कारावास का तात्पर्य सुधारना

  • 27-May-24 12:00 AM

देश में चल रही खुली जेलों के दायरे को कम करने का कोई प्रयास नहीं किए जाने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। अर्धखुली या खुली जेल व्यवस्था के तहत दोषियों को आजीविका कमाने के लिए दिन में परिसर से बाहर काम करके शाम को वापस लौटने की अनुमति दी जाती है।अदालत ने राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल व पश्चिम बंगाल को निर्देश दिया कि वे खुले सुधार संस्थानों की स्थापना, विस्तार व प्रबंधन पर अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं, लागू नियमों, दिशा-निर्देशों और अनुभव को राष्ट्रीय कानून सेवा प्राधिकरण के साथ साझा करें।खंडपीठ ने उल्लेख किया कि जेलों व कैदियों से संबंधित मामलों में न्याय मित्र वकील ने बताया कि केंद्र सरकार आदर्श मसौदा नियमावली के तहत खुले शिविरों/संस्थाओं/जेलों का नाम खुले सुधारात्मक संस्थान किया गया है।इन जेलों का मकसद न्यूनतम बंदिशों में कैदियों को समाज से तालमेल बिठाने व बाहर सामान्य जीवन जी कर मनोवैज्ञानिक दबाव कम करना है। सबसे बड़ी अदालत पहले भी कह चुकी है कि खुली जेलों की स्थापना जेलों में भीड़ का समाधान हो सकती है। इससे कैदियों के पुनर्वास के मुद्दे का समाधान भी हो सकता है। जैसा कि इन जेलों में चुनिंदा कैदियों को रहने की इजाजत होती है। उनके आचरण व अनुसाशन पर सख्त नजर रखी जाती है।जो कैदी तीन बार पैरोल पर जा चुके हों या जमानत से मिली अस्थाई रिहाई के दौरान उनके खिलाफ कोई शिकायत या अनुचित आचरण की कोई शिकायत न हो, उन्हें भी यहां रखा जाता है। जाहिर है, यह दोषियों के सुधार व उन्हें मौका देने का सकारात्मक तरीका है।ऐसा करने से नि:संदेह हालात बेहतर होंगे और जेल को उस तरह से परिभाषित नहीं किया जाएगा कि वहां जाने के बाद कैदी सुधरने के बजाय बिगड़ जाते हैं। इन क्षेत्रों को सीमित करने के पीछे सरकार की मंशा को भी समझना जरूरी है।अपने यहां यूं भी जेलों में सीमा से बहुत ज्यादा कैदी होने के चलते व्यवस्थागत दिक्कतें आती रहती हैं। किसी भी दोषी या सजायाफ्ता को सुधार का मौका अवश्य दिया जाना चाहिए। कई बार देखेने में आता है, अपराधियों को अपने कृत्य पर ग्लानि होती है और वे पक्षतावा भी करते हैं।दूसरे, विचाराधीन कैदियों का भी मनोवैज्ञानिक तौर पर सहयोग होना जरूरी है। कारावास का तात्पर्य उन्हें सुधारना न हो, न कि जघन्य अपराधी बनने की तरफ धकेलना।




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