किसी भी दल के साथ पक्षपात नहीं करेगा
- 05-May-24 12:00 AM
- 0
- 0
रजनीश कपूरपिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक क्लिप काफी चर्चा में थी। क्लिप में दिखाया गया कि तेलंगाना राज्य में एक गरीब सब्जी विक्रेता सड़क के किनारे अपनी छोटी सी दुकान लगाए बैठी थी।तभी एक रईसजादे ने उसके पीछे अपनी महंगी गाड़ी को कुछ इस तरह से पार्क कर दिया कि महिला की साड़ी का पल्लू गाड़ी के पिछले पहिये के नीचे दब गया। कुछ ही क्षण बाद जैसे ही महिला को इस बात का पता चला, तो वो गाड़ी मालिक से दुहाई करने लगी पर उसने एक न सुनी और एक भवन के अंदर चला गया। मजबूरी में उस महिला ने पुलिस से मदद मांगी। पुलिस ने भी काफी प्रयास किया कि उसकी साड़ी का पल्लू किसी तरह से पहिये से मुक्त हो जाए। लेकिन पुलिस जो उपाय खोजा वह काफी सराहनीय है।पुलिस ने एक मिस्त्री बुलाया और गाड़ी में जैक लगा कर महिला के पल्लू को मुक्त करवा दिया। परंतु तेलंगाना की पुलिस ने इस मनचले को सबक सिखाने की भी सोची। पुलिस वाले उस गाड़ी के पहिये को उतरवा कर अपने साथ पुलिस थाने ले जाने लगे। जैसे ही गाड़ी का पहिया उतारा जा रहा था तभी वो मनचला हड़बड़ाता हुआ बाहर आया। पुलिस के इस एक्शन पर घबराहट में उनके पैरों में गिरने लगा। माफी मांगने लगा। परंतु पुलिस ने उसकी एक न सुनी और पहिया उतार कर अपने साथ थाने ले गई।इस बिगड़े मनचले के पास सिवाय अपना सर खुजाने के और कोई उपाय न था। शायद वो इस तरह से गाड़ी पार्क करने से पहले इंसानों की तरह सोचता तो ऐसा न होता। परंतु पैसे के घमंड में चूर इसे कुछ दिखाई नहीं दिया। यदि यहां पुलिस उस व्यक्ति से उलझती तो वो अवश्य अपने पैसे और रु तबे की धौंस दिखाता। गौरतलब है कि इस पूरे वीडियो को सोशल मीडिया पर स्क्रिप्टेड वीडियोÓ या नाटकीय वीडियो कहा जा रहा है। परंतु जो भी हो वीडियो डालने वाले ने जो संदेश देना चाहा वह देश के अन्य राज्यों की पुलिस के लिए एक अच्छा उदाहरण बना।चुनावों के मौसम में तेलंगाना के इस वीडियो क्लिप से भारत निर्वाचन आयोग को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। सोशल मीडिया पर शायद ही कोई राजनैतिक पार्टी होगी जिसने अपने चुनावी भाषण में किसी न किसी तरह से आचार संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के नियमों का उल्लंघन न किया हो। परंतु जिस तरह चुनाव आयोग एकतरफा कार्रवाई करते हुए दिखाई दे रहा है, उससे तो यही लगता है कि दोहरे मापदंड अपना रहा है। ईवीएम और वीवीपैट को लेकर चुनाव आयोग पहले से ही विवादों में है।चुनावी भाषणों को लेकर आयोग की एकतरफा कार्रवाई एक बार फिर से पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषण और उनके बाद नियुक्त हुए कुछ चुनाव आयुक्तों की याद दिलाती है, जो नियम-कायदों के पक्के माने जाते थे। चुनावों के मौसम में कोई राजनैतिक दल, चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, चुनाव आयोग से कभी नहीं उलझता था। परंतु बीते कुछ वर्षो में जिस तरह चुनाव आयोग की जगहंसाई हुई है उससे प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रहा। फिर वो चाहे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के सुझावों की अनसुनी हो या किसी बड़े राजनैतिक दल द्वारा किए गए उल्लंघन की अनदेखी हो। चुनाव आयोग विवादों में बना ही रहा।जब भी कभी कोई प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, तो उसका संचालन करने वाले शक के घेरे में न आएं इसलिए प्रतियोगिता के हर कृत्य को सार्वजनिक किया जाता है। आयोजक इस बात पर खास ध्यान देते हैं कि उन पर पक्षपात का आरोप न लगे। इसीलिए जब भी कभी आयोजकों को किसी कमी की शिकायत की जाती है या उन्हें कोई सकारात्मक सुझाव दिए जाते हैं तो यदि वे उन्हें सही लगें तो वे उन्हें स्वीकार लेते हैं। उन पर पक्षपात का आरोप भी नहीं लगता। ठीक उसी तरह स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ी प्रतियोगिता चुनाव हैं। उसके आयोजक यानी चुनाव आयोग को उन सभी सुझावों और शिकायतों को खुले दिमाग से और निष्पक्षता से लेना चाहिए।चुनाव आयोग संविधानिक संस्था है, इसे किसी भी दल या सरकार के प्रति पक्षपाती दिखाई नहीं देना चाहिए। यदि चुनाव आयोग ऐसे सुझावों और शिकायतों को जनहित में लेता है तो मतदाताओं के बीच भी सही संदेश जाएगा, कि चाहे ईवीएम पर गड़बडिय़ों के आरोप लगें या आचार संहिता के नियमों का उल्लंघन की शिकायत हो, आयोग किसी भी दल के साथ पक्षपात नहीं करेगा। जिस तरह पहले चरण के चुनावों में मतदान के प्रतिशत कम होने के बाद कुछ राजनैतिक दल घबराहट में गलतबयानी कर रहे हैं, चुनाव आयोग को इन सभी का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए और नियम अनुसार उचित कार्रवाई करनी चाहिए। यदि चुनाव आयोग किसी भी राजनैतिक दल को उसके कद और आकार को नजरअंदाज कर नियम-कायदे के अनुसार उस पर कार्रवाई करेगा तो जनता के बीच चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। मतदाता को भी वोट करने पर गर्व होगा। यदि चुनाव आयोग ऐसा करता है, तो आने वाले शेष चरणों में हो सकता है कि मतदान का प्रतिशत बढ़ भी जाए।
Related Articles
Comments
- No Comments...