अकबर की अम्मी का रामायण प्रेम
- 20-Mar-24 12:00 AM
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अजय दीक्षितकम लोगों को मालूम होगा कि अकबर की अम्मी ने वाल्मीकि रामायण का फारसी में अनुवाद करवाया था । उस अनुवाद की कॉपी कहते हैं कि कतर की राजधानी दोहा के म्यूजियम में सुरक्षित है । इस्लामी आर्ट के इस संग्रहालय में यह अनोखी धरोहर मौजूद है । कहते हैं कि अकबर के आदेश पर बाल्मीक रामायण का अनुवाद शिष्ट फारसी में किया गया था । पहले इसका अनुवाद हिन्दी में हुआ फिर बोलचाल की फारसी में और फिर शिष्ट फारसी में । इसके लिए जो पंडित या मौलवी लगाये गये थे वह बहुत बड़े विद्वान थे, अपने-अपने क्षेत्र के । कहते हैं कि अकबर के दरबार में नियमित विभिन्न धर्मों सम्प्रदायों के जानकार इक_ा होते थे और फिर वे परस्पर विचार विमर्श करते थे । यह भी कहा जाता है कि अकबर ने सुहैल कुल नाम से जो सम्प्रदाय चलाया था उसमें सभी धर्मों और सम्प्रदायों की अच्छी-अच्छी बातें ग्रहण कर ली गई थीं । यह दूसरी बात है कि सनातन धर्म मुगल आक्रांताओं के निरन्तर प्रहार के बाद भी स्थिर रहा क्योंकि इस धर्म के अनुयायी जुल्म सहकर भी अपनी आस्था में अडिग रहे । अकबर ने हिन्दू धर्म स्थलों/तीर्थों की यात्रा करने वालों पर जो टैक्स लगाया था उससे भी यह आस्थावान विचलित नहीं हुये ।अकबर की अम्मी हमीदा बानो बेगम ने फारसी जिस जिल्द में अनुवाद करवाया है, उसमें कहते हैं, चित्रकारी भी है । पहले छपाई की व्यवस्था नहीं थी । तो जो अच्छी हैंडराइटिंग में लिख सकते थे उन्हें कैलीग्राफर कहते हैं । परशियन आर्ट के जानकारों ने इस अनुवाद की प्रति को चित्रकारी से सजाया । बाद में बहुत से मुग़ल दरबारियों ने इस अनुवाद की कॉपी करके अपनी- अपनी प्रतियां बनवाईं ।हमीदा बानो बेगम अकबर की दूसरी पत्नी थीं । उनके इंतकाल के बाद उन्हें "मरियम मकानी" की पदवी दी गई । हमीदा बानो बेगम ने जो अनुवाद करवाया था, उसकी मूल प्रति में 450 फोलियो हैं और 56 पेंटिंग हैं । कहते हैं कि यह पेंटिंग सोने के पानी से सजाई गई हैं ।बाल्मीकि रामायण के सर्ग और श्लोकों का हू-ब-हू अनुवाद किया गया है । सबसे पहले लिखा गया है--वह अल्लाह आलम बी-- अल स्वाबी जिसका अर्थ होता है और ईश्वर जानता है सब कुछ "वा अल्लाह आलम बि-अल सवाबी" अंग्रेजी में इसका अर्थ है " और भगवान सबसे अच्छा जानता है.1604 में यज्ञ ग्रन्थ मुगल लाइब्रेरी में रखा गया और 1604 में उनकी मृत्यु के बाद यह दोहा के संग्रहालय में है । कहते हैं यह सुन्दर कैलीग्राफी में शुद्ध फारसी में लिखी प्रति सन् 1594 में पूरी हो पाई थी । अकबर ने अपने कार्यकाल में अनेक संस्कृत धर्म ग्रन्थों और काव्यों का अनुवाद करवाया था । इस ग्रन्थ फारसी में अनुदित ग्रन्थ में राम को तो राम ही लिखा गया है परन्तु दशरथ को जशरथ कहा गया है । कहते हैं हमीदा बानो बेगम सीता द्वारा उठाये गए कष्टों के कारण स्वयं भी पीड़ा महसूस करती थी । अकबर के समय में और भी संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद हुआ है और हिन्दू देवी देवताओं को आदम खुदा अबू बसर आदि के रूप में वर्णित किया गया है ।आज देश में जो साम्प्रदायिक माहौल में उबाल आ रहा है, उसमें ऐसे तथ्यों से कुछ उबाल कम होगा, यह उम्मीद की जानी चाहिये । [उपरोक्त विवरण टाइम्स ऑफ इण्डिया के ग्वालियर संस्करण के दिनांक 16 फरवरी, 2024 में छपी रिपोर्ट के आधार पर है ।]
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