अफस्पा वापस लेने का अनुरोध
- 28-Nov-24 12:00 AM
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हालात ऐसे बने हैं कि खुद बीरेन सिंह सरकार ने केंद्र से अफस्पा वापस लेने का अनुरोध किया है। इस कानून को लेकर मणिपुर में विरोध का लंबा इतिहास है, जिस कारण इसका नाम ही वहां नकारात्मक प्रतिक्रिया पैदा करता है।मणिपुर हिंसा की चपेट में है। इंफ़ाल घाटी में विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हुए हमले इस बात की तस्दीक करते हैं कि फिलहाल राज्य में अराजकता जैसी हालत है।बेकाबू भीड़ पर कई जगहों पर पुलिस ने लाठी चलाई है या आंसू गैस के गोले दाग़े हैं। राजधानी इंफ़ाल समेत कई इलाक़ों में कफऱ््यू लगाया गया है। कई जगहों पर इंटरनेट सेवा बंद है।इसके बावजूद मुख्यमंत्री एन. बीरेन की पीठ पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का हाथ बना हुआ है, जिनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि अब उनकी सरकार के सहयोगी दल एनपीपी ने भी समर्थन वापस ले लिया है।हैरतअंगेज है कि सवा साल से हिंसा में झुलस रहे इस राज्य में मौतों और बढ़ी सामाजिक खाई के लिए किसी की सियासी जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। इस बीच समस्या का हल सख्ती से निकालने के नजरिए के तहत केंद्र ने राज्य के छह थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (अफ्सपा) लागू कर दिया है, मगर इस फैसले से जन असंतोष और भड़क उठने के संकेत हैं।हालात ऐसे बने हैं कि खुद बीरेन सिंह सरकार ने केंद्र को पत्र लिख कर इन थाना क्षेत्रों से अफस्पा हटाने का अनुरोध किया है। अफ्सपा के तहत सशस्त्र बलों को कार्रवाई की खास शक्तियां मिल जाती हैं।इस कानून को लेकर मणिपुर में विरोध का लंबा इतिहास है, जिस कारण इसका नाम ही वहां नकारात्मक प्रतिक्रिया पैदा करता है।राज्य की भाजपा सरकार ने संभवत: इसे समझते हुए ही केंद्र को चि_ी लिखी है। केंद्र को इस पत्र को गंभीरता से लेना चाहिए। मणिपुर में जरूरत संवाद और संवेदनशीलता की है।इसे ना दिखाने का परिणाम है कि कुकी समुदाय के इलाकों में हिंसक प्रतिक्रिया बढ़ी है, वहीं बहुसंख्यक मैतेई समुदाय में गुस्सा और ध्रुवीकरण तीखा हुआ है।ये सारा घटनाक्रम देखते-देखते विस्फोटक होता गया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार और भाजपा का नेतृत्व वहां बनते हालात से संभवत: जानबूझ कर बेखबर बना रहा है।क्या अब भी हालात को वह गंभीरता से लेगा? याद रखना चाहिए कि मणिपुर की घटनाओं से पूरा उत्तर-पूर्व प्रभावित हो सकता है।
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