(रतलाम)जीवन में सभी के प्रति रहना चाहिए परोपकार का भाव- मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.

  • 06-Oct-23 12:00 AM

रतलाम, आरएनएस, 6 अक्टूबर। मानव भव मिला है तो हमारे भीतर परोपकार करने का भाव भी होना चाहिए। वर्तमान दौर में व्यक्ति सिर्फ अपने या अपने से जुड़े लोगों का सोचता है लेकिन इससे ऊपर उठकर हमे जन कल्याण के भाव से आगे बढ़कर हर जरूरतमंद की मदद करना होगी, तो ही हमारा जीवन सार्थक होगा। हमारे मन में सदैव परोपकार का भाव बना रहे,ऐसी प्रार्थना प्रभु से करना चाहिए।यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में प्रवचन देते हुए कही 7 परोपकार के प्रकारों पर प्रकाष डालते हुए उन्होने बताया कि परोपकार स्वार्थ केंद्रीत, स्वजन केंद्रीत, सज्जन केंद्रीत, दुर्जन केंद्रीत और सर्वजन केंद्रीत होते है। वर्तमान में अधिकांश लोग सर्वजन को छोड़ काम करते है। हर व्यक्ति पहले स्वयं और परिवार की सोचने लगा है। हमे इस तरह के भाव को मन से मिटाना है।मुनिराज ने कहा कि प्रभु ने सभी के प्रति क्षमा भाव, मैत्री भाव और कल्याण का भाव रखते हुए सब जीवों का सोचा है। कई लोग स्वयं के लाभ के लिए यदि दूसरे का नुकसान होता है,तो भी वह अपने स्वार्थ की पूर्ति करने से नहीं चुकते है। सच्चा इंसान वहीं होता है जो दूसरों के दुखों के साथ उनके दोषों को भी दूर करे। क्योकि दुख तो कोई भी दूर कर सकता है लेकिन किसी के दोषों को दूर करना आसान नहीं होता है।रविवार को ओह गाड वाय मी होंगे विशेष प्रवचनआचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. की निश्रा में सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में 8 अक्टूबर को ओह गाड वाय मी विषय पर विशेष प्रवचन होंगे। प्रवचन प्रात: 9.15 से दोपहर 12.15 बजे तक होंगे। मुंबई के संगीतकार जैनम वारैया सुमधुर भजनों की प्रस्तुति देंगे। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी ने अधिक से अधिक संख्या में धर्मालुजनों से विशेष शिविर में उपस्थित रहने का आव्हान किया है।




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