाएगा। उसके बाद प्रचार अभियान तेज गति पकड़ेगा। कांग्रेस की तुलना में भाजपा के बागी उम्मीदवार अधिक हैं। जबकि इधर कांग्रेस को इंडिया गठबंधन की पार्टी से नुकसान हो रहा है। उम्मीदवारों की स्थिति कल दोपहर तीन बजे तक स्पष्ट होगी। प्रदेश स्तर पर चुनाव अभियान का विश्लेषण करने से पता चलता है कि भाजपा को जहां माहाकौशल, ग्वालियर चंबल और निमाड़ अंचल में सबसे अधिक समस्या है। वहीं कांग्रेस बुंदेलखंड, मालवा और भोपाल, नर्मदापुरम रीजन में अपेक्षाकृत कमजोर दिख रही हक्ै। विंध्य और बघेलखंड में दोनों दल बराबरी में हैं। यहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भाजपा और कांग्रेस दोनों को नुकसान कर रही हैं। प्रदेश के सबसे बड़े मालवा और निमाड़ अंचल में 66 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें उज्जैन संभाग में 29 और इंदौर संभाग में 37 सीटें हैँ। मालवा रीजन में उज्जैन संभाग के अलावा इंदौर जिले और धार जिले का आधा हिस्सा आता है। जबकि इंदौर संभाग का शेष हिस्सा निमाड़ अंचल कहलाता है। प्रदेश में सबसे अधिक आदिवासी सीटें निमाड़ में ही हैं। मालवा रीजन में केवल बागली और सरदारपुर दो ही आदिवासी सीट हैं। जबकि निमाड़ में 20 आदिवासी सुरक्षित सीटें आती हैं। भाजपा को सबसे अधिक समस्या यही है। झाबुआ-अलीराजपुर, बड़वानी, धार और खरगोन जिले भाजपा की कमजोर नस हैं। यहां कांग्रेस को थोक सीटें मिलती हैं। दूसरी तरफ इदौर जिले की नौ और उज्जैन संभाग की 29 विधानसभ्ज्ञा सीटों पर भाजपा का लगातार वर्चस्व बना हुआ है। 1985 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो भाजपा यहां से लगातार आधे से अधिक सीटों पर कब्जा करती आई है। इस बार भी भाजपा इन 38 सीटों पर बहुत मजबूत है। जबकि निमाड़ अंचल में कांग्रेस का प्रदर्शन 2003 और 2013 को छोड़कर लगातार अच्छा रहा है। इसी तरह महाकौशल की 38, ग्वालियर चंबल की 34 विधानसभा सीटों पर भी भाजपा को समस्या है। खासतौर पर महाकौशल की आदिवासी सीटों पर पार्टी कमजोरी महसूस करती है। ग्वालियर चंबल अंचल आमतौर पर भाजपा का साथ देता है लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदल के कारण यहां संगठन का रसायन बदल गया है। इस वजह से समस्या है, जबकि कांग्रेस के लिए बुंदेलखंड अंचल और भोपाल नर्मदा पुरम संभाग का क्षेत्र माइनस में जाता है। बुंदेलखंड में 24 और भोपाल नर्मदा पुरम रीजन में करीब 36 विधानसभा सीटें आती हैं। यहां भाजपा 2003 से लगातार 60 फीसदी से अधिक सफलता प्राप्त करती है। अयोध्या आंदोलन के बाद बुंदेलखंड के लोधी, कुर्मी और ब्राह्मण मतदाता भाजपा के पक्ष में मतदान करते हैं। दूसरी तरफ दलित ओर ठाकुर कांग्रेस के साथ रहते हैं, लेकिन पिछले पाँच चुनाव से दलित मतदाताओं में बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव बढ़ा है। इसी तरह समाजवादी पार्टी यादव समुदाय के वोट लेती है। इस तरह कांग्रेस काके नुकसान हो जाता है। इसी तरह भोपाल और नर्मदा पुरम रीजन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बोलबाला है। यहां किरार, लोधी, कुशवाहा, कुर्मी, ब्राह्मण और राजपूत समाज भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं। 1967 से इस अंचल में भाजपा (जनसंघ) और संघ परिवार मजबूत बना हुआ है। यहां की 36 में से 30 सीटें जीतना भी भाजपा के लिए मुश्किल काम नहीं है। विंध्य और बघेलखंड में 30 विधानसभा सीटें आती हैं। पिछली बार भाजपा ने यहां से 24 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार मुकाबला बराबरी का दिख रहा है। यहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान करती हैं। इसलिए पहले से अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि किस पार्टी को कितना नुकसान होगा। अनिल पुरोहित




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